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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

ये प्रेम नहीं है, पशुता है

प्रेम और वासना : पशुवत जीवन

हम लोगों ने प्रेम के नाम पर कुछ धारणाएँ बना रखी है। हमने भौतिक हरकतों का एक लिस्ट तैयार कर रखा है, जो कोई वह हरकतें कर दे , तो हम समझते हैं कि ये हम से प्रेम करता है, क्योंकि जो हमने प्रेम के नाम पर लिस्ट बना रखा है इसकी हरकतें उससे मिलती जुलती हैं। कोई तुमको आंख मार दे ,तो तुम कहते हो कि ये देखो एक और प्रेमी मिल गया। कोई तुमसे दो चार बातें हंसकर बोल दे , तू तुम कहोगे कि ये एक और प्रेमी मिल गया। कोई तुमसे पूछ ले कि मुर्गी का गर्दन मरोड़ के मुर्गी का मांस खाएगा या बकरे का? इंग्लिश ब्रांड वाला दारु पीयेगा या देसी? धूम्रपान करेगा या पान मसाला खाएगा? तुम कह दोगे कि ये मेरी कितनी फिक्र करता है? मुझसे पूछा कि दारु पीयेगा या माँह खाएगा ? तुम कओगे कि वाह! मेरी पसंद का ख्याल रखने वाला प्रेमी मिल गया। यह कौन सा प्रेम है जिसमें देखा ही नहीं जा रहा है कि जो कुछ तुम्हारे साथ बर्ताव किया जाता है वह तुम्हारे लिए वास्तव में हितकर है कि नहीं ? ये प्रेम नहीं है। प्रेम तो बहुत ऊंची बात है। कौवा यदि हंस की चाल चलने लग जाए तो कौवा हंस नहीं हो जाएगा। 
अगर तुम लड़के हो तो लड़की को ओर आकर्षित होगे, और यदि लड़की हो तो लड़के की ओर आकर्षित होगी, और इसको तुम प्रेम का नाम दे दोगे।
इस कमुकता को लेकर शायरी करोगे कि तुम मेरी दिल ,तुम मेरी जान, तेरे इश्क ने मुझे दीवाना बनाया इत्यादि इत्यादि। अरे पागल! ये दिल वगैरह कुछ नहीं होता। ये नीचे वाला मामला है। पुरुष की देंह है तो स्त्री की देंह मांगेगी। जैसे चुंबक की दो भिन्न सिरे एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। जब सांड कामुक होए , तो गाय की ओर भागे - ये प्राकृतिक बात है। लेकिन अगर पुरुष कामुक हो और स्त्री की ओर भागे- यह बात प्राकृतिक नहीं है। क्योंकि तुम पशु नहीं हो, मनुष्य हो। पशुओं को बहुत कुछ नहीं चाहिए, क्योंकि उनका बोध कभी जगा ही नहीं। पशुओं का स्वभाव प्रकृति है। पर मनुष्य का स्वभाव आत्मा है,शांति है। तुम शरीर भी हो और चेतना भी हो। शरीर का स्वभाव है कि शरीर की ओर बढ़े और और चेतना का स्वभाव है चेतना की ओर बढे़। काम ऐसा करो कि जिससे जेतना बढ़े, क्योंकि यदि तुम शरीर को शरीर की ओर बढ़ा रहे हो तो तुम्हारा जीवन पशुवत जीवन है। जैसे कुत्ता केवल खाना, आराम और प्रजनन करके शरीर की ओर बढ़ रहा है, ठीक वैसे यदि तुम भी शरीर के इरादे पूरे कर रहे हो , तो तुम में और कुत्ते में क्या फर्क है? तुम्हारा मन सदा बेचैन रहता है, तो तुम मन को शांति की ओर , प्रगति की ओर, मोक्ष की ओर बढ़ाओ।

 शरीर का इरादा है- भोजन ,आराम और प्रजनन। और यदि तुम शरीर के इरादे पूरे करने में लगे हो, तो फिर तुम्हारा जीवन पशुओं के समान है, अर्थात तुम में और पशु में कोई अंतर नहीं।



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