पोर्न की लत कैसे छोड़े?
तुम कह रहे हो कि पोर्न में सब कुछ दिखाया जा रहा है। लेकिन मैं कह रहा हूं कि पोर्न में कुछ नहीं दिखाया जा रहा है बल्कि सच्चाई छुपाई जा रही है। और सच्चाई क्या है जो छुपाई जा रही है? वो सच्चाई है देह की नश्वरता। शरीर नाशवान है, आत्मा ही अजर, अमर ,अविनाशी , अपरिवर्तनशील और सत्य है। तुम सत्य से माने आत्मा से वंचित रह जाओ, यही तो मकसद एक पोर्नग्राफी का। तुम आत्मा से वंचित रह गए तुम जी कहां रहे हो? बिना आत्मज्ञान की तुम पशु बराबर हो। पशुवत जीवन है तुम्हारा। यह तो एक साजिश है 2 मिनट, 5 मिनट ,20 मिनट का वीडियो बना दिया गिरा है ऐसी तुम पर वासना का पूरा खुमार हो जाए। वो पोर्न में जो लड़की है जो तुम्हारे लिए सिर्फ और सिर्फ एक जवान औरत है, उसने बचपन में कभी ऐसा सोचा नहीं होगा कि ऐसा घटिया काम से अपना पेट पालना पड़ेगा। ऐसी हो गया? क्या मजबूरी आई हुई होगी उस लड़की के जीवन में? उस 20 मिनट वीडियो के अलावा उस लड़की के जीवन में कुछ बहुत उत्तेजक नहीं है बल्कि दुखद पूर्ण कहानी है। कोई घटिया से घटिया काम करके पेट पालना बहुत आसान हो जाता है। सच में बहुत खतरा है।
देह भाव से मुक्त होने का एक अच्छा उपाय है कि तुम्हारी दृष्टि सदैव आत्म दृष्टि हो।जो चमड़ी को देखे सो चमार और जो आत्म दृष्टि रखे वही ज्ञानी। अब तुम बताओ तुम चमार हो या ज्ञानी? इससे भी यदि देह भाव ना छूट रहा हो तो भृतहरि का सिंगार शतकम और वैराग्य शतकम एक साथ पढ़ लो। देह क्या है स्पष्ट हो जाएगा। उनको भी पहले देह बहुत आकर्षक लगता था। पहले बोलते थे सुन्दर त्वचा, रेशमी केश, आकर्षक उभार नाभि। इससे आकर्षक क्या होता है? फिर भृतहरि बोले, "अरे! खाल, इस खाल से क्या चुम्मा चाटी करना, इस खाल के ठीक पीछे तमाम तरह के मल, मूत्र, मवाद, रज, अस्थि, मज्जा भरा हुआ है। तुम अपने आप को शरीर कहना चाहते हो? शरीर में तो जो कुछ है बहुत सुंदर सुगंधित तो है नहीं। अभी तुम्हारी आँतें बाहर निकाल कर रख दी जाए तो बदबू आने लगेगी क्योंकि आँतों में क्या भरा हुआ है - मल। अपने आप को शरीर मानना मूढ़ता है। शरीर तो आवरण है, रहने का मकान है। इसमें रहने वाला अनुराग पूरित, अतृप्त चेतना है। तुम जो कुछ भी कर रहे हो इसीलिए तो कि तुम्हें तृप्त मिले आनंद मिले, शांति मिले, चैन मिले। और जब तुम पोर्न इत्यादि भी देखते हो तो तुम्हारी आशा यही रहती की थोड़ा चैन मिलजाय ,थोड़ी शांति मिल जाए। जो सुख केवल और केवल सत्य में है , आत्मा में है, परमात्मा में है, इसको तुम इधर उधर बाहर दुनिया में खोज रहे हो।पत्नी में सुख ढूढ़ रहे हो, पुत्र में और परिवार में ढूंढ रहे हो, समाज से सुख और इज्जत चाहते हो, सच तो यह है कि यहाँ कुछ भी नहीं मिलेगा शिवाय दुख और निराशा के। आनंद केवल परमात्मा में ही है, विषयों से विरक्ति में ही आनंद है। और तुम उसे खोज रहे हो पोर्न में। हालाँकि पोर्न तुम्हें थोड़ी समय के लिए या कुछ पल के लिए शांति और चैन दे सकता है।
सत्य क्या है? शरीर नश्वर है, आत्मा ही शाश्वत और आनंद स्वरुप है। और पोर्न का क्या काम है? तुम्हें सत्य से वंचित रखकर, तुम्हें आत्मा से वंचित रखकर, नश्वर शरीर में ही उलझा कर रखे। पोर्न का काम है कि तुम्हें आत्मा से वंचित रखे ,आत्मज्ञान से वंचित रखे, सदा रहने वाले आनंद से वंचित रखें, और तुम आत्मा से वंचित रह गए, तो फिर तुम इंसान नहीं पशु हो। पशु को क्या चाहिए ? खाना और प्रजनन। और यदि तुम्हें भी यही चाहिए तो तुम इंसान नहीं पशु हो।
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