अगर किसी भी मामले में प्रश्न यही है कि सही चुनाव कैसे करें या सही निर्णय कैसे ले?
तो इसके लिए सबसे पहले हमें स्वयं से ये प्रश्न करना पड़ेगा कि हम हैं कौन? और हमारी हालत क्या है?
अगर हमें यह समझ में आ गया कि हम हैं कौन? और हमारी हालत क्या है? तो हमें ये भी समझ में आ जाएगा कि हमें क्या करना चाहिए?
जैसे कोई बच्चा हो, और उसकी हालत क्या है? उसकी हालत यह है कि वो परीक्षा में फेल हो गया है। अब उसका सही निर्णय यही होगा कि अब वह और अच्छे से पढ़ाई करे ताकि परीक्षा में उत्तर लिख सके और पास हो सके।
स्वयं का अवलोकन करना पड़ेगा। यदि हमें ये समझ में आ गया कि हम हैं कौन? और हमारी हालत क्या है? तो हमारे जीवन की सारे निर्णय सही होंगे। लेकिन हम स्वयं कभी स्वीकार करते नहीं है कि हमारी हालत ठीक नहीं है क्योंकि इससे हमारे अहंकार को चोट लगता है। दुनिया में सबसे ज्यादा झूठ बोला जाने वाला शब्द यही है कि मैं ठीक हूँ। जब तक हम स्वीकार करेंगे नहीं कि हम ठीक नहीं हैं। हमारी हालत खराब है। तब तक हमारे जीवन में कोई प्रगति संभव नहीं है। दिल पर हाथ रख कर मानलो कि मेरी हालत बहुत सड़ी हुई है , बहुत खराब है। फिर तुम्हारे ठीक होने की संभावना बढ़ेगी।
जैसे कोई व्यक्ति बहुत बीमार हो, लेकिन वह स्वीकार करने को राजी ही नहीं है कि वह बीमार है। वह बीमार है लेकिन वो स्वयमेव मानता ही नहीं कि बीमार है। जो गलती को स्वीकार नहीं करेगा , उसकी सजा यही होगी कि वह बार-बार उसी गलती को दोहराएगा। अगर वह स्वीकार कर लेता है कि वह बीमार है, तो अब वो डॉक्टर के पास जाएगा, इलाज कराएगा और स्वस्थ हो जाएगा। और अगर वह स्वीकार नहीं करेगा कि वह बीमार है, तो वह और बीमार होता जाएगा और एक दिन ऐसा भी आएगा कि जब वो बीमार होने के लिए भी नहीं बचेगा। बीमारी उसको खा जाएगी, निगल जाएगी।
तो हमें दोनों बातें याद रखनी होगी- हमारा यथार्थ भी और हमारी संभावना भी। हमारा यथार्थ यह है कि हम बीमार हैं और हमारी संभावना यह है कि हम स्वस्थ हो सकते हैं , निरोग हो सकते हैं, ठीक हो सकते हैं। उपनिषद का सुंदर मंत्र यही है कि वो पहले बताते हैं कि तुम्हारी हालत ठीक नहीं है, तुम बीमार हो, और साथ में यह भी बता देते हैं कि तुम ठीक भी हो सकते हो, तुम्हारे चुनाव पर निर्भर करता है।
उपनिषद हमसे यही कहते हैं कि यदि तुम बंधन में हो, तो स्वीकार करो कि तुम बंधन में हो और फिर बंधन से मुक्ति की ओर बढ़ो। यदि तुम बीमार हो तो स्वीकार करो कि तुम बीमार हो और फिर इलाज कराओ और स्वस्थ हो जाओ। कोई अगर तुम से मिले और कहे कि मेरी हालत ठीक नहीं है क्योंकि भाग्य में लिखा है तो तुम कहना कि ये तुम्हारे भाग्य की बात नहीं है, ये तुम्हारे कर्मफल है , तुम्हारा चुनाव है। अगर सही चुनाव करोगे तो अभी ठीक है भी हो जाओगे। हमारा अंकार बचा रहना चाहता है इसलिए हम कभी स्वयमेव स्वीकार नहीं करते है कि हमारी हालत ठीक नहीं हैं। क्योंकि अगर स्वीकार कर लिया कि हमारी हालत ठीक नहीं है तो फिर मेहनत भी करना पड़ेगा हालत ठीक करने के लिए। अगर हमने स्वयं से स्वीकार कर लिया कि हम बीमार हैं तो हमें डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा , इलाज करवाना पड़ेगा, परहेज करना पड़ेगा, हमारे अहंकार को मानना पड़ेगा कि हम ठीक नहीं हैं, लेकिन अहंकार कभी चाहेगा ही नहीं कि वह गलत साबित हो जाए। इसीलिए हम अहंकारवश कह देते हैं कि हमारी हालत ठीक है, क्योंकि अगर कह दिया कि ठीक नहीं है, तो ठीक करना पड़ेगा, मेहनत करना पड़ेगा, अहंकार को तोड़ना पड़ेगा।
अगर गुलाम हो तो आजादी की ओर भागो, बंधन में हो तो मुक्ति की ओर भागो, बीमार हो तो स्वास्थ्य की तरफ भागो, अंधकार में हो तो प्रकाश की तरफ भागो। लेकिन अहंकार भागना ही तो नहीं चाहता क्योंकि भागने में अहंकार को मिटना पड़ेगा। आ रही है बात समझ में? जीवन का कोई भी निर्णय लेना हो तो सबसे पहले देखो कि तुम्हारी हालत क्या है? और क्या करने से तुम्हारी हालत ठीक होगी? यदि होश में रहकर जीवन के सारे निर्णय कर रहे हो तो तुम्हारे सारे निर्णय सही होंगे। क्योंकि तुमने बेहोशी में निर्णय नहीं लिया है।
कोई भी कार्य करने से पहले सवाल करो, कि इससे मुक्ति मिलेगी या एक बंधन और ऊपर चाढ़ेगा? कोई भी निर्णय लेने से पहले ये विचार करो
कि इससे उन्नति ओर जाओगे या अवनति की ओर जाओगे ? मुक्ति की ओर जाओगे या बंधन की ओर जाओगे?
