प्रश्न्न - सोशल मीडिया पर मनोरंजन वाली सामग्री वायरल क्यों होते है? लोग बार बार मनोरंजन की तरफ क्यों जाते हैं?
समाधान- सभी लोगों में एक तड़प है, एक बेचैनी है, और उस बेचैनी को शांत करने के लिए मनुष्य यथासंभव प्रयत्न करता है। आदमी मनोरंजन की तरफ जाता ही इसलिए है क्योंकि उसके जीवन में दुख है, पीड़ा है, कष्ट है, और आदमी उस दुख को भुलाने के लिए मनोरंजन की तरफ जाता है, शराब की तरह जाता है, बहुत तरह के नशे करता है। मनोरंजन एक प्रकार का नशा है अपने दुख को ,पीड़ा को छुपाने का। मनोरंजन दुख को छुपाने का बहाना है। अरे भाई ! दुख को छुपाने से थोड़ी दुख खत्म होगा? नहीं होगा ना। इच्छा और अज्ञान ही दुख का कारण है। ये जो बात बात पर मनोरंजन की तरफ भागते हो, जरा मनोरंजन की परतों को रोककर तो देखो कितना दुख लहरा रहा है। मनोरंजन इलाज नहीं है, बल्कि मनोरंजन के बाद दुख और घना हो जाता है , हताशा और बढ़ जाती है। चूँकि लोगों के पास दुख , तनाव बहुत अधिक है, इसीलिए इसका जो सस्ता इलाज मनोरंजन है, वह सोशल मीडिया पर छाया रहता है। हमारी अधूरी इच्छाएं ही दुख का रूप ले लेती हैं। और आप देखिएगा कि जब आप खूब गहरी नींद से सोकर उठते हैं, तो आपको थोड़े समय के लिए आनंद का अनुभव होता है, वही फिल्म होता है क्योंकि उस समय इच्छाओं का दबाव नहीं होता है और अहंकार की अनुपस्थिति होती है।
प्रश्न्न- तो दुखों से छुटकारा कैसे मिले? आंनदित कैसे रहें?
समाधान - सत्य के ज्ञान से और अहंकार के नाश से दुखों से छुटकारा पाए जा सकता है। अपने शाश्वत स्वरूप का ज्ञान हो जाए और अहंकार का नाश हो जाए तो तुम दुखों के बीच तो हो सकते हो किंतु कोई दुख तुम्हारा नहीं होगा। मैं ये नहीं कहता कि दुख गायब हो जायेगा, मैं कहता हूं कि दुख रहेगा लेकिन तुम्हें कोई प्रभाव नहीं डाल पाएगा। तुम दुखों के बीच हो सकते हो लेकिन कोई दुख तुम्हारा नहीं होगा, दुख तुम्हें दुखी नहीं कर पाएगा। दुख अपना प्रभाव तुम पर क्यों नहीं डाल पाएगा ?क्योंकि जिस अहंकार की वजह से तुम्हें सुख दुख का अनुभव होता था उस अहंकार का नाश हो गया है। अहंकार के कारण तुम पत्थर हो गए थे, इसीलिए कोई गाली दे देता है तुम पर कोई थूक देता, तुम दुखी हो जाते। किंतु ज्ञान के द्वारा अहंकार मिट गया, पत्थर टूट गया। आकाश ही शेष बचा है, अब कोई आकाश पर थूके , या डंडा मारे या गाली दे , आकाश को क्या फर्क पड़ने वाला है। कोई आकाश के ऊपर थूके भी तो वो थूक आकर उसी पर गिरेगा। श्रीकृष्ण इसी को समत्व बुद्धि योग कहते हैं। संसारी आदमी अहंकार के कारण पत्थर जैसा होता है, सच्चा साधु अहंकार के नाश के कारण आकाश जैसा हो जाता है। आकाश पर तलवार चलाना या आकाश पर थूकना व्यर्थ उर्जा व्यय करना होगा। इसीलिए विद्वान कहते हैं कि साधु होना और मरना एक ही बात है, अर्थात अहंकार काम मिटना एक ही बात है। सारा दोष इस अहंकार का है। अहंकार मिट जाए सारे प्रपंच, सारे दुख दूर हो जाएँ।
निष्कर्ष - अहंकार के कारण ही मनुष्य से सुख और दुख अनुभव करता है। और मनुष्य इसी दुख से बचने के लिए मनोरंजन की तरफ जाता है।
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