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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

जिन्हें स्वयं से प्रेम हो

ढाई अच्छर प्रेम का : असली प्रेम की पहचान : उपनिषद

अधिंकाश प्रेमी और सगे संबंधी ,रिश्तेदार , जो आपको मिलते हैं,वो वही होते हैं , जिन्होंने प्रेम समझा ही नहीं। उन्होंने कभी स्वयं से ही प्रेम नहीं किया, तो आपसे प्रेम कैसे करेंगे? उन्होंने कभी स्वयं की भलाई चाही नहीं, तो तुम्हारी भलाई कैसे चाहेंगे? उन्होंने स्वयं से प्रेम नहीं किया , इस बात का प्रमाण उनका जीवन होता है। देख नहीं रहे हो उनके जीवन में कितना कलह है, दुख है, कष्ट है, पीड़ा है। उनके जीवन में कितने बंधन हैं, और वह अपनी बंधनों के साथ न केवल सहमत है बल्कि खुशी होने का झूठा नाटक भी करते। 
सामान्य जीवन में क्या-क्या होता है? बता देता हूँ। किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी से दो चार डिग्री ले लेना ताकि नौकरी के चांस बढ़ जाएँ, और अगर पढ़ाई में कमजोर हैं, तो थोड़ी बहुत जानकारी ले करके अपना व्यापार कर लेंगे ताकि पैसा कमाना चालु कर सके, अब पैसे तो कमा लिये तो अब कोई इन पैसे को उड़ाने वाला भी चाहिए इसलिए दुनिया की देखी देखा शादी कर लेंगे, 1 - 2 साल में अगर बच्चे हो गये तो ठीक है, नहीं तो पूरी दुनिया ताने मारेगी, अब दुनिया के तानों से बचने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा? अब किसी तरह से बच्चे हो गये तो खर्चे बहुत होते हैं, तो अब रुपए पैसे को लेकर झगड़ा शुरू हो गया।
आगे बच्चों के पढ़ाई की चिंता, उसके बाद अगर बेटा है तो नौकरी की चिंता और अगर बेटी है तो शादी की चिंता, चलो अगर किसी तरह से ये भी निपटा लिया, तो अब बेटे की शादी करनी के बाद अब बहु आयी है और वह सर फोड़ रही है। बहु रोज बेटे कहती है कि मैं तुम्हारे मां बाप की नौकर नहीं हूँ। और बहू ने रोज झगड़ा कर करके बटवारा करा दिया। अब माँ बाप कहीं के नहीं रहे। अब दर दर ठोकने खाने लगे और एक दिन ऐसा भी आया कि ठोकरे खाने के लिए भी नहीं बचे। ये है आम आदमी का जीवन। अगर ऐसा ही रह जाना है तो कोई बात नहीं। 
जब जवान हो तो किससे परेशान हो ? जावानी से
जब बुढ़ा गये तो क्यों परेशान हो? बुढ़ापे से
जब पैसा नहीं आ रहा है तो क्यों परेशान हो? पैसे के लिए,
जब पैसा बहुत सारा आ गया तो क्यों परेशान हो? पैसे की वजह से
जब शादी नहीं हो रही तो क्यों परेशान हो? शादी होने के लिए
जब शादी हो गई तो क्यों परेशान हो? शादी होने की वजह से
जब बच्चे नहीं हो रहे तो क्यों परेशान हो? बच्चे के लिये,
जब बच्चे हो गए तो क्यों परेशान हो? बच्चे होने की वजह से


यहाँ कोई सुखी रहने वाला नहीं। अस्पताल में जाकर देखो कैसे मरीज चींख पुकार कर रहे हैं? 
जब पता ही है कि संसार की कोई वस्तु ,मिले या ना मिले ,हम तो परेशान रहेंगे ही रहेंगे? तो संसार की नश्वर वस्तुओं के पीछे भाग कर समय क्यों नष्ट कर रहे हो? अगर कष्ट मिलना ही है, पीड़ा झेलनी ही है, तो संसार की तुच्छ चीजों के लिए क्यों कष्ट झेलना? अगर यहाँ पीड़ा मिलनी ही है तो परम के सहेंगे, सत्य के लिए सहेंगे, मुक्ति के लिए झेलेंगे।
कष्ट तो दोनों को है, दुर्योधन को भी और अर्जुन को भी। फर्क इतना है कि अर्जुन को उच्च श्रेणी का कष्ट है, कृष्ण के लिए कष्ट है, मुक्ति के लिए कष्ट है। और दुर्योधन को संसार की तुच्छ नाशवान वस्तुओं के लिए कष्ट है। अगर कष्ट झेलना ही है तो मुक्ति की राह में झेलेंगे, बंधनों की राह पर नहीं। जैसे दो लोग बेड़ियों से बँधे हुए हों, एक है जो बेड़ियों काटने में कष्ट झेल रहा है, और दूसरा है जो अपने ऊपर एक बेड़ी और डालने के लिए कष्ट झेल रहा है। मृत्युलोक में हो तो दुख तो मिलेगा ही मिलेगा, तुम ऐसे दुख का चुनाव करना जो मृत्युलोक से मुक्ति में सहायक हो।


जिसको तुम आम आदमी बोलते हो वो तुम हो, और अगर वैसा ही रह जाना है तो कोई बात नहीं। आम आदमी के जीवन की कहानी बिल्कुल तय हैं। उसमें क्या क्या आता है? बता देता हूँ। थोड़ी बहुत पढ़ाई या किसी कॉलेज से प्राप्त 2- 4 डिग्री ताकि पैसा कमा सको, सात फेरे (शादी), पैसे रुपए के लिए चिक चिक, बेटी की परवरिश की चिंता, पढ़ाई की चिंता , शादी की चिंता, दहेज की चिंता, सास बहू की झगड़े, ननद भाभी का लड़ाई, घर में बहु का शासन, और बुढ़े हो जाने पर सर पीटना कि भाग्य में लिखा था। और एक दिन ऐसा भी आ जाए कि जब बसर पीटने के लिए भी ना बचना। 
यही है एक आम आदमी का जीवन। बोलो चाहिए?  
फिर से एक चुनौती दे रहा हूँ। क्या इससे अलग भी जीवन हो सकता है? और इस चुनौती के साथ साथ ये विश्वास भी दिलाता हूँ। इससे भी अलग और ऊँचा जीवन जिया जा सकता है? तुम्हारे भाग्य में कुछ नहीं है , सब तुम्हारे चुनाव पर निर्भर करता है। जैसे कोई शराबी शराब पीये है, और जब लीवर खराब हो जाए तो फिर बोले कि भाग्य में लिखा है। अरे भाई ! भाग्य में कुछ नहीं लिखा है, सब हमारे चुनाव पर आधारित है। सही निर्णय लेंगे तो जीवन अभी ठीक होने लग जाएगा? वह तुम्हारे ताकत की है, तुम्हारे चुनाव की है। 


और यह हमारा सही चुनाव ही हमारे प्रेम की प्रारंभिक प्रक्रिया है। अगर हमें स्वयं से प्रेम होगा, तो सही चुनाव करेंगे , और यदि हमें स्वयं से प्रेम नहीं होगा, बल्कि मोह होगा तो हम गलत निर्णय लेंगे।

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