Vedanta, Upnishad And Gita Propagandist. ~ Blissful Folks. Install Now

𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

विवेक चूड़ामणि

आचार्य शंकर भाष्य विवेक चूड़ामणि (वेदांत का सिद्धांत)

आदि शंकराचार्य : मनुष्य शरीर जैसे दुर्लभ अवसर को पाकर जो मनुष्य मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता , वह निश्चय ही आत्मघाती है, हिंसक है। अपने आप को संसार रुपी मृत्यु से आत्मा रूपी अमृत की ओर ना ले जाना ही हिंसा है। यही सबसे भारी क्षति है। ये संसार मरघट है, और जो अपने को आत्मा की ओर अर्थात मुक्ति की ओर नहीं ले जाता ,वो भारी भूल करता है। 
भले ही कोई शास्त्रों में ज्ञाता हो, मरणधर्मा देवताओं का पूजन करता हो, अनेकों शुभ कर्म करें, तब भी बिना आत्म ज्ञान के उसे मुक्त नहीं मिल सकती। यहाँ आचार्य शंकर ने ज्ञान को मुक्ति का मुख्य साधन बताया है। उपनिषदों में भी मैत्रेय को महार्षि याज्ञवल्क्य ने कहा कि धन से अमृत तत्व अर्थात मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है। यहाँ शंकराचार्य भी वही कहते हैं कि ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं है। इसीलिए साधकों को चाहिए कि वह मुक्ति की इच्छा के से किसी पूर्ण गुरु से परमात्मा का उपदेश ले। और फिर परमात्मा के उपदेश की श्रवण, मनन और निधि अध्ययन के द्वारा मुक्ति की ओर बढ़े। साधकों को अपनी समस्त इंद्रियों और मन को अपनी आत्मा में ही निरुद्ध करके उसे परमात्मा चिंतन में लगावे। साधकों को ध्यान ,जप ,मनन, और निधि अध्ययन से अंतःकरण की शुद्धि करना चाहिए।

परमात्मा (मुक्ति) प्राप्ति के चार साधन
1. साधक को नित्य और अनित्य वस्तुओं का विवेक होना चाहिए, अर्थात साधकों को नश्वर और शाश्वत का ज्ञान होना चाहिए। जब साधक को नश्वर ,क्षणभंगुर, वस्तुओं का और अविनाशी तत्व का ज्ञान होगा तभी तो वह नश्वर के पीछे ना पड़ कर शाश्वत को जीवन में लायेगा। जब हमें पता ही नहीं होगा कि क्या सही है क्या गलत ? तो हम सही कर्मों में संलग्न कैसे होंगे? नित्य और अनित्य , सही और गलत, शाश्वत और नश्वर का ज्ञान होना अति आवश्यक है। ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है। आत्मा ही सत्य हैं , यही शाश्वत, सनातन और अमृतस्वरूप है। ये सारा संसार और इसके विषय भोग अनित्य, क्षणभंगुर, नश्वर, झूठा है।

2. इस लोक और परलोक के सुख भोग के प्रति वैराग्य की भावना अति आवश्यक है मुक्ति के लिए। अगर विषय भोगों से वैराग्य नहीं होगा तो साधक विषय भोगों में फंसकर परमात्मा पथ से विचलित हो जाएगा, इसलिए साधकों विषय भोगों में ना फँसकर निरंतर परमात्मा पथ में लगे रहना चाहिए।
अर्थात विषयों से वैराग्य आवश्यक है।

3. शम, दम, उपरति, श्रद्धा, तितिक्षा, समाधान।
चित जहाँ भी जाए वहाँ से खींच कर उसे परमात्मा के चिंतन में लगाना ही 'शम' है। कर्म इंद्रियों और ज्ञान इंद्रियों को विषयों से विरक्त करके हृदय में निरुद्ध करना 'दम' है। हमारी वृत्तियाँ बाहरी विषयों में ना जाकर हृदय में निरुद्ध हो जाए , यही उपरति है। दुख और सुख से रहित होकर सब में समान भाव रखकर परमात्मा पथ में आने वाले कष्टों का सहन करना ही तितिक्षा है। वेदांत वाक्यों को और पूर्ण गुरु (कबीर, अष्टावक्र, रैदास, इत्यादि जैसे) की वाणी में विश्वास करना ही श्रद्धा है। अपनी बुद्धि को अपनी आत्मा में स्मरण और स्थिर रखना ही समाधान है।
4. मुमुक्षा। संसार बंधनों से मुक्ति की इच्छा ही मुमुक्षा है। अपने दुखों से , अपनी बेचैनी से, अपने तड़फ से मुक्त होकर शुद्ध शांत रहने की इच्छा ही मुमुक्षा है। परमात्मा प्राप्ति की इच्छा ही मुमुक्षा है।

प्रश्न्न- भक्ति का क्या अर्थ होता है? संसार में भक्ति के नाम पर जो कुछ प्रचलित है क्या वही मात्र भक्ति है? या उससे अलग कुछ है भक्ति का स्वरूप?

शंकराचार्य : अपने वास्तिक स्वरूप अर्थात आत्मा की ओर बढ़ना ही वास्विक भक्ति है। हमारा स्वरुप क्या है? जो आत्मा का स्वरुप है वही हमारा स्वरुप है। अर्थात हमारा वास्तिक स्वरुप आत्मा का है। आत्मा, परमात्मा ,ब्रह्म , ईश्वर , भगवान , खुदा एक दूसरे के पर्याय हैं। तो क्या संसार में प्रचलित भक्ति के नाम से जो कुछ भी किया जाता है वह भक्ति नहीं है? आचार्य शंकर कहते हैं कि नहीं, वो भक्ति नहीं है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी श्री कृष्ण यही कहते हैं कि अर्जुन कामनाओं द्वारा जिनका बुद्धि हरा जा चुका है वहीं अन्य देवताओं की पूजा करते हैं, ये पूजा अविधि पूर्वक है। अर्थात भक्ति का अर्थ अपनी आत्मा की ओर बढ़ना, आत्मस्थ स्थिति की ओर बढ़ना। संसार में जो कुछ भी कर्मकांड और मूर्ति पूजा आदि भक्ति के नाम से प्रसिद्ध हैं वे सब पूजा अविधि पूर्वक है।
शिष्य आचार्य से प्रश्न्न करता है कि मैं इस मृत्यु रुपी संसार से कैसे छूटूँगा? हे भगवन! मैं किस गति को प्राप्त होऊंगा? किस लोक को जाऊंगा? मेरा क्या होगा? इस प्रकार सिष्य के वचनों को सुनकर आचार्य का हृदय करुणा से द्रवित हो जाता है और आचार्य शिष्य से कहता है कि हे विद्वान तू डर मत, तेरा नाश नहीं होगा। वेदांत वाक्यों में (उपनिषद महावाक्य) जो ज्ञान है, वह अति उत्तम ज्ञान है। उपनिषदों के उत्तम ज्ञान का श्रवण, मनन और निधि अध्यन करने से संसार के दुख छूट जाते हैं।
श्रद्धा, भक्ति, ध्यान, योग , इत्यादि से साधक अंतःकरण में पवित्रता आती है। हे शिष्य! तेरे बंधन का कारण तेरा अज्ञान है। 

यदि आप मोक्ष चाहते हैं तो विषय भोग को जहर समझ कर त्याग दे। सत्य, संतोष , दया, क्षमा ,सरलता ,आदि सदगुणों को ग्रहण कर। शरीर तथा अन्य विषय भोग में आसक्ति रखने वालों को मुक्ति कभी नहीं मिल सकती।


पूरी बात आदि शंकराचार्य कृत विवेक चूड़ामणि पुस्तक में


---------------------------------------------------- 
 इस अभियान को अधिक लोगों तक ले जाने के लिए तथा ऐसे ही लेख और उपलब्ध कराने के लिए आपका सहयोग जरूरी है। हमारे कार्य को सहयोग देने के लिए ऊपर दिख रहे विज्ञापनों (advertisement) पर क्लिक कीजिए, ताकि विज्ञापन से प्राप्त हुई राशि से वेदांत , उपनिषद और गीता को जन-जन तक पहुंचाया जा सके। ऊपर दिख रहे विज्ञापन पर क्लिक कीजिए। अधिक जानकारी के लिए " About " में जाएँ। आप Blissful Folks Android App को इंस्टॉल कर सकते हैं। धन्यवाद।

1 टिप्पणी

  1. Bahut badia. Gyanena mukti.
This website is made for Holy Purpose to Spread Vedanta , Upnishads And Gita. To Support our work click on advertisement once. Blissful Folks created by Shyam G Advait.