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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

मीरा के भजन

मेरे पिया मो माँहि बसत हैं, कहूँ न आती जाती पीहर बसूँ न बसूँ सास घर, सतगुरु सब्द सँगाती

मीरा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है। और जब मीरा कोई व्यक्ति विशेष है नहीं तो कृष्ण भी कोई व्यक्ति होंगे नहीं। अतृप्त अहंकार का नाम है मीरा। कृष्ण माने ब्रह्म, कृष्ण माने आत्मा। बड़े सौभाग्य से तो मनुष्य तन मिला है। मनुष्य जन्म पाकर इस अवसर का पूरा लाभ लो। सद्गुरु से मिलकर ब्रह्म का ज्ञान हुआ। जो अज्ञान निद्रा में सो रहे थे उन्हें कुछ भी ना मिला और मुझे गुरु के पास ब्रह्म का ज्ञान मिला है। मीरा जी कहती हैं कि मेरा मन प्रसन्न हो रहा है और मैं हरि का गुणगान करती रहती हूँ। मुझे सद्गुरु (रैदास) की कृपा से उस प्रभु का ज्ञान हुआ जिसका न कोई आदि है ना कोई अंत है, मीरा जी कहते हैं कि अगर मुझे गुरु ने तत्वज्ञान ना दिया होता तो मैं भवसागर से तर ना पाती। मीरा जी कहती हैं कि हे मूढ़ मन ! उस अविनाशी परमात्मा का तू भजन कर। हे मन! कौन सा तीरथ किया कौन सा उपवास किया ,कौन सी गंगा में स्नान किया। मीरा जी कहती हैं कि इस देह का गुमान मत करो क्योंकि यह मिट्टी से बना है, मिट्टी में मिल जाएगा। यह संसार एक रैन बसेरा है, सुबह उठते ही अपने अपने रस्ते चल देना है। ये संसार मरघट है, यह कुछ भी शाश्वत नहीं। हे मन तू क्यों नश्वर विषयों के पीछे पड़ता है? तू क्यों नहीं अविनाशी परमात्मा का भजन करता है? पापियों से बड़ा पापी ही क्यों ना हो, हरि भजन के द्वारा शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है।

मीरा जी कहती है कि जिस भगवत कृपा से तुझे तन, मन ,धन मिला है, जिसमें तुम्हें आंख ,कान मुख और समस्त इंद्रियां प्रदान की हैं, उस अविनाशी परमात्मा को तू एक पल के लिए भी याद नहीं करता। बचपन को तो खेल में बिता दिया, जवानी को रूप यौवन के पीछे लगा दिया, बुढापा आ गया शरीर में विभिन्न रोग घेरने लगे , आलस निद्रा का बाहुल्य हो गया। मोह माया में पड़कर तूने परमात्मा को भुला दिया है। हे मन तू हरि का भजन कर। हे मन तू राम का रस पीले, कृष्ण प्रेम में लीन हो जा। कुसंगति को त्याग कर सत्संग में रोज बैठकर हरि कथा सुनना चाहिए। काम, क्रोध, मोह ,मद, लोभ को चित्त से त्याग कर राम रस में डूब जाओ। मीरा जी कहती हैं कि परमात्मा ने गुरु के माध्यम से मुझे अज्ञान की निद्रा से उठाया है। दिन को खाने में बिता दिया , रात को सोने में बिता दिया, प्राण को तो तरस तरस कर गवाँ दिया, आंखों को रो रो कर गवाँ दिया, अगर मुझे पता होता कि प्रेम करने से दुख मिलता है, तो मैं सभी को बता देती थी प्रेम मत करना। मेरी आंखें आपका रास्ता देखते दोस्ती बूढ़ी हो गई है, हे कृष्ण आपके मिलने से ही मुझे सुख मिलेगा। साधकों को छोटी चीजों में राजी नहीं हो जाना चाहिए , क्योंकि अगर छोटी चीजों में उलझे रहे तो विराट को पा ना सकोगे।

मीरा के भजन

हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दर्द ना जाने कोय
सूली ऊपर सेज हमारी किस विधि सोना होय
गगन मंडल पे सेज पिया की किस विधि मिलना होय
घायल की गति घायल जाने, की जिन लाई होय
जौहरी की गति जौहरी जाने, की जिन जौहर होय
दर्द के मारे वन वन डोलूँ , वैद्य मिलया ना कोय
मीरा की प्रभु दर्द मिटैगी, जब वैद्य सँवरिया होय

मन का मैल छोड़ा नहीं और केवल सिर पर तिलक लगा लेने भक्ति कैसे हो सकती है? काम और क्रोध में फँस कर आदमी चंडाल जैसा हो गया है। जिसके हृदय में क्रोध, द्वेष आदि द्वंद भरे हुए हैं उसको परमात्मा कैसे मिल सकते हैं? जिसका मन विषय के पीछे बिल्ली की तरह ललचा रहा है, जो दिन रात विषय भोगने में लगा हुआ है, जो हरि का सुमिरन नहीं करता, जो अभिमान से चकनाचूर है, जिसकी हृदय में परमात्मा के लिए प्रेम नहीं है, जिसकी मुख से राम नाम नहीं निकलता, उसे कभी शांति नहीं मिलेगी , उसे कभी मुक्ति नहीं मिलेगी, उसे कभी परमात्मा नहीं मिलेंगे।


सखी री मै तो गिरधर के रँग राती  
पचरंग मेरा चोला रँगा दे, मैं झुरमट खेलन जाती 
झुरमट में मेरा साई मिलेगा, खोल अडम्बर गाती
चंदा जायेगा सुरज जायेगा, जायेगा धरण अकासी 
पवन पाणी दोनों ही जायँगे, अटल रहे विनासी
सुरत निरत का दिवला सँजो ले, मनसा की कर बाती
प्रेम हटी का तेल बना ले, जगा करे दिन राती
जिन के पिया परदेस बसत हैं, लिखि लिखि भेजें पाती 
मेरे पिया मो माँहि बसत हैं, कहूँ न आती जाती
पीहर बसूँ न बसूँ सास घर, सतगुरु सब्द सँगाती 
ना घर मेरा ना घर तेरा, मीरा हरि रँग राती

मीरा जी कहती है कि जिनके परमात्मा बाहर होंगे वही तो परमात्मा को बुलाएंगे, मेरे परमात्मा, मेरे गिरधर गोपाल तो मेरे भीतर हैं। जिस परमात्मा की हमें चाह है, वह परमात्मा हम सब के हृदय में वास करता है। सदगुरु के उपदेश देने मेरा भ्रम दूर कर दिया। पहले मैं गिरधर गोपाल को अपने से बाहर मानती थी। लेकिन गुरु ने मेरा ये भ्रम दूर कर दिया कि परमात्मा हमसे बाहर है। मीरा जी कहती हैं कि मेरे गुरु ने बताया कि वो तेरा गिरधर गोपाल , तेरा नंदलाल, तेरा परमात्मा तेरे भीतर है , तू उनको बाहर कहाँ ढूंढ रही है।

मेरे परम सनेही राम की, नित याद आवे
राम हमारे हम हैं राम के, हरि बिन कुछ न सुहावे
आवन कह गये आजहु न आये, जियरो अति उकलावै 
तुम दरसन की आस रमइया, निस दिन चितवत जावै 
'चरण कँवल की लगन लगी अति, बिन दरसन दुख पावै 
मीरा कूँ प्रभु दरसन दीन्हा, आनँद वरण्यो न जावे।


पायो जी मैं ने नाम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुर, किरपा कर अपनायो जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो
खरचै नहिँ कोइ चोर न लेवे, दिन दिन बढ़त सवायो सत की नाव खेवटिया सतगुर, भवसागर तर आयो मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख हरख जस गायो ॥


मेरा बेड़ा लगाय दीजो पार, प्रभु जी अरज करूँ छूँ
या भव मेँ मैं बहु दुख पायो, संसा सोग निवार
कष्ट करम की तलब लगी है, दूर करो दुख पार
यो संसार सब बहो जात है, लख चौरासी धार
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आवागवन निवार


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2 टिप्पणियां

  1. मीरा जी की इन साखींयो के लिए हार्दिक अभिनन्दन और आभार
  2. Bahut badia...Gratitude for this opportunity to have such timeless wisdom. A gem 💎 for sure
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