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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

श्रीराम गीता : सार संक्षेप

जानिए श्री राम और लक्ष्मण जी के बीच हुए आध्यात्मिक संवादों का सार

लक्ष्मण जी की निरपेक्षता


श्रीराम जी एकांत में बैठे हुए थे। उसी समय लक्ष्मण जी वहाँ लक्ष्मण जी वहाँ आये और राम जी को भक्तिपूर्वक प्रणाम किया। 
लक्ष्मण जी ने कहा कि हे प्रभु! आप शुद्ध ज्ञान स्वरुप हो। आप सबके स्वामी हो। हे भगवन! आप स्वरुप से निराकार हो। हे स्वामी! योगी संयासी लोग जिनका चिंतन करते हैं, वह आप ही हो। योगी किसका चिंतन करते हैं ? योगी आत्मा का चिंतन करते हैं। योगी अपने आत्मा में ही रमे रहते हैं। आत्मा , परमात्मा , ब्रह्म एक दूसरे के पर्याय हैं। अर्थात भगवान राम भी निर्गुण निराकार ब्रह्म में स्थिति वाले थे, आत्मस्थ थे। लक्ष्मण जी ने श्री राम जी से कहा कि संसार बंधन से छुड़ाने वाले प्रभु मुझे ऐसा उपदेश दीजिए जिससे मैं परम श्रेय कल्याण मोक्ष को प्राप्त हो जाऊँ। लक्ष्मण जी की निरपेक्षता देखो। उन्होंने श्रीराम से प्रेय साधन नहीं माँगा, श्रेय साधन माँगा। श्रेय क्या है? प्रेय क्या है? श्रेय साधन के अंतर्गत सांसारिक विषय भोग, स्त्री ,धन, पद , प्रतिष्ठा, सम्मान, इत्यादि हो सकता है जिससे तत्काल सुख का अनुभव होता है। किंतु प्रेय वो साधन है, वो कामना है, जिसे मनुष्य परम गति को प्राप्त होता है , परमात्मा को उपलब्ध होता है , मोक्ष को प्राप्त होता है। जिस प्रकार लक्ष्मण जी राम जी से श्रेय की याचना करते हैं , ठीक उसी प्रकार से भगवद गीता में भी अर्जुन ने श्रीकृष्ण के समक्ष श्रेय साधन की लिए जिज्ञासा करा था।

साधक को हंस की तरह होना चाहिए, जैसे हंस दूध दूध पी लेता है और पानी पानी छोड़ देता है, ठीक इसी डकार साधकों को भी सद्गुरु को ग्रहण करना चाहिए और दुर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए। लक्ष्मण जी ने श्री राम जी से श्रेय साधन माँगा, लक्ष्मण जी ने श्रीराम जी से धन, राज्य, सुख या अन्य विषय भोग नहीं मांगा बल्कि मोक्ष माँगा। और आज हम मंदिर में जाकर क्या मांगते हैं? संसार की विषय भोग , सुख, राज्य, पद, सम्मान, स्त्री, धन, पुत्र, इत्यादि माँगते हैं। हम बिल्कुल उल्टे लोग हैं। सच्चे भक्त, सच्चे साधक तो लक्ष्मण जी थे। हम लोग तो अज्ञानी हैं, झूठी भक्ति करते हैं। स्वयं को राम भक्त वो ही लोग कहें, जो मुक्ति की आकांक्षा रखते हैं , जैसे लक्ष्मण रखते थे। लक्ष्मण जी ने क्या मांगा था? लक्ष्मण जी ने कहा था कि मुझे ऐसा उपदेश दीजिए जिससे मैं सरलता से अज्ञान से पार हो जाऊँ अर्थात मुक्ति को प्राप्त हो जाऊँ। लक्ष्मण बड़े प्रेमपूर्ण हैं। जो स्वयं से प्रेम करते हों? वो मुक्ति की आकांक्षा करे , आत्मा अर्थात परमात्मा की ओर बढ़ने की कोशिश करें। लेकिन हम सब बड़े रूखे लोग हैं। राम जी के पास जाते हैं, मंदिर में जाते हैं या गुरु के पास जाते हैं, तो संसार की नश्वर विषय भोग की कामना करते हैं, हम कामनाओं से मुक्ति नहीं मानते। हम सब लक्ष्मण जैसे सच्चे भक्त नहीं हैं, हमारी भक्ति झुठी है। तो यदि हम सब स्वयं को राम भक्त कहना चाहते हैं तो हमें लक्ष्मण जैसा होना पड़ेगा।

गुरु श्री राम जी का भक्त (शिष्य) लक्ष्मण के प्रति सत्य का उपदेश - 

लक्ष्मण जी की तरफ मत देखो। स्वयं की तरफ देखो। प्रत्येक साधक से श्री राम कह रहे हैं। 
श्रीराम जी कहते है कि प्रत्येक साधकों को अपने अपने अनुसार अपने अंतःकरण को शुद्ध कर लीजिए। अंतःकरण माने मन। पहले मन की शुद्धि करो , मन को विषयों से हटाओ, मन को संसार का गुलाम मत बनने दो, मन को विषयों से मुक्त करो, जब ऐसी पात्रता आ जाये, मन शुद्ध हो जाए, जीवन में दया ,सरलता, संतोष, शील, क्षमा, इत्यादि सदगुण उतरने लगे, तब आत्मा का बोध करने के लिए, ज्ञान प्राप्त करने की लिए सद्गुरु की शरण में जाओ। निरपेक्ष भाव से जाओ। अपनी सारी मान्यताओं , रुढियों, परंपराओं को छोड़कर जाओ। जब साधक में सदगुण आ जाए, पात्रता आ जाए, तो साधकों को निरपेक्ष भाव से ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए। स्वयं को ये मत मानो कि तुम स्त्री हो, या पुरुष हो या नपुंसक हो या अमीर हो या गरीब हो या साधु हो या असाधु हो। निरपेक्ष भाव से स्वयं को जाना। ये धारणाएँ, ये मानताएँ झूठी हैं कि तुम तू स्त्री हो या पुरुष हो? अगर यह सब धारणाएँ लेकर स्वयं को जानोगे अर्थात ज्ञान प्राप्त करोगे तो कभी आत्म बोध हो ना सकेगा। क्योंकि जिसको तुम भीतर विराजमान पाओगे, वो स्वयं परमात्मा होगा। ये क्या झूठी धारणाएँ लेकर बैठे हो कि स्त्री हो या पुरुष? साधु हो या असाधु हो? ये मानताएँ झूठीं हैं। क्योंकि तुम ना स्त्री हो, ना पुरुष हो, तुम्हारे भीतर स्वयं परमात्मा विराजमान है। ये अहंकार झूठा है कि तुम स्वयं को स्त्री या पुरुष मानते हो , साधु या असाधु मानते हो ? गरीब या अमीर मानते हो ? जो तुम हो नहीं लेकिन तुमने मान रखा है ये अहंकार का लक्षण है। अहंकार हटे , तो परमात्मा के दर्शन भी हों।
और इसी अहंकार की वजह से तुमने दया, करुणा, क्षमा, प्रेम, सत्य, खो दिया है। 


ये अहंकार है कि तुम स्वयं को पुरुष मानते हो या स्त्री मानती हो? अहंकार ही तुम्हें अनन्त दुख और पीड़ा देता है। इसलिए इस अहंकार को छोड़ो कि तुम साधु हो या असाधु हो? जैसे-जैसे जीवन में स्वयं का अर्थात परमात्मा का बोध उतरता जाएगा , वैसे वैसे तुम्हारा अहंकार क्षीण होता जाएगा, शिथिल पड़ता जायेगा। जैसे-जैसे तुम्हारा अहंकार शिथिल पड़ता जाएगा, ठीक वैसे वैसे परमात्मा की उपलब्धि हो जायेगी।


निष्कर्ष - श्रीराम ने कहा कि अपने वर्ण ,आश्रम, अपनी मानताएँ, अपने परंपराएँ, अपने अहंकार को त्याग कर सदगुण को ग्रहण करो। परमात्मा तक पहुंचना हो तो पात्रता लाओ, जीवन सुधारो, जीवन बदलो, जीवन की ढर्रों, मान्यताओं परंपराओं ,अहंकार को छोड़ो और सदगुण ग्रहण करो। जीवन में त्याग हो, प्रेम हो , सरलता हो, करुणा हो, दया हो, क्षमा हो, संतोष हो, ईमानदारी हो, सच्चाई हो। और जीवन में जब ऐसी पात्रता आ जाए, तो सच्चे गुरु के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करो।

 उपनिषदों को समझलो , गीता को समझ लो।



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1 टिप्पणी

  1. जय श्री राम
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