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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

मीरा बाई

असली मोहब्बत जाननी हो तो मीरा बाई के पास जाइए


प्रेम का दूसरा नाम मीरा है। मीराबाई की बड़ी निराली भक्ति है, उनका प्रेम अलौकिक है। कहा जाता है कि बचपन से ही मीरा कृष्ण प्रेम की दीवानी थी। मैंने सुना है कि मीरा के बचपन में उसके घर पर एक साधू आया था। उस साधु के पास कृष्ण की एक प्यारी सी मूर्ति थी। साधु रोज 
उस प्यारी सी मूर्ति की पूजा करता था। मीरा ने जब देखा कि साधु के पास एक प्यारा सुंदर मूर्ति है। मीरा ने साधु से मूर्ति माँगा लेकिन साधु ने कृष्ण की मूर्ति देने से इंकार कर दिया। साधु वहाँ से चला गया। मीरा हठ करके बैठ गयी कि जब तक कृष्ण की मूर्ति नहीं मिलेगी, तब तक खाना पानी को हाथ न लगाऊंगी। यही सच्चे साधक की पहचान है कि वे सब कुछ त्याग सकते हैं लेकिन सत्य का सानिध्य कभी नहीं। मैंने सुना है कि मीरा ने दो तीन दिन तक खाना पानी कुछ नहीं खाया , वो तीन दिन तक रोती रही कृष्ण की मूर्ति के लिए। छोटी सी नन्हीं सी मीरा लेकिन हठ देखो उसका। पिता ने देखा कि मीरा कुछ खा पी नहीं रही है, रूठ गयी है, रोती रहती है , तो उन्होंने जाकर साधु से विनती किया कि वे मूर्ति दे दें। लेकिन साधु नहीं माना। साधू बोला कि मैं अपने इष्ट देव को कभी अलग नहीं करूँगा। अंततः मीरा के पिता निराश होकर वापस आ गए। उसी रात को साधु को सपना आया कि यदि तुम अपना भला चाहते हो तो मूर्ति उस बच्ची को जाकर दे दो। साधू घबरा गया। वो रोज कृष्ण की पूजा करता था, घंटी बजाता था लेकिन उसे कभी कृष्ण के दर्शन न हुए थे। साधू सुबह उठते ही भाग कर मीरा के घर आया और उसको मूर्ति दे दी। अब मीरा मूर्ति को पाकर खुश हो गई। अब मीरा उसी मूर्ति में रात दिन व्यस्त रहती। हमेशा उसी मूर्ति में मग्न रहती। असली साधु की यही पहचान है कि वो आत्मा में ही रमा रहता है, मग्न रहता है। साधु को बाहरी किसी ऐश्वर्य की जरूरत नहीं। 

मैंने सुना है कि पड़ोस में किसी कन्या की शादी हो रही थी , मीरा ने शादी होते हुए देखा तो अपनी माँ से पूछने लगी कि सबका विवाह होता है, मेरा विवाह कब होगा ? मेरा वर कौन है? तो माँ ने मजाक में कह दिया कि ये जो तेरा गिरधर गोपाल है, यही गिरधर गोपाल तेरे वर हैं। माँ ने देखा कि हमेशा ये गिरधर गोपाल के साथ खेलती रहती है, नाचती रहती है , गूनगुनाती रहती है, तो माँँ ने मजाक में कह दिया। माँ को नहीं मालुम था कि मजाक में कही बात मीरा के जीवन को रूपांतरित कर देगा। अब मीरा का कृष्ण के प्रति स्नेह और दृढ़ हो गया। प्रेम का कोई नियम , कोई शास्त्र नहीं होता। मीरा प्रेम की गीत है। माँ ने मजाक में कहा था कि यही नंदलाल कृष्ण तेरे पति है लेकिन मीरा के भीतर ये भाव बैठ गया कि कृष्ण ही उसके प्रेमी पति हैं। उसी दिन से मीरा ने सारा प्रेम , सारा स्नेह कृष्ण को समर्पित कर दिया। साधकों को भी मीरा की भाँति सारा जीवन सत्य को समर्पित कर देना चाहिए। मीरा के बचपन में ही उनकी माँ का देहांत हो गया।
मीरा के दादा जी ने पालन पोषण किया। फिर दादा जी का भी देहांत हो गया। फिर मीरा जी का विवाह हुआ। थोड़े दिन बाद ही उनके पति का भी देहांत हो गया। फिर ससुर भी चल बसे और बाद में पिता का भी देहांत हो गया। धीरे-धीरे मीरा का सारा स्नेह परिवार से जाता रहा और कृष्ण के प्रति प्रेम बढ़ता गया। धीरे धीरे मीरा का परिवार संसार छोटा होता गया और परमात्मा उतरने लगा। धीरे धीरे अनात्मा विदा होता गया हो आत्मा उपलब्ध होता गया। पाठकगण यहाँ ध्यान दें आत्मा, परमात्मा , ब्रह्म कृष्ण, एक दूसरे के पर्याय हैं।

प्रिय आत्मन! जैसे जैसे आप संसार से विरक्त होते जाओगे , वैसे वैसे आप परमात्मा को उपलब्ध होते जायेंगे। यहाँ सब कुछ नश्वर है, ये संसार घर नहीं है , ये संसार मरघट है, कोई आज मरेगा,कोई कल मरेगा, यहाँ कोई बचने वाला नहीं, सब क्षणभंगुर है , यहाँ कोई आज तक टिका नहीं। अतः भलाई इसी में है कि शाश्वत में जीवन को लगाओ। एक दिन तो ये संसार , ये विषय भोग , ये साथी संगी सब तो छूट ही जायेंगे। उस समय जब संसार छूटेगा तब तुम उसका आनंद ना ले सकोगे, तुम्हें दुख होगा , कष्ट होगा। इसलिए भलाई इसी में है कि अनित्य और क्षणभंगुर जानकर संसार में आसक्ति त्याग दो और परम शांति को उपलब्ध हो जाओ। मैने सुना है कि मीरा मंदिरों में , सड़कों पर हर जगह नाचने लगीं। साधू संतो के संग बैठ कर गीत गाने लगीं। मीरा साधु संतों के संग बैठती, हरि भजन में डूबी रहतीं , तो उनके देवर महाराना विक्रमाजीत को अच्छा नहीं लगता। तो जहाँ जहाँ मीरा जी ने राणा शब्द का उपयोग किया है तो उनका आशय उनके देवर महाराणा विक्रमाजीत से है। जब मीरा साधु संतों के संग हरि भजन में नाचने लगीं, झूमने लगीं , तो मीरा दूर दूर तक विख्यात हो गयीं। दूर दूर से लोग आने लगे , भीड़ बढ़ती चली गई। राणा से ये सब तमाशा देखा ना जा सका तो राणा ने मीरा के बचपन की दो सहेलियों को मीरा को समझाने को कहा कि वो साधू संतो के संग ना बैठे। लेकिन मीरा का प्रेम अलौकिक, भक्ति अलौकिक, सहेलियाँ भी कृष्ण प्रेम में लीन हो गयी , सहेलियाँ गई थी मीरा को समझाने के लिए लेकिन प्रेम का ऐसा जादू कि वो मीरा संग नाचने लगीं। प्रेम तो ऐसा ही होता है कि पत्थर में भी प्राण डाल दे, वो तो फिर भी सहेलियाँ थी। उन सहेलियों को भी प्रेम का रोग लग गया। वो भी मीरा के साथ हो गयीं।

मीरा का प्रेम दिव्य है, मीरा कृष्ण की मुरली हो गईं, मेरा संगीत हो गईं , कोई भी मीरा के पास पहुँचता तो वो कृष्ण प्रेम लीन हो जाता। यही प्रेम का प्रभाव है, यही भक्ति की पराकाष्ठा है, जैसे कृष्ण की बासुरी बजती, वैसे ही गोपियाँ कृष्ण में मुग्ध हो जाएँ, ऐसे ही मीरा भी हो गई। कोई मीरा की पास बैठा हो और गाये नहीं , नाचे नहीं, गुनगुनाये नहीं, भला ये कैसे हो सकता है? मैने सुना है कि राणा ने जहर भेजा , और मीरा कृष्ण का नाम लेकर पी गयीं , जहर अमृत हो गया। तुम जैसे होते हो , वैसे तुम्हें सिरा जगत दिखाई देता है। पीलिया के रोगी को सारा संसिर पीला दिखाई देता है। जैसे तुम्हारी चेतना का स्तर है ,वैसे ही तुम्हें संसार भी दिखाई देता है। मीरा तो प्रेम की गीत हैं, उन्हें जहर में भी अमृत दिखाई देने लगा। वैज्ञानिक भले ही इस बात को माने या ना माने कि विष अमृत कैसे हो सकता है? ये बात तर्क की नहीं है, ये प्रेम का मामला है। जैसी तुम्हारी सोच, वैसी तुम्हारी दुनिया। विष अमृत हुआ हो यि ना हुआ हो इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं लेकिन ये बात समझने योग्य है कि जैसे तुम्हारे तुम होते हो , वैसी ही तुम्हें दुनिया दिखाई देती है। तुम जितने शुद्ध होओगे, तुम जितने प्रेमपूर्ण होओगे, दुनिया भी तुम्हें वैसी ही दिखाई देगी। राणा ने साँप भिजवाया ,मीरा ने साँप को भी कृष्ण समझ कर गले लगा लिया। साँप ने भी मीरा को काँटा नहीं , साँप में उतना जहर होता नहीं जितना जहर मनुष्य में होता है, साँप भी वहीं हमला करता है, जहाँ उसको असुरक्षा मालूम पड़ती है। साँप के जहर से भी ज्यादा प्रबल मनुष्य की ईर्ष्या है। साँप के जहर का इलाज तो है लेकिन मनुष्य के ईर्ष्या का, द्वेष का कोई इलाज नहीं।

मैने सुना है कि मीरा बाद में वृंदावन चली गयीं। वहाँ पर भी मीरा ज्यादा समय तक रुकी नहीं, मीरा द्वारिका चली गयी। कुछ वर्षों के बाद राजस्थान के दूसरे राजा हुए। राजा उदयसिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उदयसिंह को साधुओं के प्रति बड़ा प्रेम था। उसने मीरा को द्वारिका के वापस आने के लिए संदेश भिजवाया। लेकिन मीरा संदेश वाहकों को समझाया कि अब कृष्ण को छोड़कर कैसे आऊँ? फिर उदयसिंह ने बड़ा प्रयत्न किया कि जाओ , मीरा हर तरह से समझाओ , मीरा को लेकर आओ। मीरा से हठ कर लेना। लोगों ने धरना दे दिया कि मीरा चलो हमारे साथ नहीं हम खाना पीना कुछ भी ना खायेंगे, यहीं भूखे मर जायेंगे। मीरा ने जब लोगों का हठ देखा तो मीरा ने कहा कि ठीक है मैं कृष्ण से पूछ लेती हूँ। मैने सुना है कि मीरा मंदिर में गयी और फिर बाहर ना आयी। वो कृष्ण में समा गयी। अंततः भक्त भगवान में मिल ही है। अंततः भक्त भगवान हो जाता है। हरि और हरि के जन एक ही होते हैं। मीरा वो मन है जो सत्य को समर्पित है, जो कृष्ण को समर्पित है। हमारा मन ही मीरा है। कृष्ण का अर्थ है - मन का वो आखरी बिंदु जहाँ मन पहुंचकर शांत , तृप्त और संतुष्ट हो जाता है। तुम्हारे यथार्थ का नाम है मीरा, तुम्हारे संभावना का नाम है कृष्ण। जो तुम अभी हो वो तुम मीरा जैसे हो, जो तुम हो सकते हैं उनका नाम है कृष्ण। कृष्ण हमारी संभावना है। हम कृष्ण भी हो सकते हैं यदि हम मेरा हो पाएँ तो। कृष्ण की पूजा का अर्थ ये नहीं होता कि कृष्ण की मूर्ति को मक्खन चटा रहे हो, मिठाई खिला रहे हो , अगरबत्ती लगा रहे हो , फूल मालाएं चढ़ा रहे हो, कृष्ण पूजा का अर्थ है कृष्ण जैसा हो जाना। जो फूल , मालाओं और अगरबत्ती से कृष्ण की पूजा करता है, वास्तव में वह कृष्ण की पूजा नहीं करता।
वास्तव में वह कृष्ण की पूजा नहीं करता। कृष्ण की पूजा का अर्थ है कृष्ण जैसा आचरण जीवन में लाना, कृष्ण जैसा व्यक्तित्व जीवन में लाना।

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3 टिप्पणियां

  1. Bahut hi sundar
  2. असली मोहब्बत करती थीं मेरा 🙏🙏
  3. असली मोहब्बत करती थीं मेरा 🙏🙏
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