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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

केन उपनिषद

केन उपनिषद भाष्य

प्रश्न्न- हमारी इंद्रियां किसकी प्रेरणा से अपने अपने काम में संलग्न होती हैं? अर्थात परमदेव परमात्मा कौन है?

उपनिषद के ऋषि: प्रिय आत्मन्! उस परम पुरुष अविनाशी परमात्मा की वजह से ही इंद्रियां अपने अर्थों में बर्ततीं हैं। उस परमात्मा को ये आंखें नहीं देख सकती, किंतु परमात्मा की वजह से ही ये आंखे सब कुछ देखने में सक्षम है। वो परमात्मा इन कानों से सुनाई न देगा किंतु परमात्मा की वजह से ही कान सुनने में सक्षम हैं। वो परमात्मा इन वाणीं से तो व्यक्त नहीं हो सकता लेकिन परमात्मा की वजह से वाणी जरूर व्यक्त होते हैं। धीर और ज्ञानी पुरुष ऐसा जानकर परम शांति को प्राप्त करते हैं।
जो तर्क वितर्क से परे है, उसी को तुम परमात्मा जानो। जो चित्त में समाहित नहीं हो सकता , उसी को तुम ब्रह्म (परमात्मा) जानो। परमात्मा निर्गुण ,निराकार, अविनाशी है। जो कहता है कि मैं ब्रह्मज्ञानी हूँ ,वो वही है जिसको ब्रह्म का कुछ पता नहीं है। अर्थात ब्रह्म ज्ञान का अभिमान करना मूर्खतापूर्ण है। हमारी बुद्धि इतनी सीमित है, वो विराट और अनंत परमात्मा समाये कैसे? 
जो कहते हैं कि हमने परमात्मा को जाना है वो वही लोग हैं जिन्होंने ब्रह्म को कभी नहीं जाना। इसीलिए मोक्ष की इच्छा रखने वाले साधकों को चाहिए कि वह परमात्मा का श्रद्धा पूर्वक मीमांसा करें, अभिमान नहीं। परमात्मा को जानने का अर्थ है कि अहंकार का निर्वाण हो जाना।

जो साधक श्रवण, मनन और निधि अध्ययन के साथ साक्षात से परमात्मा को जानने की चेष्टा करते हैं वे ही परमात्मा को जान पाते हैं, अपने ज्ञान का झूठा अभिमान करने वाले पंडित पुरोहित कहे जाने वाले लोग ब्रह्म को नहीं जान पाते। बार-बार जानने और चिंतन मनन से उस परमात्मा को जाना जा सकता है और मुक्ति मिल सकती है। प्रिय आत्मन! वो परमात्मा इस जगत के कण कण में व्याप्त है, हजारों लोगों में कोई बिरला ही उस परमात्मा को जानने की चेष्टा करता है, और चेष्टा करने वालों में से कोई बिरला ही उस परमात्मा को भली भाति तरफ से जान जाता है। जो उस ब्रह्म के स्वरुप को जान जाता है, जो उस अविनाशी परमात्मा को जान जाता है उसका जीवन सफल हो जाता है, और उस परमात्मा को नहीं जान पाते वो दयनीय हैं कृपण हैं। जो ब्रह्म को जानता है , वो ब्रह्म ही हो जाता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। जो परमात्मा में स्थिति वाला है वह अक्षय आनंद को प्राप्त होता है। जिसको अग्नि जलाने में सक्षम नहीं है, जिसको वायु सुखाने में सक्षम नहीं है , जिसको शस्त्र बेधने में सक्षम नहीं है, जिसे जल अपने में डुबो नहीं सकता वही अविनाशी परम ब्रह्म परमात्मा है। इसलिए साद खून को चाहिए कि उस परम पिता परमात्मा को जानने के लिए सत गुण का सेवन करें। इससे साधक के अंतकरण की स्वच्छता होगी।

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