प्रश्न्न- उपनिषद का अर्थ क्या होता है?
समाधान- उपनिषद का अर्थ होता है - सत्य के समीप बैठना या सत्य को जानने के लिए गुरु के पास बैठना।
प्रश्न्न- बंधन क्या है? मुक्ति क्या है?
उपनिषद के ऋषि - अहंकार ही बंधन है। विषय भोग में आसक्त मन ही बंधन है। जो आप हो नहीं, लेकिन मानकर बैठे हो कि मैं हूँ , यह अहंकार का लक्षण है। अहंकार की वजह से मनुष्य अनंत अनंत दुख भोगता है। दुख का मुख्य कारण अहंकार ही है। अहंकार का मिट जाना ही मुक्ति है। इसी को शिव निर्वाण कहा है। निर्वाण का अर्थ होता है मिट जाना, लय हो जाना। सत्य कभी नहीं मिटता। गीताकार योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार आत्मा ही सत्य है। अहम् भाव का मिट जाना ही मुक्ति है।
प्रश्न्न- विद्या क्या है? अविद्या क्या है?
उपनिषद के ऋषि - संसार का मूल कारण अज्ञान ही है। अविद्या के कारण ही मनुष्य में अहंकार आता है। और जिस ज्ञान के द्वारा अहंकार का नाश होता है वही ज्ञान विद्या है।
प्रश्न्न- मै नास्तिक हूँ , परमात्मा को कैसे माने?
समाधान - ये तो ऐसे हुआ कि जैसे कोई लकड़ी का रथ हो और वह पूछे कि मैं कैसे मानू कि बढ़ई है? रथ है तो बढ़ई भी होगा ही। वह रथ अपने आप तो नहीं बना ना। परमात्मा तो इतना विराट कि वाणी से व्यक्त नहीं हो सकता किंतु परमात्मा की वजह से वाणी जरूर व्यक्त होते हैं। परमात्मा तो इतना विराट है कि इन भौतिक आँखों में समाए कहांँ से? परमात्मा इन आँखों से तो नहीं दिखेंगे लेकिन परमात्मा की वजह से आँखें जरूर सब कुछ देखती हैं।
प्रश्न्न - अध्यात्म माने क्या ?
समाधान - आत्मा के आधिपत्य को अध्यात्म कहते हैं। स्वयं के शाश्वत स्वरूप को जानने का नाम है - आध्यात्म। जिसने स्वयं को जाना उसने परम को जान लिया। अब उस साधक को कण कण में परमात्मा की एकरूपता दिखेगी, अब वो पेड़ की डाल भी ना काट सकेगा , उसकी आंखों से आंसू बहेंगे। कण-कण में राम दिखता है, काट कैसे दूँ? वह साधक तो इतना प्रेमपूर्ण , इतना सच्चा हो जाएगा, रात को खाना भी ना खा सकेगा कि कहीं कोई कीड़ा मर ना जाए। वो दिन में चलेगा भी तो ध्यान से कहीं कोई कीड़ा पैर के नीचे ना दब जाए।
इसीलिए महावीर रात में करवट न बदलते थे कि कहीं कोई जीव दब ना जाए। स्वयं और ब्रह्म को एक रूपता के साथ देखना ही अध्यात्म है।
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