नर मूढ क्यों भुलाया, दिल में करो विचारा
चिरकाल का नहीं है, सुत बँधवा-सहारा
'घी डालने से ज्योति , कबहूँ न शान्त होती
तृष्णा विशेष बढ़ती, भोग आदि है पसारा
तेरा शरीर झड़ता, जैसे कपूर उड़ता
किमि मोह - सिन्धु पड़ता, जल्दी गहो किनारा
आनन्द जाहि माना, उसका न मर्म जाना
मृग नीर के समाना, सब झूठ ही पसारा
जो विश्व का अधारा, अरु 'राम' रूप प्यारा
उसका करो विचारा, दुख दूर हो तुम्हारा
जान नर जान अब अपनो स्वरूप जान
सत चित, सुख, शुद्ध, मुक्त तेरो रूप है
वासना को त्याग गुरु-शास्त्र अनुराग जेहि
सहज स्वरूप ज्ञान होवै जो अनूप है
कर्मऽरु उपासना सों चित्त, शुद्ध, शान्त करि,
ओम ओम जाप कर, छूटै भव कूप है
काहू सों न बोल कछु, निज में मग्न रहु,
तू तो शिवरूप, 'राम' भूपन को भूप है ॥
अपकीर्ति हुई जिसकी जग में,
उसको अब मृत्यु कहाँ चहिये?
जब क्रोध बसे जिसके उर में,
उसको तब सर्प कहाँ चहिये?
नित शील बसे जिसके तन में,
तब भूषन ताहि कहाँ चहिये ?
जिसका मन शुद्ध हुआ उसको,
'राम' सुतीर्थ कहाँ चहिये?
संतोष बसें जिसके उर में,
उसको धन और कहाँ चहिये?
नित शान्ति बसी जिसके उर में,
उसको वर नारि कहाँ चहिये?
हरि-भक्ति वसी जब 'राम' हिये,
उसको सुख आन कहाँ चहिये?
जब आत्म-ज्ञान हुआ उर में,
तब और सुलाभ कहाँ चहिये?
मेरे गिरधर गुपाल दूसरो न कोई
तात मात भ्रात बंधु अपना नहि कोई
दई कुल की कान क्या करिहै कोई
संतन संग बैठ बैठ लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक टूक ओढ़ लीन्ह लोई
जा के सिर मोर मुकट मेरो पति सोई
मोती मूँगे उतार बन माला पोई
अँसुवन जल सींच सींच प्रेम बेल बोई
अब तो वेल फैल गई आनँद फल होई
दूध की मथनिया बड़े प्रेम से बिलोई
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई
आई मैं भक्ति काज जगत देख मोही
दासी मीरा गिरधर प्रभु तारो अब मोही
मीरा को प्रभु साची दासी बनायो ।
झूठे धंधों से मेरा फंदा छुड़ायो
लूटे ही लेत बिबेक का डेरा, बुधि बल यदपि करूँ बहुतेरा
हाय राम नहिं कहुँ बस मेरा, मरत हूँ विवस प्रभु घाओ सबेरा
धर्म उपदेस नित प्रति सुनती हूँ, मन कुचाल से भी डरती हूँ
सदा साधु सेवा करती हूँ, सुमिरणध्यान में चित घरती हूँ
भक्ति मार्ग दासी को दिखाओ, मीरा को प्रभु साची दासी बनायो
म्हाँरे सिर पर सालिगराम, राणाजी म्हाँरो काई करसी
मीरा सूँ राणा ने कही रे, सुन मीरा मोरी बात
साधु की संगत छोड़ दे रे, सखियाँ सव सकुचात मीरा ने सुन यों कही रे, सुन राणा जी बात
साधु तो भाई बाप हमारे, सखियाँ क्यूँ घबरात
जहर का प्याला भेजिया रे, दीजो मीरा हाथ
अमृत करके पी गई रे, भली करें दीनानाथ
मीरा प्याला पी लिया रे, बोली दोउ कर जोर
तैं तो मारण की करी रे, मेरो राखणहारी ओर
आधे जोहड़ कीच हैं रे, आधे जोहड़ हौज
आधे मीरा एकली रे, आधे राणा की फौज
काम क्रोध को डाल के रे, सील लिये हथियार जीती मीरा एकली रे, हारी राणा की धार
काचगिरी का चौतरा रे, बैठे साधु पचास
जिन में मीरा ऐसी दमके, लख तारों में परकास
टाँडा जब वे लादिया रे, बेगी दीन्हा जाण
कुल की तारण अस्तरी रे, चली है पुष्कर न्हाण
बसो मेरे नैनन में नंदलाल
मोहनी मूरति साँवरि सूरति बने नैन बिसाल
अधर सुधा रस मुरली राजित, उर बैजंती माल
छुद्र घंटिका कटि तटि सोभित, नूपुर सब्द रसाल मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वत्सल गोपाल
मेरो मन राम हि राम रटै रे
राम नाम जप लीजे प्राणी, कोटिक पाप कटै रे
जनम जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटे रे कनक कटोरे अमृत भरियो, पीवत कौन नटेर रे मीरा कहे प्रभु हरि अविनासी, तन मन ताहि पटे रे
मेरे तो एक राम नाम दूसरा न कोई
दुसरा न कोई साधो सकल लोक जोई
भाई छोड़ा बँधु छोड़ा छोड़ा सगा सोई
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई
भगत देख राजी हुई जगत देख रोई
प्रेम नीर सींच सींच विष बेल धोई
दही मथकर घी काढ़ लियो डार दई छोई
राणा विष को प्याल्यो भेज्यो पीय मगन होई
धन तो बात फैल पड़ी जाये सब कोई
मीरा राम लग लगी होनी होय सो होई
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