मोटिवेशन की जरूरत पड़ती ही तभी है जब काम बहुत घटिया और गिरा हुआ हो। अगर काम सच्चा है, सही है, सार्थक है , तो काम ही मोटिवेशन बन जाएगा फिर बाहर से किसी मोटिवेशन की जरुरत नहीं पड़ेगी। दुर्योधन का काम बहुत घटिया था , इसलिए उसको बार-बार मोटिवेशन की पड़ती थी। शकुनि भी बहुत बड़ा मोटिवेशनल स्पीकर था। आजकल के जो मोटिवेशनल स्पीकर हैं, वो शकुनि जैसे ही हैं। दुर्योधन का इरादा ही गिरा हुआ, गंदा, घटिया, तुच्छ था, इसीलिए उसको मोटिवेट करने के लिए बार बार शकुनि उसको मोटिवेशन का नशा देता रहता था। अर्जुन को किसी मोटिवेशन की जरुरत नहीं , अर्जुन को स्पष्टता की जरूरत है, अर्जुन को ज्ञान की जरूरत है। कभी किसी स्वतंत्रता सेनानी को देखा है, जो बार बार मोटिवेशनल वीडियो देखते थे? भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद , बादल गुप्ता, विनय बोस गुप्ता, प्रीति लता ऐसे बहुत से स्वतंत्रता सेनानी थे। इन सेनानियों ने कभी मोटिवेशनल वीडियो देखा था कि चलो अब मोटिवेशनल वीडियो देख लेते हैं। इन्होंने कभी कहा था कि बहुत हो गया आंदोलन,बहुत हो गई लड़ाई, चलो मोटिवेशनल वीडियो देख लेते हैं। ये सीख तो हमें सेनानियों ने ही दे दिया था कि किसी सार्थक और ऊँचे काम में लगोगे तो किसी मोटिवेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी, काम ही मोटिवेशन हो जाएगा।
अगर काम ऊँचा और सार्थक है , तो काम से ही प्रेम हो जाएगा ,तो बाहरी किसी मोटिवेशन की जरुरत नहीं पड़ेगी। मोटिवेशन की जरूरत ही तभी पड़ती है , जब काम दुर्योधन के तल का हो, अगर अर्जुन जैसा ऊँचा और सार्थक काम करना हो, तो मोटिवेशन की नहीं, ज्ञान की, स्पष्टता की जरूरत है।
पहले अपने काम का ,अपने जीवन का, अपने लक्ष्य का निरीक्षण करो। पहले जाँच तो लो कि जो लक्ष्य निर्धारित किया है, वह पाने योग्य है कि नहीं है? विज्ञापनों और समाचारों के माध्यम से तुम्हें पता चला कि लोग मालदीव जा रहे हैं, लंदन जा रहे हैं, अमेरिका जा रहे हैं, घूमने जा रहे हैं, मजे ले रहे हैं , प्रकृति को तबाह कर रहे हैं, तो वही तुम्हारा भी लक्ष्य बन गया। जिसको तुम अपनी इच्छाएँ कहते हो , अपना लक्ष्य कहते हो, अपना जीवन कर रहे हो, पहले देख तो लो कि वो कहाँ से आ रहे हैं। ऐसे तो तुम्हारे लक्ष्य बनते हैं कि जो फिल्मी स्क्रीन पर अभिनेता या अभनेत्री ने कर दिया , जो समाचार में सुर्खियों में आ गया, जो विज्ञापन के माध्यम से तुम्हारे पास पहुंच गया। जो तुम्हारा अभी लक्ष्य है वह बहुतों को मिल चुका है। देख लो उनका जीवन एक बार। तुम IAS , IPS , दरोगा, पुलिस ,DM बन जाओ, इससे तुम सुकरात और प्लेटो नहीं हो पाओगे। सुकरात और प्लेटो होने के लिए बड़ी इमानदारी और साहस चाहिए। बुद्ध , महावीर, सुकरात ,प्लेटो, चंद्रशेखर आजाद कभी मोटिवेशन की ओर जाते थे? इन महानुभावों का काम ही इतना ऊंचा और सार्थक था कि बाहर से किसी मोटिवेशन की जरुरत नहीं पड़ी। दुर्योधन को बार-बार मोटिवेशन की जरूरत पड़ती थी कि दुर्योधन का काम दो कौड़ी का था , शकुनि भी बहुत बड़ा मोटिवेशनल स्पीकर था, आज कल के मोटिवेशनल स्पीकर भी शकुनि जैसे ही होते हैं। तुमसे कभी यह पूछते ही नहीं कि ये सब क्यों करना चाहते हो , वो केवल कहते हैं कि तुम कर सकते हो , तुमसे होगा। काम अगर ऊँचा हो सार्थक हो, तो किसी उत्साह की जरूरत नहीं पड़ती, काम ही उत्साह बन जाता है।
ये जो बार-बार मोटिवेशन की तरफ भागते हो , जरा मोटिवेशन को रोक कर देखो कि काम क्या उठाया है ? , लक्ष्य कैसा बनाया है? जीवन कैसा चल रहा है? जब अपने प्रति थोड़ा इमानदारी रखोगे, जब अपने प्रति थोड़ा प्रेमपूर्ण हो जाओगे , तब होश आएगा कि जो लक्ष्य बनाया है , वह लक्ष्य ही दो कौड़ी का है। और जब ऊँचा और सार्थक काम पकड़ोगे, तो किसी बाहरी मोटिवेशन की जरुरत नहीं पड़ेगी।
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