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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

दिवाली : उत्सव से पहले बोध

दिवाली उत्सव से पहले बोध का प्रकाश



हमारे जीवन में सत्य के आने पर , जो प्रकाश होता है उस प्रकाश को दिवाली कहते हैं। तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलो , झूठ से सत्य की ओर चलो। राम सत्य के , प्रेम के प्रतीक हैं। राम (सत्य) इतने विराट हैं कि वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता। राम इतने विराट हैं कि उनको मन और बुद्धि से समझा नहीं जा सकता। ये जगत भ्रम है, विचार है, और आप देखने वाले दृष्टा हैं। साधकों को हंस की तरह रहना चाहिए। जिसप्रकार हंस केवल दूध पीता है और पानी को छोड़ देता ठीक वैसे ही साधकों को सदगुण और सत्य को ग्रहण करना चाहिए, अंधकार और मिथ्या को त्याग देना चाहिए। भीतर प्रकाश तो है ही, हमने उस पर कई तरह के आवरण डाल रखा है। आसक्ति का , मोह का, अज्ञान का जो आवरण हमारे मन पर घिरा हुआ है, भीतर इस कचरों को , आवरण को हटाना है। दिवाली पर घर की सफाई तो ठीक है, परंतु उससे भी महत्वपूर्ण है मन की शुद्धि। यदि मन निर्मल और स्वच्छ नहीं हुआ ,तो केवल बाहरी सफाई से क्या लाभ? दिवाली में प्रकाश इस बात को संकेत करता है कि हमारे जीवन में जरा ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित हो और अज्ञान का अंधकार मिटे। हम सभी के जीवन में राम उतरें। राम उतरने का अर्थ है जीवन में सत्य उद्घाटित हो।

दिवाली हो या अन्य कोई त्यौहार , उत्सव या पर्व हो, वो इसीलिए है कि जरा भीतर प्रेम जगे। मन का मैल साफ हो, भीतर जरा मन प्रकाशित हो जाए। और जब भीतर राम उतरें, मन प्रकाशित हो जाए, तो संकेत के लिए बाहर भी दिपक जला दीजिए। बाहरी दीपक संकेत भर होता है कि मन साफ हुआ , जीवन से बोझ हटा , प्रेम जागृत हुआ, रामत्व हृदय में उतरा। लेकिन इसके बजाय दिवाली में क्या हो रहा है? उपभोग और प्रदूषण। जीवन से बेईमानी घटे, भीतर सरलता हो ,सहजता हो , तेज हो। जनमानस के लिए दिवाली आज है, शबरी के लिए दिवाली उस दिन था, जिस दिन राम उसके पास पहुँचे थे। मीरा के लिए दिवाली उस दिन था जिस दिन कृष्ण मिले थे। योगी और संयासी के लिए दिवाली उस दिन होती है जिस दिन उनका योग सिद्ध होता है। निर्गुण ,निराकार ,अविनाशी ब्रह्म को ही राम कहते हैं। निर्गुण ,निराकार, अविनाशी ब्रह्म(राम) के सिवाय कुछ सत्य नहीं है।
 राम अवतार हैं, उन्होंने अवतार हमारे कल्याण के लिए लिया ,हमारी मुक्त के लिए लिया। उनका वास्तविक स्वरुप निर्गुण, निराकार ,अविनाशी ब्रह्म है।

राम को व्यक्ति की तरह मत देखो, राम को अपने भीतर दृष्टा के रूप में देखो। राम इतने विशाल हैं कि इंद्रियों में समा नहीं सकते। गुरु योगवशिष्ठ के अनुसार इंद्रियों में क्षमता ही नहीं कि राम को देख सकें। अर्थात राम की पूजा, राम का दर्शन इंद्रियों के अंतर्गत नहीं आता है अर्थात बाहर राम की पूजा नहीं हो सकती, राम इन आंखों से नहीं दिखेंगे। भीतर बहुत प्रकाश है परंतु हमने बाहर से बहुत सारा कचरा लाद दिया है इसलिए वो प्रकाश दिख नहीं रहा है, लुप्त सा हो गया है, दिवाली के दिन इस कचरे को , इस भ्रम को हटाना है। राम को मत देखो, स्वयं को देखो क्योंकि बाहर तो केवल छवियाँ ही दिखेंगी। और जब तक बाहर छवियाँ को ही देखते रहोगे तब तक आत्म बोध न कर सकोगे, राम तक नहीं पहुंच सकोगे। बाहरी कोई राम या कृष्ण होते नहीं , अपने भीतर देखो और जब अपने भीतर उतरोगे , तो जिसको तुम विराजमान पाओगे वो स्वयं राम ही होंगे, बाहर कोई राम नहीं होते। तुम्हारी गलती यही है कि तुम अपने से बाहर किसी परमात्मा, किसी भगवान, किसी खुदा की खोज करते हो। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर को अपने से बाहर मत देखो, और जब तुम स्वयं को देखोगे अपने भीतर झाँकोगे, तो तुम स्वयं के भीतर परमात्मा को विराजमान पाओगे, परमात्मा तुमसे भिन्न नहीं होगा। और जिस दिन तुम स्वयं को परमात्मा ने ही लीन पाओगे, उस दिन तुम्हारे लिए हर दिन दिवाली जैसा ही होगा। जिस दिन तुम्हें उपनिषद और गीता समझ में आने लग गये, उस दिन से तुम्हारे लिए रोज दिवाली होगी, रोज त्यौहार होगा। तुम आनंद में विराजमान हो जाओगे।


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