वस्तुतः हमारी इंद्रियाँ बहिर्मुखी हैं, इसीलिए हम बाहर की चीजों में सुख तलाश करते हैं। हमें लगता है कि हमें बाहर से कुछ मिल जाएगा, उसके बाद हम सुखी हो जाएगी। बाहर की चीजें छोटीं हैं, वह हमें कभी तृप्ति, संतुष्टि, शांति नहीं दे सकती। पर हमारा हठ देखो , हम सब पूरा जीवन बाहरी अचीवमेंट के पीछे लगा देते है। और इन्हीं बाहरी तृष्णाओं ने हमें दुख दे रखा है। हम खाने ,पहनने , रहने, हर जगह पर सुख तलाश करते हैं। हमें लगता है कि संसार की विषय वस्तु को भोग करके हमें सुख मिलेगा, जो कदापि संभव नहीं है। हमें यह भ्रम हो गया है कि हमारे अंदर कुछ अपूर्णता है जो किसी बाहरी चीज को पाने से तृप्त हो जाएगा। और इसीलिए हम अपने भौतिक तृष्णाओं को पूरा करने में सारा जीवन बर्बाद कर देते हैं। इसलिए खाने में भी प्रयोग करते हैं कि कुछ ऐसा खाने को मिल जाय , जिससे थोड़ी तृप्ति मिल जाये, थोड़ा शांति मिली जाये, चैन मिल जाए। तो जब भी हम कोई चटपटी मसालेदार भोजन को खाते हैं, तो वहां से भी हमें यही आशा रहती है कि हमें थोड़ा चैन मिल जाए। तो जब हम कपड़े भी पहनते तो हमें यही आशा रहती हैं कि हमें थोड़ा सुकून मिल जाये। तो जो हमारी जीवन की सारी गतिविधियां हैं, वह चैन पाने के लिए ही करते हैं।
हम सबके भीतर एक तड़प है, एक बेचेनी है। और इसीलिए हम अपनी बेचैनी को शांत करने के लिए , अपने तड़प को शांत करने के लिए बहुत सारे प्रयोग करते हैं। हम बड़े स्वादिष्ट मसालेदार खाने का प्रयोग करते हैं, हम अपने शरीर के साथ कुछ छेड़छाड़ करते हैं, ताकि हमें चैन मिले, हम बाल को स्टाइलिश कटवा लेंगे ताकि हम सबसे अलग दिखें और हमें चैन मिले, हम कपड़े भी खूब उटपटांग पहनेंगे, ताकि हम सबसे अलग दिखें और हमें चैन मिलें। तो जो हमारी मूलभूत सारी गतिविधियां है वह इसीलिए हैं ताकि हमें चैन मिले, हमें शांति मिले। तो जब भी हम शादी करते हैं , सेक्स करते हैं , बच्चे पैदा करते हैं, चोरी करते हैं , मक्कारी करते हैं, नौकरी करते हैं, व्यापार करते हैं, तो हमारा मूल सिद्धांत यही होता है कि इससे प्राप्त चीजों को ,वस्तुओं को, सुख को भोगने से हमें शांति मिले, चैन मिले , तृप्ति मिले। लेकिन यह सब हमारा भ्रम है कि हमें बाहर की वस्तुओं से चैन मिलेगा, शांति मिलेगी। चैन अहंकार की, इच्छा की पूर्ति से नहीं मिलेगा। इच्छाओं के , अहंकार के मिटने से चैन मिलेगा। इस बात को ध्यान से समझो। हमें लगता है कि हमें बाहरी चीजों से
चैन मिलेगा, शांति मिलेगी। परंतु वास्तव में हमें चैन तब मिलेगा , हमें शांति तब मिलेगी , जब हम बाहरी विषयों के पीछे दौड़ना बंद करेंगे।
इसका अर्थ ये नहीं है कि बाहर से कुछ करो ही ना। इसका अर्थ यह है कि बाहर तो बहुत ऊंचा ऊंचा काम करो, बहुत सार्थक और सही लक्ष्य पर काम करो, परंतु ये आशा छोड़कर चलो कि बाहरी वस्तुओं से तुम्हें चैन मिलेगा। इसे ध्यान से समझो कि पंखे(छत के पंखे) को तो चलना है और बहुत सार्थक और सही ढंग से चलना है, पर जिस धूरे की वजह से वो सही ढंग से चल रहा है, उस धुरे का स्थिर होना बहुत आवश्यक है। अगर धूरा स्थिर नहीं है तो पंखा सही से चलेगा नहीं और पंखे की पंखुड़ियों टूट जायेंगी। संसारी लोगों के साथ यही तो होता है, जीवन भर बाहरी विषयों के पीछे भागते हैं और थक जाते हैं, व्याकुल रहते हैं, और संसार में सुख ढूंढते-ढूंढते मौत आ जाती है, लेकिन शांति नहीं आती है, मुक्ति नहीं आती है। भोग भोग कर भोगी खत्म हो जाता है किंतु भोगी को शांति नहीं मिलती। आपको लगता है कि आपने कोई इच्छा करी, और आपकी इच्छा पूरी हो गई तो आपको इच्छा पूरी होने से सुख मिला है। नहीं ऐसा नहीं है। इच्छा पूर्ति से सुख नहीं मिला है, इच्छा मिटने से सुख मिला है। इसलिए आपको सुबह उठने के बाद थोड़ा सा सुख अनुभव होता है, वो इसलिए होता है क्योंकि उस समय इच्छा और अहंकार का अभाव होता है। आप अपने अहंकार को मिट जाने दीजिए फिर जो होगा वो शुभ ही होगा। परंतु अहंकार मिटना ही तो नहीं चाहता। बाहरी चीजों से ध्यान हटाकर स्वयं के भीतर केंद्रित कीजिए।
मैं ये नहीं कहुँगा कि जैसे सुख नहीं टिका वैसे दुख भी नहीं टिकेगा। मैं कह रहा हूँ कि ये जो सुख और दुख का अनुभव करता है, ये जो अनुभोक्ता है इसको देखो। जब इसको देखोगे तो मालुम होगा कि अनुभव करने वाला जो है, वो अलग है और जो अनुभोक्ता को देखते वाला है , वो अलग है। तो जो दृष्टा है , अनुभोक्ता को देखने वाला है, वो तुम हो और जो अनुभोक्ता है वह अलग है , वही अंहकार है। और जिस दिन तुम अपने को अहंकार से अलग जान लोगे , तो तुम्हे मालूम पड़ेगा कि जो ये सुख-दुख हैं यह सब मिथ्या है। और जब मिथ्या जिसको जान गए हो , अब उसके लिए शोक नहीं करोगे। और अब तुम दुखों के बीच हो सकते हो लेकिन कोई दुख तुम्हारा नहीं हो सकता। तुम सुख में रहोगे लेकिन कोई सुख तुम्हारा नहीं होगा।
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