यह कैसा त्यौहार है जिसमें उपभोग की वृद्धि होती है? त्यौहार इसलिए नहीं है कि तुम अधिक उपभोग करो, चाट पकौड़े खाओ, प्रकृति को तबाह करो। त्योहार इसलिए है कि उपभोग पर अंकुश लगा सको ,प्रकृति से परमात्मा की ओर बढ़ सको, सत्य की ओर बढ़ सको। कोई भी त्यौहार हो ,हिंदू मुस्लिम ,सिख, इसाई। त्यौहारों में उपभोग की मात्रा में वृद्धि होती है। तुम्हें पसंद है चाट पकोड़े ,बकरा, मुर्गा, तो तुम त्योहार के दिन भी उन्हीं का भोग करोगे या चाट पकौड़े खाओगे , बकरे और मुर्गे की बलि दोगे और उसका मांस चबाओगे। इससे अच्छा होता कि त्योहार ही ना मनाते। प्रकृति कम से कम तबाह होने से तो बच जाती। अधिक जनसंख्या के कारण और मनुष्य के बढ़ते उपभोग के कारण पृथ्वी वैसे ही विनाश के कगार पर खड़ी है। जंगल तेजी से काटे जा रहे हैं, ओजोन क्षरण हो रहा है, उपभोग के कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है। जहाँ उपभोग पर अंकुश लगना चाहिए वहीं पर उपभोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
होली पर उपभोग
होली है अधर्म पर धर्म की विजय। असत्य पर सत्य की विजय। और होली के दिन क्या होता है? गुजिया, चने, चाट , समोसे , गुजिया का भोग किया जा रहा है, चिकन और दारू चल रहे हैं, भांग और चरस चल रहा है, फिल्मी गीत बज रहे हैं, उपभोग चालू है, ये सब होली के दिन हो रहा है। होली का अर्थ है - निर्मला, निर्दोषता, सरलता , सत्य की विजय। गुजिया और गुलाल तो ठीक है, लेकिन भीतर उसका स्मरण भी बना रहे, जिसका कोई रंग नहीं है, जो शाश्वत, सत्य, सनातन , अविनाशी है, जिन्हें ऋषियों ने ब्रह्म कहा है। हम सबके भीतर हिरण्य कश्यप का अहंकार बैठा है, होलिका की चालाकी बैठी है, और निर्मल, सहज ,सरल, नन्हा प्रहलाद भी बैठा है। अपनी भीतर के अहंकार को और चालाकी को पीछे रख कर अपनी सरलता सहजता और सत्यता को जिताने का त्यौहार है होली। होली के दिन भोगवाद को बढ़ा करके तुम अधर्म को जिता रहे हो, असत्य को जीता रहे हो। ये कैसी होली है? ये कैसा त्यौहार है? इससे अच्छा होता कि होली मनाते ही नहीं, तो कम से कम होली बदनाम नहीं होती, प्रकृति तबाह होने से बच जाती।
दिवाली पर उपभोग
ये युग है उपभोग का ,और राम सत्य और त्याग के प्रतिनिधि हैं। जिन श्रीराम की दिवाली पर आप उपभोग को बढ़ावा देते हो, उन श्रीराम के जीवन में पल पल त्याग और पीड़ा है, आप श्रीराम के जीवन को देखेंगे तो आप रो पड़ेंगे, और उन श्रीराम की दिवाली पर आप क्या कर रहे हो? बजारें सजी हुई हैं, उपभोग चल रहा है, नाच गाने चल रहे हैं, पकवान बने हुए हैं। इस दिवाली में राम कहाँ हैं? ना त्याग है, न सरलता है, ना सत्य है, ना मर्यादा है। रामत्व एक ढेले का नहीं , और राम का नाम लेकर उपभोग चल रहा है। राम त्याग की मूर्ति हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। और उनका नाम लेकर दिवाली पर उपभोग चल रहा है, प्रकृति तबाह की जा रही है, मर्यादा तोड़ा जा रहा है। रामजी ने होश दिलाने के लिए अवतार लिया और उनकी दिवाली पर बेहोशी की सारे काम चल रहे हैं। भोग चल रहा है, मिठाइयाँ बट रही है, पटाखे बम फोड़े जा रहे हैं। वातावरण में वैसे ही ऑक्सीजन की कमी है और जनसंख्या की अधिकता है। और दिवाली के दिन तुम बम पटाखे जला करके, भोगवाद से, प्रकृति को तबाह करके, प्रदूषण फैला करके अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हो।
अगर ऐसी ही मनुष्य के उपभोग पर अंकुश ना लगाया गया, तो वो दिन दूर नहीं जब हर व्यक्ति को ऑक्सीजन का मास्क पहनना पड़ेगा हर व्यक्ति की पीठ पर ऑक्सीजन के सिलिंडर होंगे और गरीब लोगों को तो ऑक्सीजन भी उपलब्ध ना हो सकेगा। बहुत समृद्ध लोगों तक ही ऑक्सीजन की सिलिडरें पहुंच पायेंगी। सामान्य लोग ऑक्सीजन ले ना सकेंगे उन्हें कतार लगानी पड़ेगी, ऑक्सीजन की सिलिंडर भी महँगे हो जायेंगे। अभी के समय में अधिक जनसंख्या के कारण करीब लोग भुखमरी से मर रहे हैं और यदि उपभोग पर अंकुश नहीं लगाया तो ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोग मरेंगे। किसी भी धर्म का कोई भी त्योहार हो, कोई भी उत्सव हो, उसमें उपभोग की मात्रा में बेजोड़ वृद्धि होती है, आदमी का उपभोग ही उसकी विनाश का कारण बनेगी। त्यौहार इसलिए हैं ताकि भोग पर अंकुश लग सके और निर्मलता ,सहजता, सरलता और सत्यता को धारण कर सके, लेकिन इसका उल्टा हो रहा है, त्यौहार पर ही सबसे अधिक उपभोग हो रहे हैं। इससे अच्छा होता कि त्यौहार मनाते हैं नहीं।
इस अभियान को अधिक लोगों तक ले जाने के लिए तथा ऐसे ही लेख और उपलब्ध कराने के लिए आपका सहयोग जरूरी है। हमारे कार्य को सहयोग देने के लिए ऊपर दिख रहे विज्ञापनों (advertisement) पर क्लिक कीजिए, ताकि विज्ञापन से प्राप्त हुई राशि से वेदांत , उपनिषद और गीता को जन-जन तक पहुंचाया जा सके। ऊपर दिख रहे विज्ञापन पर क्लिक कीजिए। अधिक जानकारी के लिए " About " में जाएँ। धन्यवाद।
