पहली बात तो ये है कि देवी निर्गुण, निराकार ,अविनाशी, अजन्मा और अचल हैं। किंतु साधकों की वृत्तियों को नष्ट करने के लिए साधक के अंतःकरण में अवतरित होती रहती हैं। अर्थात अवतार बाहर नहीं होता। नवरात्रि में आप देखिएगा कैसे कैसे अश्लील गानों के तर्ज पर माता के भजन जगरातों में चलेंगे ? एक से एक अश्लील गाने होंगे , उनके तर्ज पर माता के जगरातों में भजन चल रहे होंगे और महिलाएं और पुरुष नाच रहे होंगे। यह उत्तेजित करने वाले गानों के तर्ज पर भजन चल रहें हैं। न हमें हमारा कुछ पता है, ना हम देवी के वास्तविक स्वरुप को जानते हैं, तो हम क्या करते हैं?
हमने देवी देवताओं गलत अर्थ निकाला है, देवी जन्म रहित और नित्य हैं, किंतु साधकों की रक्षा के लिए अवतरित हुई हैं कि वह हमारे मुक्ति की राह में बाधक हमारे वासनाओं हमें मुक्ति दिला सकें , लेकिन हमने क्या कर रहा है? हमने उन्हें अपनी वासना पूर्ति का माध्यम बना लिया है। ये हमने अपने साथ बड़ी दुर्दशा करी है। चूँकि हमें हमारे बारे में कुछ पता नहीं है इसलिए हमने अपने आप को भौतिक शरीर मान रखा है, और इसी तरह हम देवी को भी अपनी भौतिक वासना की पूर्ति का माध्यम बना लिया है।
आप ईमानदारी से बताना , अगर आप डरे ना हों, आपको अपनी इच्छा पूरी ना करनी हो तो आप देवी देवताओं के पास जाएंगे ? किसी मंदिर में जाएंगे ? बताइए!
आजकल जो तथाकथित पंडित और गुरु - वगैरह हैं , इन्हें आपकी कमजोरी बखूबी पता है। ये पंडित आपको पूरे रुतबे और दायित्व के साथ कहेंगे कि यदि आप चाहते हैं कि आपकी मनोकामना पूरी हो, तो देवी दुर्गा को या अन्य किसी अवतार को ₹5,000 का माला चढ़ाइए। अरे भाई ! देवी देवता या अवतार इसलिए नहीं हैं कि आपकी मनोकामना पूरी करें। वो इसलिए हैं कि आपको समस्त कामनाओं से और वासनाओं से छुटकारा दिला सके, क्योंकि हमारी वासनाएँ , तृष्णाएँ ही मुक्ति की राह में सबसे बड़ा बाधक हैं। वो देवी हैं, देवी माने देवीय गुण जो मुक्ति की राह में सहायक हों, उन्होंने अवतार इसलिए लिया है क्योंकि हमारे भीतर आसुरी वृत्तियाँ उपस्थित हैं। हमारे मन में जो आसुरी वृत्तियाँ बैठीं हैं, ये आसुरी वृत्तियाँ (काम ,क्रोध, मोह ,लोभ ,अहंकार, इत्यादि) ही महिषासुर है, इस भीतर के महिषासुर को मारने हेतु देवी अवतरित हुई हैं। महिषासुर भैसे का रूप लिये हुए है। ये बात भी सांकेतिक है, कि हमारी आसुरी वृत्तियाँ हमें पशुओं के स्तर पर ले जाता है। हमारे भीतर का ये जो पशु है, ये हमें शांति से बैठने नहीं देता , मुक्ति की ओर बढ़ने नहीं देता, हमारी इस पशुता का संहार करने के लिए देवी अवतरित हुई हैं।
हमने देवी का स्थूल और गलत अर्थ निकाला है। जैसे आप सो रहे हों और आपके पापा या मम्मी आपको जगाने के लिए आपके पास आएँ। वो आपसे बोलें कि चल उठ बैठा बेटा! 9 बज चुके हैं और अभी भी तू सो रहा है। और आप कहें कि सोने दीजिए पिता जी , और आप भी आइए सो जाइए। ये हमने अपने साथ बहुत गलत कर दिया। स्वयं तो नींद से उठ नहीं रहे बल्कि पिता हमें नींद से जगाने आया और हमने पिता को भी अपने नींद का, अपनी बेहोशी का हिस्सा बना लिया। यही हमने देवी - देवताओं और अवतारों के साथ किया है। वो हैं इसलिए कि हमें हमारी बेहोशी से उठा कर मुक्ति की ओर बढ़ा सकें , लेकिन हमने उन्हें अपनी इच्छा पूर्ति, और बंधनों का माध्यम ही बना लिया।
और देवी-देवता का वास्तविक अर्थ ही यही है जो कुछ भी तुम्हारे मुक्ति की राह में सहायक हो, वहीं देवी- देवता हैं, इसके सिवाय बाहर कोई देवी देवता नहीं होते। स्थूल रुप से तो कोई देवी देवता होते हैं नहीं। हमारे भीतर के सारे सद्गुण ही देवी-देवता हैं जो हमारे मुक्ति की राह में सहायक हो सकें (उदाहरण के लिए सरलता, दया ,छमा ,संतोष ,समता ,इत्यादि)
नवरात्रि ऐसे मत मनाओ
ढोल, तमाशे बजाएगा रहे हैं, अश्लील गानों के तर्ज पर माता के भजन बजाए जा रहे हैं, अगरबत्ती लगाई जा रही है , कर्मकांड किया जा रहा है, फूल, माला , धन, इत्यादि चढ़ाये जा रहे हैं, इच्छाएं मांगी जा रही हैं, बड़े-बड़े घंटे घड़ियाल बज रहे हैं, शोर- शराबा मचा हुआ है, जगरातों में नशे वाले अश्लील गानों पर उछल उछल कर नृत्य किया जा रहा है, मनोरंजन के लिए और कुछ उपाय कर रहे हैं, मूर्ति पूजा किया जा रहा है, उसके बाद में मूर्ति विसर्जन भी किया जाएगा, इत्यादि इत्यादि।
नवरात्रि ऐसे मनाओ
पहले जान लो कि देवी हैं कौन? देवी नित्य, अजन्मा, सत्य का साकार रुप हैं। किंतु भक्तों(साधक) के उद्धार के लिए बार बार साधक की हृदय में अवतरित होते रहती हैं। जब आप संसार बंधन से मुक्ति की ओर अर्थात परमात्मा की ओर बढ़ते हैं, तो हमारी असुरी वृत्तियाँ (काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, इत्यादि) हमें शांति से बैठने नहीं देतीं, परमात्मा की ओर बढ़ने नहीं देती अर्थात हमारी मुक्ति की राह में बाधक हो जाती हैं,
इन असुरी वृत्तियों का नाश करने के लिए देवी हमारे हृदय में अवतरित होती है, बाहर नहीं। इन आसुरी वृत्तियों का नाश करके देवी शांत हो जाती हैं, क्योंकि जो हमारी मुक्ति की राह में बाधक थे, जिनसे लड़ना था, उन्हें मार दिया, अब आगे कोई है नहीं, जिसको वह मारे, इसलिए वह शांत हो जाती हैं। इस आंतरिक युद्ध (संघर्ष) के बाद हमारे भीतर सद् गुण आते हैं कि जिसमें ,शील, संतोष, क्षमा, सत्य, स्थिरता , इत्यादि आते हैं। यही वास्तिक युद्ध है। इसी युद्ध का वर्णन गीता में भी किया गया है। वहां पर लड़ने वाले संपूर्ण कौरव और पांडव थे। यहाँ पर लड़ने वाले आसुरी वृत्ति रुपी महिषासुर और देविय वृत्ति रुपी देवी दुर्गा का भीषण युद्ध होता है। इस आंतरिक युद्ध का वर्णन आपको दुर्गा सप्तशती पुस्तक में मिल जाएगा। तो ये जो आंतरिक सदगुण है ये उस देवी की वजह से आया है। इस प्रकार देवी हमारे अंतःकरण में अवतरित होती हैं ,बाहर नहीं। जब देवी बाहर अवतरित नहीं होती, तो उनकी बाहर पूजा कैसे हो सकती है। देवी तो अजन्मा और नित्य हैं। वो कैसे जन्म लेंगी। वह अपनी माया से साधक की रक्षा के लिए साधक के अंतःकरण में अवतरित होते रहती हैं। वो देवी मन और बुद्धि से परे हैं। उनका कोई आकार नहीं।
जब देवी को भलि भाँति समझोगे, तो ये जो बाहरी दिखावा है , बाहरी कर्मकांड और मूर्ति पूजा है, इसको छोड़ दोगे , क्योंकि अब आपको पता चल जाएगा कि देवी वास्तव में हैं कौन? असली नवरात्रि मनाने का यही अर्थ है कि अपनी वृत्तियों को , अपनी मान्यताओं को, अपने बंधनों को काटते चलो। सत्य, सरलता, क्षमा, दया, इत्यादि सद् गुणों को ग्रहण करते चलो। मुक्ति की ओर बढ़ते चलो।
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