Vedanta, Upnishad And Gita Propagandist. ~ Blissful Folks. Install Now

𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

श्री अष्टावक्र गीता: सार संक्षेप

श्री अष्टावक्र गीता। अष्टावक्र कैसे सुधारेंगे संसार को?

अष्टावक्र गीता





आपने बहुत से ग्रन्थ पढ़े होंगे, अनेक शास्त्रों का स्वाध्याय भी किया होगा। परन्तु अष्टावक्र गीता" इन सभी शास्त्रों में एक अनूठा व अनुपम ग्रन्थ है। इस जैसा ग्रन्थ आध्यात्मिक जगत् में दूसरा नहीं है। अष्टावक्र हमें एक ऐसी अलौकिक यात्रा पर ले जाते हैं, एक ऐसे अन्तर्जगत् में हमें प्रवेश कराते हैं जहाँ आनन्द ही आनन्द है, सुख ही सुख है। उस जैसी शांति और सन्तुष्टि अन्यत्र है ही नहीं। जन्म-जन्मान्तरों में जो अनुभूति, जो भान और जो आभास हमें नहीं हो सका वह अष्टावक्र कुछ पलों में ही करा देते हैं। ऐसे अद्भुत, चमत्कारिक हैं अष्टावक्र गीता के मंत्र।
वेद, उपनिषद्, गीता के माध्यम से सत्य तक पहुंचने में समय लगता है, वहाँ आत्मज्ञान के लिए बहुत सारे सोपानों से गुजरना होता है। मार्ग लम्बा, दुस्तर और दुर्गम है। शब्द-वन में भटकने का भी भय है। अपना स्वयं का अर्थ भी निकालने लगोगे। व्याख्या में भी उलझ सकते हो। संभव है जीवन बीत जाये पर सत्य तक न पहुंच सको। पर अष्टावक्र गीता के
स्वाध्याय से ऐसा नहीं होगा। ये हमें सीधा-सरल-स्पष्ट और अतिशीघ्र मंजिल पर पहुंचा देने वाला रास्ता बताते हैं। जो हमें सीधा आत्म-बोध के द्वार पर ले जाकर खड़ा कर देता है,जहाँ से हम आत्मज्ञान के महाकाश में बड़ी सहजता से प्रवेश कर जाते हैं। गीता एक समन्वयकारी ग्रन्थ है। इसमें भगवान् श्रीकृष्ण ने कर्म पर बल अवश्य दिया है पर उन्होंने ज्ञान, कर्म, भक्ति का समन्वय भी प्रस्तुत किया है। गीता में व्यक्ति अपने मनोनुकूल भी अर्थ निकाल लेते हैं। इसीलिए गीता पर अनेक टीकाएं व्याख्याएं लिखी गई हैं। पर अष्टावक्र के शब्दों में अर्थ स्पष्ट है, उसमें व्यक्ति अपनी ओर से जोड़-घटाव नहीं कर सकता है। शब्द सटीक हैं, व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में सीधे ही उतर जाते हैं और उसे रूपांतरित कर देते हैं। परन्तु ऐसा सुन्दर श्रेष्ठ ग्रन्थ पाठकों को आकर्षित नहीं कर सका है। इसका कारण यही है कि इसकी कम ही व्याख्याएं लिखी गई हैं और इसे केवल मुक्ति का ग्रन्थ बताकर पाठकों से दूर रखा गया जबकि वास्तविकता यह है कि अष्टावक्र गीता के मुक्ति के सूत्रों में लोक व्यवहार एवं सफल जीवन जीने के सूत्र है। निहित हैं, परन्तु उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास नहीं। किया गया है। मेरी इस कृति में मैंने उन मुक्ति-सूत्रों के मन्थन से व्यवहार-सूत्र का नवनीत भी निकालने का प्रयास किया है, जो आगे के पृष्ठों में पाठकों के समक्ष परोसा गया है।
अष्टावक्र गीता का प्रारम्भ राजा जनक द्वारा पूछे गये तीन होता ज्ञान कैसे होता मुक्ति कैसे होती तथा कैसे होता है? अध्यात्म सम्पूर्ण समाहित विविध शास्त्रों इन प्रस्तुत किए हैं, परन्तु जितना सुग्राह्य एवं सद्यफलप्रदायी है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता। ज्ञान बन्धन मुक्त करता है, वही वास्तविक ज्ञान विद्या या विमुक्तये। शेष ज्ञान, ज्ञान नहीं, जानकारियां हैं। मुक्ति प्राप्त होती है ज्ञान मोच्छप्रद वेद बखाना (मानस)। जीवन का परम लक्ष्य और अंतिम उद्देश्य ही मोक्ष प्रदायक ज्ञान के लिए पात्रता चाहिए, बिना के यह प्राप्त नहीं जाती है।
राजा जनक यह पात्रता प्राप्त अहंकाररहित होकर श्रद्धा के साथ गुरु समक्ष उन्होंने समर्पण दिया। से खाली हो गये, गुरु उनमें ज्ञान उड़ेल दिया। जनक उस को अमृत समान गये। उन्हें आत्म-बोध गया और वे उसकी अभिव्यक्ति देने लगे। अष्टावक्र को विश्वास हो गया इसे आत्म-बोध हो चुका है, उस बोध दृढ़ बनाने हेतु अष्टावक्र जनक अनेक प्रश्न करते हैं। उस परीक्षा में शत-प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण होते हैं।आत्मज्ञान बिना योग्य गुरु के प्राप्त नहीं होता पर इसके लिए शिष्य में पात्रता भी होनी चाहिए। उसमें उस ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता एवं उसे पचाने की शक्ति भी होनी चाहिए, तभी आत्म-बोध फलित होता है। हम आपमें भी जनक जैसी पात्रता आ जाये और योग्य गुरु मिल जाये तो हमारे, आपके साथ भी वैसा हो सकता है, जैसा जनक के साथ हुआ था।

एक टिप्पणी भेजें

This website is made for Holy Purpose to Spread Vedanta , Upnishads And Gita. To Support our work click on advertisement once. Blissful Folks created by Shyam G Advait.