त्याग का दूसरा नाम है राम, प्रेम का दूसरा नाम है राम, सत्य का दूसरा नाम है राम। सरलता, सहजता , सत्यता का दूसरा नाम है राम। यह युग है उपभोग का, राम हैं त्याग के प्रतिनिधि। अयोध्या जैसा राज्य, सोने की लंका, सीता जैसी पत्नी, सुकुमार जैसे दो बालक, राम ये सब त्यागते जा रहे हैं। हम लोग आज दो ग्राम सोना ना छोड़े और राम सोने की लंका छोड़ आये। अब आप सोचिए कि हमारे भीतर राम के लिए कितना विरोध उठता है? श्रीराम से ना तुमने त्याग सिखा, ना मर्यादा सीखा, ना सरलता सीखा, ना प्रेम सिखा। बल्कि तुम राम का नाम लेकर दिवाली पर उपभोग कर रहे हो? ये गजब! श्रीराम हमें हमारी बेहोशी से , हमारी नींद से उठाने के लिए अवतार लिये हैं, निर्गुण को सगुण होना पड़ा, निराकार को साकार होना पड़ा, लेकिन हम अपनी बेहोशी से उठे तो नहीं ही, बल्कि हमनें ऐसे प्रबंध कर लिए कि हम बेहोशी से उठे तो नहीं ही बल्कि वो हमारी बेहोशी में मददगार हो जायें। श्रीराम इसलिए हैं कि हम अपनी बेहोशी से उठ सकें, लेकिन हम लोग राम का नाम लेकर बेहोशी के सारें काम कर रहे हैं। ढोल नगाड़े बज रहे हैं, घंटे घड़ियाल बज रहे हैं, मिठाइयाँ बँट रही हैं, केवल हम बेहोशी से उठ नहीं पाते। बेहोशी के सारे काम चल रहे हैं, हमने कभी राम को समझा नहीं।
जिन श्रीराम ने स्वयं कभी शारीरिक सुख के लिए लालायित नहीं थे, उन श्रीराम की दिवाली पर राम का नाम लेकर बजारें सजी हुई हैं, उपभोग चल रहा है। श्रीराम से ना त्याग सिखा, ना मर्यादा सिखा, ना प्रेम सीखा, न करुणा सीखा, ना दया सीखा, न सरलता सीखा। जो श्रीराम त्याग, प्रेम और सरलता के प्रतीक हैं, उनका नाम लेकर दिवाली पर उपभोग करके श्रीराम का अपमान कर रहे हो। राम हमें त्याग ,प्रेम, मर्यादा ,सरलता, सहजता सिखाने आ गए, राम हमें हमारे बंधनों से मुक्त कराने आ गए, और हम है कि उन्हें अपने बंधनों का हिस्सा बनना लिया है। श्रीराम इसलिए हैं कि वो हमें हमारी बेहोशी से उठा सकें, लेकिन हमने ऐसे प्रबंध कर लिया कि वह हमें बेहोशी से उठाएँ तो नहीं बल्कि हमारी बेहोशी में मददगार हो जाएँ। त्याग ही प्रेम है अगर प्रेम में त्याग नहीं तो वो प्रेम नहीं, गहरा स्वार्थ है। बजारें सजी हुई हैं, शॉपिंग चल रही है, श्रीराम ने शॉपिंग करना सिखाया क्या? जंगल शॉपिंग मॉल था क्या? वनवास के समय में 14 वर्ष तो बिना शॉपिंग के बिता दिया। कभी कभी तो एक टाइम भूखा रहना पड़ता। राम का पूरा जीवन त्याग और प्रेम से भरा है। शबरी और मीरा रो रही हैं , कृष्ण और राम के लिए। और हम हैं कि रावण की तरह हँसे जा रहे हैं। दिवाली आ गई, ढोल नगाड़े बज रहे हैं , मिठाइयाँ, पकवान का उपभोग चल रहा है, नाच गाने चल रहे हैं, और हम हँसे जा रहे हैं, ना त्याग है, ना प्रेम है, न करुणा है, न सरलता है, ना सहजता है। राम कहाँ हैं?
श्रीराम को जानना हो तो श्रीराम गीता पढ़ो, योगवशिष्ठ सार पढ़ो। दिवाली प्रदूषण और उपभोग का त्यौहार नहीं होना चाहिए, दिवाली तपस्या, त्याग, सरलता और प्रेम का त्योहार होना चाहिए।
इस अभियान को अधिक लोगों तक ले जाने के लिए तथा ऐसे ही लेख और उपलब्ध कराने के लिए आपका सहयोग जरूरी है। हमारे कार्य को सहयोग देने के लिए ऊपर दिख रहे विज्ञापनों (advertisement) पर क्लिक कीजिए, ताकि विज्ञापन से प्राप्त हुई राशि से वेदांत , उपनिषद और गीता को जन-जन तक पहुंचाया जा सके। ऊपर दिख रहे विज्ञापन पर क्लिक कीजिए। अधिक जानकारी के लिए " About " में जाएँ। धन्यवाद।
