जब आपने धर्म को समझा ही नहीं, तो धर्म का कोई भी मजाक उड़ा के चला जाएगा। धर्म की हानि तो सबसे ज्यादा उन लोगों ने किया जो स्वयं को धार्मिक कहते हैं, वो ना कभी उपनिषदों के पास गए , ना वेदांत को पढ़ा , ना गीता को समझा लेकिन फिर भी स्वयं को धार्मिक बताते हैं। जब तक आपको आपके धर्म का वास्तिक स्वरुप पता नहीं होगा, तभी तक लोग आपका और आपके धर्म का मजाक उड़ा सकते हैं। जहाँ आपको धर्म समझ में आने लग गया, उपनिषद समझ में आने लग गए गीता समझ में आया लग गई , वहाँ आपके धर्म को कोई बदनाम नहीं कर सकता, स्वयं आप भी नहीं।
धर्म का वास्तविक स्वरूप
हम और आप कौन हैं? हम और आप सनातन धर्म के अनुयायी हैं। सनातन क्या है? आत्मा ही शाश्वत, सनातन और अमृत स्वरुप है। इसको शस्त्र काट नहीं सकते, जल गीला नहीं कर सकता, वायु सुखा नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती, किसी में समाहित नहीं हो सकता, आंखों से देखा नहीं जा सकता, असंग और अद्वैत है। आत्मा , परमात्मा , ब्रह्म ,मोक्ष, मुक्ति ,स्वतंत्रता, खुदा, रब, सच्चा बादशाह, इत्यादि एक दूसरे के पर्याय हैं। आप कौन हैं? - शाश्वत धर्म के उपासक। शाश्वत क्या है? - आत्मा। जब इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकता, ये निर्गुण, निराकार, अविनाशी ,अमृत स्वरुप , असंग, अद्वैत, विकाररहित है। आत्मा ही एकमात्र सत्य है, सारा जगत मिथ्या है। तब इस आत्मा को कोई बदनाम और विकारी कैसे कर सकता है? यदि आप आत्मा पर्यंत दूरी तय करने वाली विधि विशेष से अवगत नहीं हैं, तो आप सनातन धर्म को नहीं जानते। इस विधि विशेष को जानने के लिए किसी पूर्ण गुरु के सानिध्य में आपको वेदांत, उपनिषद और गीता को समझना पड़ेगा। श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं कि असत् वस्तु का अस्तित्व नहीं है और सत्य का तीनों कालो में अभाव नहीं है। वह सत्य है आत्मा।
अंततः समस्त मानव जाति का धर्म क्या हुआ? समस्त मानव जाति का धर्म हुआ , "आत्मा की ओर बढ़ना, मुक्ति की ओर बढ़ना , आत्मस्थ स्थिति की ओर बढ़ना। "
यदि आप मुक्ति की ओर नहीं बढ़ रहे, तो आपका किसी भी धर्म से कोई सरोकार नहीं है।
आत्मा विकाररहित, अविनाशी और अज्ञेय हैं। जब शाश्वत, सनातन आत्मा विकार रहित है , तब इसको कोई कैसे बदनाम कर सकता है? कोई कैसे इसको नष्ट कर सकता है? तो फिल्मों को मत देखो अपनी ओर देखो। अपना अवलोकन करो कि क्या-क्या बंधन है। और फिर उन बंधनों से मुक्ति की ओर बढ़ो। मुक्ति की ओर अर्थात आत्मा की ओर बढ़ना ही धर्म है। पूरे विश्व में कोई भी हिंदु , मुस्लिम, सिख ,इसाई, यदि मुक्ति की ओर बढ़ रहा है तो वह सनातन धर्मी ही है। भले ही वह अपने आप को कुछ भी मानता हो परंतु यदि वह मुक्ति की ओर अर्थात आत्मस्थ स्थिति की ओर बढ़ रहा है तो वो सनातन धर्म का अनुयाई ही है।
फिल्मों का बायकॉट
आपको इतना समय कैसे मिल जाता है? आप वाहियात चीज के लिए समय निकाल कैसे लेते हो ? मनीषियों ने प्रत्येक स्वास को बहुमूल्य मणि की संज्ञा दी है। हीरा जैसी स्वासा बातों में बीती जाए। तुम्हें खाली समय मिल कैसे जाता है ? बेहूदा फिल्म को देखने के लिए समय वैसे ही सीमित है , कम है। तुमने ही तो उन्हें सर चढ़ा रखा है। बात यह नहीं है कि उसने जो भी फिल्म बनाई , वो सही है या गलत ? तुम देखने क्यों गए? तुम्हें समय कहाँ से मिला इस तरह की बेवकूफियों के लिए? तुमने समय कैसे चुरा लिया जीवन से? जब आपने धर्म को समझा ही नहीं तो कोई भी कुछ भी कर देगा।
सवाल यह नहीं होना चाहिए कि उन लोगों ने इस तरह की फिल्म बनाई क्यों? सवाल ये होना चाहिए कि तुमने उनके घटिया से घटिया फिल्म को करोड़ों की कमाई क्यों होने दिया? सवाल ये नहीं होना चाहिए कि उन लोगों ने ऐसी फिल्म बनाई क्यों? सवाल ये होना चाहिए कि तुमने कितने लोगों तक वेदांत , उपनिषद, गीता पहुंचाया। तुमने कितनों को उपनिषद और वेदांत समझाया? दूसरो को तब समझाओगे ,जब तुम्हें पहले उपनिषद ,गीता समझ में आए। तो यह मत देखो कि उन लोगों ने कितनी फिल्म बनाई ,कितना कमाया? तुम यह देखो कि तुमने कितने लोगों तक वेदांत, उपनिषद, गीता पहुंचाया।
सम्मान मिलना चाहिए ऋषियों, गुरुओं और संतो को। तुम देखो कि तुमने किसको अपना आदर्श बना लिया है? भारत का बहुत सुंदर साहित्य है, जिस पर फिल्में बन सकती हैं। तुम मुझे बताओ रैदास, कबीर ,अष्टावक्र, रमण महर्षि, याज्ञवल्क, इन संतो पर कितनी फिल्में बनती हैं? तुम्हें बर्बाद करने में सबसे बड़ा कारण है तो वह है फिल्मों का। जिसको तुम अपना जीवन , अपना विचार कहते हो वह भी तुमने फिल्मों से सीखा है। तुम्हारे मन का निर्माण ही फिल्म इंडस्ट्री में हो रहा है। तुम्हें तो धर्म का पता भी तब चलता है जब कोई धर्म का बहिष्कार कर दे। तुम धर्म को प्रतिक्रिया के रूप में क्यों दिखाते हो ? तुम यह मत देखो कि अधर्म का कितना बोलबाला है? तुम यह देखो कि तुमने कितने लोगों तक धर्म पहुंचाया? कितने लोगों को वेदांत ,उपनिषद और गीता समझाया।
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