प्रश्न - अध्यात्म का लहसुन प्याज से क्या संबंध है?
समाधान - देखो! अध्यात्म का संबंध सीधा-सीधा आत्मा से है। आत्मा के आधिपत्य को ही आध्यात्म कहते हैं। इससे पहले लोग माया के आधिपत्य में रहते हैं। विषय वासना में लिप्त रहते हैं। तो जब कामी सांसारी विषय भोग फँसा हुआ व्यक्ति अध्यात्म की ओर आता है, तो उसे यम नियम और योग साधना इत्यादि बताये जाते हैं ताकि उसकी अंतःकरण की शुद्धि हो सके। आज के समय में कर्मकांड का तो अध्यात्म में कोई महत्व रह नहीं गया है, किंतु योग साधना और व्रत, उपवास इत्यादि यह सब केवल आंतरिक स्वच्छता के लिए होते हैं, मात्र साधन हैं अंतिम सत्य नहीं। चूँकि यम नियम ,योग साधना , इत्यादि मात्र साधन हैं इसलिए उनका एक निश्चित समय तक महत्व होता है। प्रारंभिक साधकों के लिए इसका महत्व है।
और अगर बात लहसुन और प्याज की आती है तो इसका एक भौतिक कारण हो सकता है। लहसुन, प्याज के सेवन से मनुष्य शरीर में उत्तेजित करने वाली शक्ति बढ़ती है, जोकि शांति की राह में उत्तेजना वर्जित है। तेल मसाला वाला खाना तथा लहसुन , प्याज वाले भोज्य पदार्थ के सेवन से मनुष्य मस्तिष्क में हाइपोथेरेमस जल्दी सक्रिय हो जाता है, इसीलिए छात्रों को और साधु ,संतों को इन सब भोज्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
चूँकि तेल, मसाले वाले और लहसुन , प्याज वाले भोज्य पदार्थ शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करते हैं, तो उत्तेजना ध्यान में बाधक है, इसीलिए इनके सेवन से बचना चाहिए। बाकी अगर कोई कहे कि लहसुन, प्याज राक्षस के मल से उत्पन्न होते हैं, तो यह बात बहुत बचकानी और हास्यपद लगेंगी। अब जाकर देखिए जहाँ लहसुन , प्याज का उत्पादन होता है, वहाँ किसान मेहनत करके लहसुन , प्याज को उगाते हैं, ना कि कोई राक्षस वहाँ मल करके जाता है। जैसे अन्य खाद्य चीजों की खेती होती है, उत्पादन होता है, वैसे ही लहसुन, प्याज का उत्पादन भी होता है। मगर कोई तथाकथित गुरु और बाबा लोग यह कहे कि लहसुन और प्याज राक्षस के मल से आता है तो यह बात बहुत बचकानी लगेगी। यह बात सांकेतिक है , इसको सच मत मान लेना , वह सांकेतिक इसलिए है कि जो लहसुन प्याज के सेवन से ध्यान में विघ्न पड़ता है इसलिए उसको कहा गया है कि राक्षस के मल से आता है , बाकी इसका कोई वास्तविकता से संबंध नहीं है, ये बात सांकेतिक है। तो कोई बाबा का कहे कि राक्षस के मन से लहसुन, प्याज आता है तो इसको सच मत मान लेना। बात संकेतिक हो रही है कि जो कुछ तुम्हारे ध्यान में तुम्हारे मुक्ति की राह में बाधक हो, वही राक्षस और असुर है, अन्यथा बाहर कोई राक्षस नहीं होता। हमारी जो पाश्विक वृत्तियाँ है, उनको राक्षस की संज्ञा दी गई है। और जो कुछ भी हमारे मुक्ति की राह में सहायक हो उसी को देवता कहते हैं। और जो कुछ भी तुम्हारे मुक्ति की राह में बाधक हो उसी को राक्षस कहते हैं , असुर कहते हैं।
प्रश्न - वीर्य का अध्यात्म क्या महत्व है?
समाधान - देखिए मैंने पहले ही बता दिया है कि अध्यात्म का संबंध आत्मा से है। आत्मा के आधिपत्य को ही अध्यात्म कहते हैं। आत्मा का आधिपत्य दिलाने वाला अर्थात मुक्ति की ओर बढ़ाने वाला विद्या ही अध्यात्म विद्या कहलाता है।
वीर्य वाली बात पूरी प्राकृतिक है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो वीर्य बनने की एक लंबी प्रक्रिया होती है, इसीलिए वीर्यपात से शरीर क्षीण होता है। अध्यात्म का संबंध चेतना से शरीर से नहीं। लेकिन यह भी नहीं कह सकते कि शरीर पर ध्यान ही मत दो। शरीर माध्यम शरीर के पार तक पहुंचने का। क्योंकि शरीर साधन है इसीलिए शरीर साधन की तरह उपयोग करना है और साधन का रखरखाव और मरम्मत भी आवश्यक है, अन्यथा आप मंजिल तक पहुंच नहीं पाएंगे और शरीर जीर्ण हो जाएगा।
तो वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए वीर्य के निर्माण होने में लगभग 2 सप्ताह का वक्त लगता है। तो इसीलिए कहा जाता है कि अपनी उर्जा को वीर्यपात के माध्यम से व्यर्थ नष्ट मत करो, उसको किसी सार्थक उद्यम में लगाओ।
भोजन से प्राप्त प्रोटीन के रस से खून, खून से माँस, माँस से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा, और मज्जा से वीर्य का निर्माण होता है। तो यह एक लंबी प्रक्रिया है इसीलिए कहा जाता है कि मेरे पास से शरीर क्षीण होता है, शरीर कमजोर होता है।
तो जब भी कहा जाता है कि वीर्य बचाओ, तो उसका वास्तविक अर्थ यही होता है कि अपनी उर्जा को, अपने संसाधन को सही, सार्थक और ऊँचे लक्ष्य में लगाओ। अध्यात्म में एक-एक बात को गहराई से समझना पड़ता है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है। ऐसे ही हजारों लाखों की कुरीतियाँ धर्म के नाम पर प्रचलित हैं। इन्हीं कुरीतियों में फंसकर मनुष्य असंख्य जाति ,संप्रदाय की रचना कर लेता है। धर्म का एक ही लक्ष्य है आत्मा की ओर बढ़ना अर्थात मुक्ति की ओर बढ़ना।
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