वनस्पतियों में जल तत्व प्रधान होता है, कीड़े मकोड़ो में अग्नि तथा पृथ्वी तत्व प्रधान होता है, ध्यान दीजिए उड़ने वाले कीड़ों में अग्नि तथा वायु तत्व प्रधान होता है, जबकि रेगँने वाले कीड़ों में पृथ्वी तथा अग्नि तत्व प्रधान होता है, पक्षियों में 3 तत्व प्रधान होते हैं, वायु , अग्नि तथा जल तत्व प्रधान होते हैं, पशुओं में चार तत्व प्रधान होते हैं, जल, पृथ्वी, अग्नि तथा वायु तत्व प्रधान होते हैं। मनुष्य में पाँच तत्व प्रधान होते हैं, जल , अग्नि, वायु , पृथ्वी और आकाश तत्व प्रधान होते हैं। जिस जीव में जितने ज्यादा तत्व की प्रधानता होगी, उसको मारने पर उतना ही ज्यादा पाप लगेगा, इसीलिए संत अपने शिष्यों को शुद्ध शाकाहारी रहने को आदेश देते हैं क्योंकि मांसाहार मनुष्य को पशुओं के स्तर पर ले जाता है।
कोई मांसाहार के पक्ष में कितने ही दलीले क्यों न दे दे! परंतु सच तो यह है कि किसी भी जीव को मारने पर वह अपने बचाव के लिए प्रयत्न करता है। यदि छोटे से कीड़े को भी मारने लगे तो वह अपने बचाव के लिए इधर उधर भागता है। जरा सोचिए हम इस धरती पर इसलिए आए हैं ताकि हम दूसरे मूक जीवों को मारकर खा सके ? कभी नहीं। परंतु अज्ञान से घिरा हुआ मनुष्य कभी यह नहीं सोचता।
एक गाना है कि अपने मां बाप का तू दिल न दुखा। उसने ये क्यों नहीं बताया कि किसी के मां बाप का तू दिल न दुखा। एक मुर्गी के मां बाप का दिल न दुखा, जिसका मांस और अंडा तुम पका कर खा गए, एक मछली के मां बाप का दिल न दुखा, जिसको तुम तल भुन कर खा गए। एक बकरे के मां बाप का तू दिल न दुखा, जिसका मांस तुम पका कर खा गए। एक बछड़े के माँ बाप का तू दिल न दुखा, जिसके हिस्से का दूध तुम पी गये और जिसका मांस तुम खा गए। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो मांसाहार न केवल मनुष्य के लिए अपितु पूरी प्रकृति के लिए घातक होता है। मांस के सेवन से दिल की बीमारी और पेट से संबंधित बीमारी बहुत होते हैं। सभी योनियों में मनुष्य योनि श्रेष्ठ मानी गई है। किंतु मनुष्य अपने हीरे जैसे अनमोल जीवन को दूसरों पर क्रुरता करने में लगा देता है, अपने स्वार्थ की पूर्ति करने लगा देता है। जिस स्वाद और स्वास्थ के लिए वह मांसाहार अपनाता है ,वही मांसाहार उसकी अल्प आयु , बीमारी और मृत्यु का कारण बन जाता है। मनुष्य अपने अनमोल जीवन को पाकर भी हिंसक पशुओं की भाँति स्वार्थ और मांसाहार के पीछे व्यर्थ ही गवाँ देता है। दया बिना मनुष्य कसाई हो जाता है। अपनी स्वार्थ पूर्ति में मनुष्य अंधा होकर एक से कुकर्म कर देता है।
ईश्वर की असीम अनुकंपा से तो मनुष्य शरीर मिलता है , वह उसको भी स्वार्थ और हिंसा में बिता देता है, पशुओं के समान जीता है। वह जीवन भर अपनी वासना पूरी करने के लिए तथा शरीर के लिए ही कर्म करता है, वह पापी मनुष्य व्यर्थ ही जीता है, और अंत में फसल काटने वाले मजदूरों की भाँति यमदूत आते हैं, मार कर ले जाते हैं। संसार की कोई वस्तु उसका साथ नहीं देगी ,यह जानते हुए भी वह मोह में अंधा होकर अनेक-अनेक कुकर्म करता है। अज्ञान से वह स्वयं को शरीर मानता है, और जीवन भर शरीर के लिए ही श्रम करता है। अंत में शरीर भी उसका साथ नहीं देती, मृत्यु के पाँश को देखकर भी वह चेतता नहीं है।
मांसाहार गलत इसलिए है कि वह ना केवल हमारे लिए बल्कि पूरी पृथ्वी के लिए घातक है। मांसाहार गलत इसलिए है क्योंकि हमको हिंसक बनाकर पशुओं के स्तर पर ले जाता है।
आप जाकर किसी पोल्ट्री फॉर्म में देखिए कि कैसे दुर्दशा होती है उन मुर्गियों की, जो आप अपने जीभ के स्वाद के लिए खाते हैं। डेरी इंडस्ट्री में जाकर देखिए कैसे पशुओं क्रूरता करके दूध निकाला जाता है। अगर हिंसा के बारे में बोलना शुरू करूं तो मेरे शब्द कम पड़ जाएंगे लेकिन हिंसा कम नहीं पड़ेगी। आप कुत्ते, बैल ,गधे, थोड़े ही हैं, जो कैसा भी जीवन जी लेंगे। आप इंसान हैं, आपका हक है एक ऊँचा और सार्थक जीवन जीने का।
जब आप माँस, मछली, दूध , इत्यादि को देखें ,तो मन में कौंध जाए कि वह भी मेरे जैसा जीव है , उसे भी दर्द होता है, उसका जी जीवन है , जब उसके पीड़ा को अपने पीड़ा से तुलना करोगे ,तो माँस नहीं खा पाओगे। जब हृदय प्रेम और करुणा से भर जाए , समझ लेना कि माँस मेरे लिए नहीं है।
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