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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?

सत्य की राह पर कष्ट क्यों मिलते हैं? : उपनिषद

प्रश्न- अच्छे आदमी के साथ बुरा क्यों होता है? सत्य की राह पर इतने विघ्न क्यों होते हैं?
उत्तर- अच्छे आदमी के साथ कुछ बुरा नहीं होता है अपितु आपने बुराई की परिभाषा ही गलत बना रखी है। आपने बुराई की परिभाषा ऐसे करी है कि जब सत्य की राह पर आदमी चलता है, तो उसे कष्ट और दुख मिलता है। और आपने अच्छाई की परिभाषा ऐसे करी है जो गलत करता है वह मजे में रहता है। 
अरे भाई! जो गलत जीवन जी रहा है, जो गलत कर्म कर रहा है, वह मजे में नहीं है। उसमें अपने जीवन के साथ बड़ा घाटे का सौदा करा है। अरे भाई! भाग्य से तो मनुष्य शरीर मिला है और जीवन मिला है, उस जीवन को भी आपने व्यर्थ कर्म में लगा दिया, गलत कार्य में लगा दिया तो इसका अर्थ हुआ कि आपने अपने अनमोल जीवन को दो कौड़ी के भाव बेच दिया। और अगर आपने सत्य की राह पर चला, भले ही उसमें कितना ही दुख, दर्द और कष्ट झेलना पड़े। ये हुआ जीवन का सार्थक उपयोग। 
आपको लगता है कि जो असत्य की राह पर चलता है, वो विषयों में आनंद लेकर मजे ले रहा है। तो आपकी ये सोच गलत है, जब शरीर ही नश्वर है, अब इसके सुख भोग कहां तक साथ देंगे?
मनुष्य जितना विषय को भोगता है, उतना ही विषय भी मनुष्य को भोगता है। शराबी जितना शराब को पीता है , शराब भी शराबी को उतना ही पीती है, परंतु शराबी को इस बात का पता नहीं चलता। शराबी को उसके बारे में तब पता चलता है , जब उसे लीवर का कैंसर होता है। शराबी जीवन के प्रारंभिक वर्ष को शराब पीकर मजे लेने में लगाता है, और बाद में लीवर की कैंसर को झेलता है।
जैसे किसी गंदे पानी को फिल्टर करना हो, तो मेहनत करनी पड़ेगी , थोड़ा कष्ट झेलना। उस पीड़ा में भी वो आनंदित रहेगा, क्योंकि स्वच्छता की राह पर कष्ट झेल रहा है। अब जल का कुछ सार्थक उपयोग होगा क्योंकि उसने फिल्टर होने में कष्ट झेला है। लेकिन उस पानी का गंदा होने के लिए कोई विशेष कष्टदायक प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता। 
जिसने अपने ईमान को बेचकर अपनी जेबें भर रखी है,भला इससे बड़ा घाटे का सौदा कुछ हो सकता है? कभी नहीं। 
जैसे परीक्षा हाल में वही छात्र ज्यादा इधर-उधर ताका झांकी करता है, जो कुछ तैयारी करके नहीं आया है। वो कभी सर खुँजाएगा, कभी लेखनी को ऐसे उसे गुमाएगा, कभी बगल वाले की नकल करने की कोशिश कर रहा है। और जो तैयारी करके आया है वो अपनी उत्तर पुस्तिका लिखने में लगा हुआ है।

जो गलत कर रहा है उसको तुरंत सजा ये मिल गयी की वो गलत कहलाएगा, किसी व्यक्ति ने शराब पीना शुरु की, तो उसको तुरंत उसकी यह सजा मिल जाएगी कि वो अब शराबी कहलाएगा। उसने शराब पिया तो शराब ने उसे शराबी नामक उपाधि से सम्मानित किया है। 
तुमने गलत राह पर चलना शुरू किया, तो तुमको तुरंत उसकी सजा मिल गई कि तुम अब गलत कहे जायेगा। किसी ने अधर्म अपनाया , तो उसको तुरंत सजा ये मिल गयी कि उसे अब अधर्मी कहा जाएगा।
तो इस विचार को अपने दिमाग से निकालो कि अधर्मी अधर्म पर चलकर मौज कर रहा है और तुम सत्य पर चलकर कष्ट भोग रहे हो।  
कष्ट तो दोनों झेल रहे हैं, तो आप ये मत कह देना कि अधर्मी मजे ले रहा है , और धर्मात्मा कष्ट भोग रहा है। 
दुर्योधन को भी पीड़ा है और अर्जुन को भी पीड़ा है। लेकिन अर्जुन का कष्ट सराहनीय है क्योंकि अर्जुन कष्ट सत्य के लिए, मोक्ष के लिए, कृष्ण के लिए , धर्म के लिए सह रहा है। और दुर्योधन की पीड़ा तुच्छ(छुद्र) है, क्योंकि दुर्योधन राज्य सुख के लिए , नाशवान विषय भोग के लिए सह रहा है। 
कष्ट तो मिलना तय है, तुम सही कष्ट चुनो, तुम अर्जुन वाला कष्ट चुनो।

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