धर्म के नाम पर दुनिया में तरह-तरह की पूजा पद्धतियाँ, कर्मकांड, मान्यताएँ आदि प्रचलित है। हम धर्म के नाम पर किसी न किसी कुरितियों व रूढियों को जानते हैं। हम बस नाम के हिंदू रह गए हैं। क्योंकि हम धर्मग्रंथों (वेदांत , उपनिषद और गीता) छोड़ कर ढोंगी और पाखंडी गुरुओं की सुनने लगे हैं। आज के समय में हम धर्म के नाम पर जो कुछ करते हैं वह सब गीता के, उपनिषदों के, वेदांत के एकदम विरुद्ध है। धर्म ग्रंथों के विरुद्ध जीवन जीना धर्म कहलाता है क्या? जन्म लेने पर 50 के कर्मकांड, मरने पर तमाम प्रकार के कर्मकांड, कब नहाना है, कब खाना है, कब उठना है , कब सोना है? गीता में या उपनिषदों में ऐसी कोई बात नहीं लिखी है लेकिन फिर भी हम गीता और उपनिषदों के विरुद्ध जाकर कहते हैं कि हम धार्मिक हैं। आपके पास धर्म के नाम पर कोई भी कर्मकांड या कोई भी बात लेकर आए, आप तुरंत उससे पूछना कि ये भगवत गीता ,अष्टावक्र गीता, श्रीराम गीता में कहाँ लिखा है? ये कठोपनिषद कहाँ लिखा है? ये वेदांत में कहाँ लिखा है? धर्म के नाम पर जो कुछ भी तुम कर रहे हो मुझे बताओ उसका अष्टावक्र गीता से क्या संबंध है?
शनिवार और बृहस्पतिवार के दिन बाल मत कटवाना ,नाखून मत काटना, अमावस्या के दिन से बाहर मत निकलना, लोटे में तेल और गुण डालकर पीपल को चढ़ाओ इससे तुम्हारा दुख दूर होगा, नाग पंचमी में नाग को दूध पिलाओ, होली के दिन गुजिया और गुलाल भोगो, दिवाली के दिन खूब तमाशा करो और प्रदूषण फैलाओ, मूर्ति पूजा करो ताकि तुम्हारी कामनाएं पूरी हो जाए, उत्सव पर उछल उछल कर नाचो, ईश्वर की मूर्ति को भोग लगाओ, मूर्ति पूजा करो, बाहर अग्नि तिल और जौ जलाकर स्वाहा बोलो, धर्म के नाम पर और न जाने क्या-क्या प्रचलित है?
आपको वाकई लगता है कि यह सब गीता और उपनिषदो में लिखा है। क्या यह सब बातें कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं? अगर गीता में नहीं लिखा है तो यह सब क्यों कर रहे हो? उस व्यक्ति को अधार्मिक ही मानना जो गीता के विरुद्ध जीवन जी रहा है।
हमें धर्म क्यों अपनाना चाहिए? क्योंकि हम मरणधर्मा हैं अर्थात मरने वाले हैं, और धर्म कोई ऐसी विधि विशेष है जिससे हम अमर हो जाते हैं। आप और हम कौन हैं? हम और आप सनातन धर्म के अनुयायी हैं। सनातन क्या है? आत्मा ही सनातन है, यही एकमात्र सत्य है। गीता में लिखा है कि आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, ना जल गीला कर सकता है, ना वायु सुखा सकता है। दुनिया की हर वस्तु नाशवान है। आत्मा ही अजर, अमर ,अमृत स्वरूप है। मृत्यु शरीर का परिवर्तन मात्र है, आत्मा नहीं मरता, और ना ही किसी के द्वारा मारा जाता है। आत्मा असंग है। यदि आप आत्मिक पथ को नहीं जानते, अर्थात आत्मा में स्थिति दिलाने वाली विधि विशेष नहीं जानते, तो आप सनातन धर्मी नहीं हैं बल्कि सनातन धर्म के नाम पर किसी रूढ़ि को जानते हैं। और बहुत खेद की बात है कि आज की जनसंख्या क्या 99.99 लोग आत्मा की स्थिति को प्राप्त करने वाली विधि विशेष को नहीं जानते हैं, वे लोग बस नाम के हिंदू है, नाम के सनातन धर्मी है। गीता और उपनिषदों में लिखा है कि जो आत्मा को नहीं जानता वो पुरुष होते हुए भी नपुंसक है। आत्मा ही पुरुष स्वरुप है। यदि स्वयं को सनातन धर्मी अथवा हिंदू कहते हैं? उससे पहले आपको आत्मा की जानकारी होनी चाहिए। और आज की समय में बिना वेदांत उपनिषद और भगवत गीता श्री राम गीता के निकट जाए आत्मा से बारे में जानना बहुत मुश्किल है। और आत्मा को जाने बिना आप सनातन धर्मी हुए नहीं।
यदि आप स्वयं को राम भक्त कहते हैं तो राम के नारे लगाने से पहले श्रीराम गीता का अध्ययन करले, राम गीता को समझ ले। यदि आप स्वयं को शंकर भगवान के भक्त समझते हैं तो पहले रिभु गीता का अध्ययन करके समझलें। यदि आप स्वयं को कृष्णभक्त कहते हैं तो पहले श्रीमद्भगवद्गीता को समझ लीजिए। अगर मन में राम नहीं है तो बाहर राम की पूजा करने से , राम भक्त कहलावाने से ,राम के नारे लगाने से आप रामभक्त नहीं हो सकते, जब आप श्रीराम गीता को पढे़ंगे तब आपको वास्तव में समझ आएगा कि राम है कौन?
कबीर साहब कहते हैं कि राम का नाम लेने से, जप करने से, तिलक लगा लेने से कुछ नहीं होने वाला, जब तक राम हृदय में ना उपस्थित हों, मन में संसार घूम रहा हो तो राम का नाम लेकर करोगे क्या? यदि मन में राम बैठ गये तो फिर मुख से बोलने की आवश्कता ही नहीं पड़ती, क्योंकि मुख से राम बोल ही इसलिए रहे थे कि मन में राम बस जाएँ। यहाँ राम का अर्थ परमात्मा, निर्गुण ब्रह्म है। रामचरितमानस में उसी निर्गुण निराकार राम की व्याख्या की गई है कि ग्राम बिना पैर के चलते हैं बिना कान के सुनते हैं और बिना हाथ के सब कुछ कर देते है। तुलसीदास निर्गुण राम की उपासना कर रहे हैं।
यदि आप स्वयं को सनातन धर्मी कहते हैं तो पहले गीता को , उपनिषदों को , वेदांत को पढ़िए और समझिए। फिर आपको समझ में आएगा कि वास्तव में सनातन धर्म है क्या ? और आप सनातन धर्मी है कि नहीं?