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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

हमारा प्रेम राधा कृष्ण जैसा?

हमारे प्रेम की गुणवत्ता : राधा कृष्ण


हम सभी ने जैसे अपने प्रेम की कल्पना की है, ठीक वैसे ही हम अवतारों के प्रेम की कल्पना कर लेते हैं। हमें लगता है जैसे हम लड़की पीछे पागल रहते हैं वैसे ही अवतार भी स्त्रियों के पीछे पागल रहते हैं। हमने अपनी वासना को न केवल प्रेम कहा है बल्कि अवतारों के प्रेम को भी हमने अपनी वासना में सम्मिलित कर लिया है। 13 - 14 साल के लड़के लड़की एक दूसरे से बात कर रहे होते हैं और कहते हैं कि तू मेरी राधा है और मैं तेरा कृष्ण हूं। राधा कृष्ण का नाम लेकर के वासना को भी प्रेम का नाम देते हैं आजकल के लड़के लड़की। अवतार है वो , उनकी भी मजबूरी है कि वह तुम्हें जगाने के लिए अवतरित हुए हैं, वह इसलिए हैं कि वह तुम्हें तुम्हारी बेहोशी से उठा सके लेकिन तुमने उन्हें ही अपनी बेहोशी का हिस्सा बना लिया है। अवतार प्रतीकात्मक होते हैं। कृष्ण किसके प्रतीक हैं? राधा किसकी प्रतीक हैं? कृष्ण वो है जो यथार्थ हैं, जो अंतिम हैं, जो पूर्ण हैं, जो सत्य हैं , जो आत्मा मात्र हैं। और राधा कौन हैं? राधा हमारे बेचैन मन का प्रतीक हैं। ये हमारा बेचैन मन है राधा। राधा हमेशा बेचैन रहती हैं कृष्ण के लिए? ठीक ऐसे ही हमारा मन भी बेचेन रहता है सत्य के लिए , यथार्थ के लिए , पूर्णता के लिए ,मुक्ति के लिए। बात समझ में आ रही है? कृष्ण माने सत्य, कृष्ण माने आनंद, और राधा माने बेचैन मन, अतृप्त चेतना।
हमारा मन सदैव बेचैन रहता है सत्य के लिए। क्योंकि सत्य ही एकमात्र है जिस पर पूरा विश्वास किया जा सकता है, जो कभी बदलता नहीं है , दुनिया की हर वस्तु बदलती रहती है, केवल सत्य नहीं बदलता। इसीलिए हमारा मन सत्य की तलाश में रहता है, पूर्णता की तलाश में रहता है। और यही प्रेम है। बेचैन मन का चैन की प्रति, सत्य के प्रति, मुक्ति के प्रति खींचाव ही प्रेम है। लेकिन हम सभी ने प्रेम के नाम पर अपनी अपनी धारणाएँ बना रखी हैं। हम इसी को तो प्रेम कहते हैं कि जिससे शरीर का सुख मिल गया।

हमारी दृष्टि है कामुकता वाली है। इसीलिए हमने अवतारों की भी कमुकता वाली छवि बना रखी है। हमने वासना को ही प्रेम समझ लिया है, इसीलिए हमें लगता है कि अवतार भी वासना वाला प्रेम करते हैं। हम स्वयं दुखित गृहस्थी हैं इसीलिए हमने अवतारों को भी दुखी गृहस्थी ही समझा है। 
अवतार प्रतिकात्मक होते हैं, लेकिन हमने उन्हें ही अपने जैसा स्थूल बना लिया है। राम सत्य के, त्याग के प्रतीक हैं। सीता किसकी प्रतीक हैं? सीता शक्ति की प्रतीक, करुणा की प्रतीक हैं। अन्यथा सीता तो सती थीं, अपनी सतीत्व के तेज के बल से रावण को भष्म कर देती। लेकिन सीता जी ने रावण पर करुणा किया कि सत्य को जान लेने के बाद तेरा शरीर छूटे ताकि तुझे मुक्ति मिल सके।
स्वयं की तुलना अवतारों से इस प्रकार मत करिए कि अवतारों को अपनी छुद्रता का हिस्सा बना लें, बल्कि अवतारों से इस प्रकार से तुलना करें कि अपनी तुच्छता को त्याग कर उनके विराटता को ग्रहण करें। आप अपने आप को बदल ही डालें। आप रह ही न जाए जैसे पहले आप रहा करते थे। आपका जीवन ही ऊँचा हो जाए, जीवन ही बदल जाये ऐसी तुलना करिए। फिर अवतार सार्थक हो जायेंगे क्योंकि उन्होंने अवतार ही तुम्हारे कल्याण के लिए लिया था क्योंकि तुम स्वतः ऊँचे उठने वाले थे नहीं।


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