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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

परमात्मा कैसे मिलें ?

समस्त चाहतों से मुक्त होना ही परमात्मा की चाहत है।

परमात्मा कोई व्यक्ति या वस्तु तो हैं नहीं , जिन्हें आपको पाना है। परमात्मा को चाहने का अर्थ है कि समस्त चाहतों से निवृत्त हो गए। क्योंकि इच्छाओं ने ही तो हमें बांधकर रखा है शरीर में। कबीर साहब कहते हैं कि इच्छा ही काया है। इच्छा ही माया है, इच्छा ही जगत उत्पत्ति का कारण हैं।
परमात्मा का मिलना , ब्रह्म लीन होना और मुक्ति प्राप्त होना, स्वतंत्र होना, एक ही बात है। 
हम सब कठपुतली हैं, गुलाम है। पूरी दुनिया को पता है कि हमारा कौन सा बटन दबाने से हम क्रोधित होंगे ,हर्ष होंगे, दुखी होंगे इत्यादि केवल हमें नहीं पता है। कोई तुम्हारी निंदा करदे तो तुम तुरंत क्रोधित हो जाओगे , दुखी हो जाओगे, और कोई तुम्हारी प्रशंसा कर दे तो तुम तुरंत हर्षित हो जाओगे। जिसको आप अपनी इच्छाएं बोलते हो, वास्तव में आपकी अपनी इच्छा है ही नहीं। वो इच्छा हम समाज में मिली, हम समाज के गुलाम है। 
जिसको आप अपना मान रहे हो , वो आपका है ही नहीं, वह संसार से मिला है, समाज से मिला है। कोई आपकी प्रसंशा कर दे, आपका गद् गद् (हर्षित) हो जाते हो, कोई आपकी निंदा कर दे , आप दुखी हो जाते हो। पूरी दुनिया को, पूरे समाज को पता है कि कौन सा बटन दबाने से आप पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तो ये जो गुलामी है इससे मुक्त होने का नाम है - परमात्मा की प्राप्ति।

गुलाम हो तो हो , चाहे अच्छे समाज की गुलाम हो, चाहे बुरे समाज के गुलाम हो , चाहे अच्छी आदतों की गुलाम हो , चाहे बुरे आदतों के गुलाम हो। परमात्मा की प्राप्ति का अर्थ कि सबसे मुक्त हो गये, फिर चाहे मंदिर जाने की बात हो या वैश्यालय जाने की बात हो। परंतु शुरुआत में मंदिर महत्व है। पहले वेश्या के कोठे पर जाते थे, किंतु अब मंदिर जाते हैं, किंतु इसके बाद एक स्थिति ऐसी भी आती है कि अब कहीं जाने का प्रयोजन नहीं बचा। मंदिर जाते थे कि वेश्यालय से मुक्त हो जाएँ, लेकिन बाद में ऐसी स्थिति भी आ गई कि अब वैश्यालय और मंदिर- दोनों से मुक्त हो गये। क्योंकि परमात्मा का अर्थ ही है स्वतंत्रता। जब भगत सिंह कहते हैं कि मुझे पहले ही स्वतंत्रता से प्रेम हो गया है , तो इसका यह अर्थ मत निकाल लेना कि स्वतंत्रता और परमात्मा अलग-अलग हैं। स्वतंत्रता का ही नाम है मोक्ष और यही परमात्मा हैं। तो भगत सिंह नास्तिक नहीं थे। उन्होंने परमात्मा शब्द ना उपयोग करके स्वतंत्रता का इस्तेमाल कर दिया। तो जो अभी समाज के गुलाम बने बैठे हो, अपने वृत्तियों के गुलाम बने बैठे हो, अपनी तुच्छ इच्छाओं के गुलाम बने बैठे हो , उसी से मुक्त होने का नाम है - परमात्मा की प्राप्ति , यही मोक्ष है।



ये जो संसार को अपना बटन दे रखा है, सुखी और दुखी होने का। इससे मुक्त होने का नाम है - परमात्मा की प्राप्ति। अब कोई बटन दबाएं है , या ना दबाए हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अब मुक्त हो गए। अब कोई चाहे निंदा करे, चाहे प्रशंसा करें, अब हम समाज के गुलाम नहीं रहे, कोई भी बटन के दबाए, या बार बार दबाता ही जाए। हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि अब हम समाज के गुलाम नहीं हैं। और इस गुलामी से आजादी की ओर बढ़ना ही परम धर्म है। और यही प्रेम है। तो स्वतंत्रता ,मोक्ष ,मुक्ति, परमात्मा, ब्रह्म एक दूसरे से भिन्न नहीं बल्कि, एक दूसरे के पर्याय हैं।


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