प्रश्न- शक्ति(दुर्गा) कौन हैं? देवी दुर्गा जी के पूजा का वास्तविक अर्थ क्या है?
समाधान - ब्रह्म एकमात्र सत्य है। सत्य ही शिव है। शिव का साकार रुप ही शक्ति है। ये शक्ति नित्य और अजन्मा हैं किंतु साधकों की रक्षा के लिए अवतरित होती हैं , किंतु स्थूल रूप में नहीं। ये नौ देवियाँ प्रतिकात्मक हैं। जब साधक शाश्वत स्वरुप की ओर अर्थात परमात्मा की ओर बढ़ता है, तो काम, क्रोध, मोह, लोभ ,अहंकार, आदि शत्रु बाधा के रूप में खड़े हो जाते हैं, साधक की इन दुर्जय शत्रुओं का विनाश करने के लिए देवी अवतरित होती हैं। ये बात बहुत सूक्ष्म है, इसको स्थूल मत मान लेना कि देवी का कहीं बाहर अवतार होता है। इस बात को साफ-साफ समझ लो कि देवी का अवतार बाहर नहीं होता, लेकिन खेद की बात है कि पूरे भारत में नवरात्रि में यही होता है कि स्थूल रुप से देवी की मूर्ति की पूजा की जाएगी , कर्मकांड किए जाएंगे। देवी के मर्म को नहीं जानेंगे, केवल और केवल दुनिया की देखी देखा कर्मकांड और मूर्ति पूजा करेंगे। देवी इसलिए अवतरित हुई हैं कि वह हमें मुक्ति की राह में सहायक हो सके। किसी विशेष साधक के अंतःकरण में देवी का अवतार हुआ है कि साधक अपने दूर्जय शत्रु काम ,क्रोध ,मोह, लोभ अहंकार से पार पा सके, देवी साधक के इन शत्रुओं संघार करने के लिए अंतःकरण में अवतरित हुई हैं क्योंकि ये काम, क्रोध, मोह, लोभ,अहंकार - ये शत्रु भी अंतः करण में हैं।
अभी आपके भीतर और बाहर, दोनों तरफ चल रहा है काम। और जब आप काम से राम की ओर बढ़ते हैं, तो काम ,क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार रुपी ये शत्रु आप पर आंतरिक रुप से आक्रमण कर देते हैं। आपको राम की ओर बढ़ने नहीं देते, आपकी मुक्ति की राह में बाधक हो जाते हैं, आपको शिव की ओर अर्थात परमात्मा की ओर अर्थात मुक्ति की और बढ़ने में बाधक शत्रु रुपी काम ,क्रोध ,मोह ,लोभ ,अहंकार का विनाश करने के लिए देवी दुर्गा जी का अवतार होता है, प्राकट्य होता है। देवी स्थूल रूप में अवतार नहीं लेती।
किंतु खेद की बात है कि हमने अवतारों की स्थूल रूप में ही पूजा किया है। जबकि वास्तव में पूजा बाहर नहीं होती।
अवतार उन्होंने इसलिए लिया ताकि वो हमारे मुक्ति के राह में सहायक हो सके, लेकिन हम सब ने अपने साथ बड़ा ही दुर्व्यवहार किया है कि अवतार हमारे मुक्ति की राह में काम तो नहीं ही आएँ बल्कि हमारे बंधनों में सहायक हो जाएँ। भगवान ने अवतार हमारी इच्छा पूर्ति के लिए नहीं लिया है।
ईश्वर ने अवतार लिया है, हमें हमारी बेहोशी से उठाने के लिए , हमें हमारी नींद से उठाने के लिए, लेकिन हम सब ने क्या किया है? हम देवी देवताओं अवतारों का ऐसा अर्थ निकाला है कि वह हमें हमारे नींद से उठाएँ तो नहीं, बल्कि हमारी नींद में सहायक हो जाएँ।
देवी, देवताओं का और अवतारों का हमने गलत अर्थ निकाला है। जैसे कोई बच्चा हो और सो रहा हो। 9 बज चुकें हैं और अभी भी सो रहा है। तो उसके पिता आकर उसे जगाने लगे और कहें कि चल उठ! 9 बज चुके हैं और अभी भी तु सो रहा है, चल जल्दी से तैयार हो जा, स्कूल जाना है। और वो बच्चा क्या करे? वो बच्चा कहे कि सोने दो पिता जी , आप भी आ जाओ और सोना शुरु कर दो क्योंकि सोने में मजा आता है। ठीक यही हमने देवी, देवताओं और अवतारों के साथ करा है। उन्होंने अवतार हमारे कल्याण के लिए लिया था, हमारी मुक्ति की लिए लिया था, लेकिन हमने उन्हें अपने बंधनों का हिस्सा बना लिया है। वो सब कुछ जो तुम्हारे मुक्ति की राह में सहायक हो, वही हैं देवी देवता, वही हैं अवतार। अन्यथा बाहर कोई देवी देवता नहीं हैं , कोई अवतार नहीं, जिनको अगरबत्ती लगाकर पूजा करना है।
आपके मन की शुद्धि में जो कुछ भी सहायक हो, वो दुर्गा ही हैं। जब देवी आपके मन में प्रकट होकर आपकी मन की शुद्धि करने लगे।
जब काम, क्रोध, मोह,लोभ,इच्छा, अंहकार, आदि विकारों का संहार करने लगे तब आप मुक्ति ओर बढ़ते हैं, और मुक्ति की ओर बढ़ने में देवी का सानिध्य जरुरी है। ये हुआ दुर्गा पूजा का असली अर्थ। देवी का अवतार हमें मुक्ति की ओर ले जाने के लिए हुआ है और हमारे अंतः करण में हुआ है बाहर नहीं। पूजा बाहर नहीं होती। देवी की स्तुति आंतरिक कर दी हैं वह हमारे अज्ञान का हमारे मुंह का नाशकरेंगगी, वह हमें अहंकार का नाश करेंगी। मुक्ति मार्ग में बाधक काम ,क्रोध, मोह ,लोभ, अहंकार, आदि विकारों के रूप शत्रुओं का नाश करने के लिए देवी का अवतार साधक के हृदय में हुआ है।
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