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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

श्रीमद्भगवद गीता

श्रीमद्भागवत गीता की मूल बात समझें

श्रीमद्भगवद्गीता का दो अर्थ है- आध्यात्मिक और सामाजिक। अर्थात गीता का उपयोग जितना साधकों के लिए उपयोगी है, उतना ही सामाजिक उत्थान के लिए भी आवश्यक है। लेकिन गीता का आध्यात्मिक अर्थ सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि समस्त मानव जाति किसी ना किसी रूढ़ि से, बंधन से, भ्रम से, डर से जकड़ा हुआ है। गीता हमारे बंधनों और भ्रम से मुक्त करा कर हमें हमारे शाश्वत स्वरूप तक ले जाता है। गीता हमें ब्रह्म में लीन कराता है। इसीलिए गीता को एक प्रकार का उपनिषद भी कहा गया है। संपूर्ण उपनिषदों का सार अकेले गीता में हैं। संसार में तरह-तरह की पूजा पद्धतियाँ, कर्मकांड धर्म के नाम पर प्रचलित हैं, जबकि धर्म का अर्थ अपने शाश्वत स्वरुप की ओर अग्रसर होना, परमात्मा की ओर जाना, मुक्ति की ओर जाना, शांति की ओर जाना। आप कौन हैं? हम और आप सनातन धर्म के अनुयायी हैं। सनातन क्या है? आत्मा ही शाश्वत ,सनातन ,सत्य और अमृत स्वरुप है। अर्थात हम और आप आत्मा के उपासक है। आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म, भगवान, ईश्वर, मोक्ष एक दूसरे की पर्याय हैं। हमें धर्म क्यों अपनाना चाहिए? क्योंकि हमारी स्थिति ठीक नहीं है, हममें शरीर भाव सघन है, इसलिए हमें मृत्यु का भय सताता है, यदि हम शरीर भाव से मुक्त हो गए, और अपने शाश्वत स्वरुप में स्थित हो गये अर्थात आत्मस्थ हो गए, तो हम अमर हो गए।
यहाँ ध्यान दीजिए- हम अमर होंगे , हमारा स्वरूप अमर होगा, ना कि शरीर। शरीर तो नाशवान है, अनित्य,क्षणभंगुर है, आत्मा ही अजर, अमर ,अमृत ,स्वरूप है। अर्थात गीता हमें यह बताती है कि हम अपने अखंड और शाश्वतस्वरुप को भूल गए हैं, हमें अज्ञान,मोह, आशक्ति, अहंकार हो गया है। हममें विकार आ गया है, हमारी स्थिति ठीक नहीं है। हमें अपनी स्थिति को ठीक करना है, आध्यात्मिक अर्थ में हमारी हालत ठीक नहीं है और सामाजिक अर्थ में समाज की हालत ठीक नहीं है। इसीलिए हमें सबसे पहले स्वयं को ठीक करना पड़ेगा , उसके बाद में स्वयं के द्वारा समाज को ठीक करना पड़ेगा यही है गीता का संदेश। जो स्वयं गढ्ढे में गिरा हो, वह दूसरों को क्या बाहर निकालेगा? अर्थात हमारी हालत ठीक नहीं है, हमें मोह ने , अज्ञान ने, आशक्ति ने, अहंकार ने दबोच लिया है। हमें उनसे छूटना है ,उनसे लड़ना है, हमें हमारे बंधनों को, आशक्ति को, मोह को, अज्ञान को काटना है, यही युद्ध है। जब हमारे भीतर के दुर्गुण दूर होने लगें, तो हमें समाज से भी व्याप्त बुराइयां मिटानी पड़ेगी। लेकिन सबसे पहले हमें स्वयं गढ्ढे से निकलना पड़ेगा , और फिर समाज को भी गढ्ढे से निकालना पड़ेगा। अगर हमें दुर्योधन को मारना है तो हमें सबसे पहले कृष्ण के पक्ष में आना पड़ेगा, कृष्ण की सेना में सम्मलित होना पड़ेगा।
बिना कृष्ण के सानिध्य के आप दुर्योधन को नहीं हरा सकते। पहले हमें अपनी स्थिति के बारे में बात करनी होगी कि हमारी हालत क्या है? गीता का आध्यात्मिक अर्थ यही है कि हमें अपने अज्ञान को , मोह को, अहंकार को , आशक्ति को, लगाव को त्यागना पड़ेगा और निर्मल होना पड़ेगा। और जब हम सुधरने लगेंगे तो हमारे माध्यम से दुनिया भी सुधर जाएगी। गीता का सामाजिक अर्थ हुआ कि हमारे भीतर निर्मलता, निर्दोषता , सत्यता की स्थिति आ गई तो हम करुणावश होकर दुनिया को भी सत्यता, निर्मलता ,निर्दोषता देना चाहेंगे। हमारे पास कृष्ण होंगे ,सत्य होगा , मोक्ष होगा, शांति होगी, तभी तो हम दुनिया को कृष्ण , सत्य, मोक्ष ,शांति दे सकेंगे। हमें अगर दुर्योधन को हराना है, तो हमें सबसे पहले कृष्ण को चुनना पड़ेगा, कृष्ण के पक्ष में जाना पड़ेगा। कृष्ण का अर्थ है ज्ञान , कृष्ण का अर्थ है सत्य , कृष्ण का अर्थ है परमात्मा।


भगत गीता को और गहराई से समझना है, तो कमेंट में भाग 2 लिखें।

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2 टिप्पणियां

  1. bhagwat gita bhaag 2
  2. बहुत अच्छा लगता हैं आपकी पोस्ट
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