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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

डरो नहीं, भिड़ जाओ : श्रीमद्भागवत गीता

असत्य से, अनाचार से, अधर्म से, डरो नहीं, भिड़ जाओ : श्रीमद्भागवत गीता

श्रीमद् भगवत गीता का वास्तविक अर्थ यही है असत्य से , अधर्म से डरो नहीं , भिड़ जाओ। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बता दिया है कि आत्मा ही शाश्वत है ,सत्य है, सनातन है, शरीर के नाथ होने पर भी आत्मा नहीं मरता और ना ही जन्म लेता है, आत्मा ही पुरुष स्वरूप है, अमृत स्वरुप है, आत्मा के सिवाय दूसरा कुछ भी सत्य नहीं है, आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, न जल इसे गीला कर सकता है, ना किसी में समाहित हो सकता है , अनंत है, अद्वैत है। आत्मा की गुणधर्मों को बताने के बाद श्रीकृष्ण कहते कि हे अर्जुन युद्ध करो। श्री कृष्ण अर्जुन से ये थोड़ी ही कह रहे हैं कि चलो अब आत्मा के बारे में जान दिया तो अब समाधि लगा लो। श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि अर्जुन अब आत्मा को जान लिया है, अब आगे आत्मा की ओर बढ़ो और आत्मा की ओर जाने में जो कोई भी बाधा आए , उसको निडर होकर काटते चलो, मारते चलो, नष्ट करते चलो , त्यागते चलो। आत्मा को जान लिया कि वह इच्छारहित और मुक्त है,और यही एक मात्र सत्य है, तो अब सत्य की ओर बढ़ो, मुक्ति की ओर चलो,और यदि सत्य की राह में जो कोई बिघ्न बनें उसे मारते चलो, अज्ञान से उत्पन्न मोह रुपी दुर्योधन को मारते चलो, दुर्बुद्धि रुपी दुशासन को मारते चलो, अपनी चालाकी रुपी शकुनि को त्यागते चलो।
द्वैत रूपी द्रोणाचार्य से लड़ो क्योंकि जब तक द्वैत रहेगा, तब तक अद्वैत(आत्मा) की प्राप्ति दुष्कर है। अपने भ्रम को काटते चलो, भीष्म माने भ्रम। आशक्ति रूपी अश्वत्थामा से लड़ो। गीता में कृष्ण अंतः करण की स्वच्छता की बात करते है। आगे श्रीकृष्ण कहते हैं ये लोग मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं। श्रीकृष्ण सत्य में प्रतिष्ठित थे। उपनिषद का मंत्र है कि जो ब्रह्म को जानता है , वह ब्रह्म ही हो जाता है। अतः श्रीकृष्ण निर्गुण, निराकार ,निर्विकार इच्छा रहित ,मुक्त, अविनाशी ब्रह्म हैं। श्रीकृष्ण आत्मस्थ हो चुके है। और श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता इसलिए कहते हैं क्योंकि अर्जुन आत्मस्थ होना चाहता था, अर्जुन ने कहा था कि हे कृष्ण ! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण हूँ। मुझे संभालिए।मुझे ऐसा उपदेश दीजिए जिससे मैं परमश्रेय कल्याण को प्राप्त हो जाऊं अर्थात आत्मस्थ हो जाऊं। इसीलिए श्रीकृष्ण अर्जुन को दूसरे अध्याय में आत्मा के बारे में बताया, और फिर उसके बाद में कहा कि युद्ध करो, अर्जुन से डरने को श्रीकृष्ण नहीं कहते हैं, डटने की बात करते हैं। सत्य की राह पर, धर्म की राह पर, आत्मस्थ होने की राह पर निडरता से लड़ने की बात कर रहे हैं श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण अर्जुन को आंतरिक ताकत दे रहे हैं, भीतर की ताकत देते हैं और भीतर की ताकत माने आत्मा की ताकत। श्रीकृष्ण दूसरे अध्याय में आत्मा की बात करते हैं।
श्रीकृष्ण ने कोई नया मार्ग नहीं बताया बल्कि उपनिषदों की वाणी को प्रतिपादित करते हुए आत्मा की बात कर रहे हैं। पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बता दिया कि सत्य क्या है? धर्म क्या है? आत्मा को ही एकमात्र सत्य बताने के बाद श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि अब सत्य को जान लिया है तो अब सत्य के खातिर लड़ो, धर्म के खातिर लड़ो। श्रीकृष्ण आत्मा के बारे में बताने के बाद ये नहीं कहते कि जाओ अब समाधि लगा लो, श्रीकृष्ण लड़ने की बात करते हैं। श्रीकृष्ण किससे लड़ने की बात कर रहे हैं? असत्य से, अधर्म से। श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि असत्य से, अधर्म से, भिड़ जाओ, डरो नहीं। क्योंकि भय प्रकृति में होता है परमात्मा ने नहीं। परमात्मा तो अभय सत्ता है।


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