क्या हाल चाल है?भाई!
ठीक नहीं है।
क्यों ठीक नहीं है?
क्योंकि भाग्य में दुख लिखा है। मजबूर हैं।
कोई मजबूरी तुमसे बड़ी कैसे हो गई? भाई! ये मत कहो कि मजबूर हैं या भाग्य में लिखा है। बल्कि ये कहो कि मेरी मर्जी है कि मैं दुखी रहूं इसलिए मैं दुखी हूं। तुम्हारा दुख तुम्हारा चुनाव है मजबूरी नहीं। तुम बड़े ढीठ आदमी हो। तुम पहले खुद गलत निर्णय लेते हो , गलत चुनाव करते हो और फिर कहते हो कि ये दुख काहे खत्म नहीं होता? भई वो दुख तुम्हारा चुनाव है। जैसे कोई बच्चा सिकायत करे कि मैं परीक्षा में फेल क्यों हो गया? जबकि उस बच्चे ने परीक्षा में कुछ नहीं लिखा है और सोचता है कि पास हो जाऊंगा। कैसे पास हो जाएगा जब कुछ लिखा ही नहीं? अर्जुन ने पहला चुनाव किया कि कृष्ण चाहिए और तर गया। तुम अपना पहला चुनाव तो सही करो। तुम्हारे पास ₹100 का नोट भी होता है तो उसे देखते हो कि कहां खर्च कर रहे हो? जीवन ₹100 की नोट से भी कम कीमत की है क्या? जो ध्यान ही नहीं देते कि कहां समय खराब कर रहे हो, कहां जीवन व्यर्थ नष्ट कर रहे हो? जीवन का मतलब समय ही तो होता है ना? मृत्यु का अर्थ हुआ कि जब समय ना रहे।तुम समय को डर में बिता रहे हो तो तुमने बचा क्या लिया? जैसे कोई भिखारी डर रहा हो कि कहीं लूटना जाऊं? अरे! तेरे पास है क्या जो लूटेगा? जो तुम्हारा है वो तुमसे कभी छिन नहीं सकता, और जो तुम्हारा नहीं है उसे तुम कभी बचा नहीं सकते। किस बात का डर है? किस बात का दुख है? किस बात को लेकर बड़े गंभीर हो रहे हो? अभी मर जाओ तो वही लोग तुम्हें दफना आएंगे, जला आएँगे जिनके लिए तुम बहुत गंभीर हो, बहुत दुखी हो। नर बड़ा अनमोल, तु समझ ले इसका मोल। संत कहते हैं कि भोग से रोग बढ़ता है और रोग से शोक बढ़ता है। तुम्हारा दुख दूर हो तो हो कैसे? कभी ओश के कण से प्यास बुझी है क्या? कभी नहीं। तुम्हें चाहिए असीमित और प्रकृति में जो कुछ विषय है, वो सीमित है। तुम्हें कोई ऐसा चाहिए जो कभी न बदले। और जो प्रकृति में है वह सब निरंतर बदलता ही रहता है। तुम भागते हो प्रेय के पीछे, यह तुम्हें तात्कालिक और क्षणिक सुख देता है। और वास्तव में तुम्हें श्रेय चाहिए जिसको संक्षेप में सत्य ,परमात्मा ,ब्रह्म कहते हैं। परमात्मा को पाने के लिए तो उपनिषद की ओर आना ही होगा।
