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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

हर हर शंभू : शिव महादेव

हर हर शंभू रटने से शिव नहीं मिलेंगे

अध्यात्म में प्रतीक होते हैं। शिव किसके प्रतीक हैं? शिव सत्य के प्रतीक हैं। सत्य माने ब्रह्म। यदि आप उस सत्य को नहीं जानते, तो हर हर शंभू रटने से शिव तक नहीं पहुंच पाओगे। हाँ इससे लोक प्रसिद्धि अवश्य मिल जायेगी परंतु शिव नहीं मिलेंगे। शिव को जानना हो तो रिभु गीता पढ़ना पड़ेगा। शिव वो जो नाश करते हैं, जो संघारक हैं। शिव किसका विनाश करते हैं? अधर्म का विनाश करते, असत्य का विनाश करते हैं, पाप का विनाश कर देते हैं, सुख और दुख का विनाश कर देते हैं। हरि का अर्थ होता है जो सब कुछ हर लेता हो , और जब सब कुछ नष्ट हो जाएगा तो केवल क्या बचेगा? सत्य बचेगा, क्योंकि सत्य का कभी नाश नहीं होता और वह सत्य है क्या? आत्मा ही सत्य है जिसे ब्रह्म अथवा परमात्मा भी कहते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण ने आत्मा को उद्घाटित किया है कि आत्मा ही एकमात्र सत्य है। वही सनातन है , अविनाशी है, जो पुरुष सत्य खाना है अर्थात परमात्मा का अनुयायी है सिर्फ वही सनातन धर्मी है। उस सत्य को आप आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म, महादेव, शिव, कृष्ण, राम,ओम आदि नाम से बोल सकते हैं। यदि आप शिव को जाने बिना हर हर शंभू का जाप कर रहे हो, और केवल वाणी से बोल रहे हो तो उसका कोई लाभ नहीं होगा। शिव को जानने का अर्थ है किस जितनी फालतू चीजें को जान रखा है उनसे अब मुक्त हो गए।
कबीर साहब कहते हैं कि जब माला छापा तिलक सरय न एकौ काम, मन काचै नाचै व्यृथा, साँचे राँचे राम अर्थात केवल नाम जपना और माला फेरना और तिलक लगाने से कुछ नहीं होगा, जब मन सत्य अर्थात शिव उतर आएँ, तभी वास्तविक भजन आरंभ होता है। और यदि शरीर रहते शिव को नहीं जाना, तो फिर पशु बराबर हो। जब शिव का असली अर्थ जानोगे तभी नामजप और सुमिरन का लाभ मिलेगा। जब तक हृदय में शिवत्व नहीं है शिव के लिए प्रेम नहीं है ,तब तक शिव रटने से शिव नहीं मिलने वाले। आ रही है बाद समझ में? 
शिव के नाम पर इतना उपद्रव , इतनी अशालीनता क्यों फैला रहे हो? तथाकथित गुरु लोग भी शिव के नाम पर भद्दे गाने पर उछल-उछल कर नाच रहे हैं, कूल्हे मटका रहे हैं। अरे भई ! शिव हैं वो, शिव माने शांति, और नाच कर और अशांति फैलाकर स्वयं को शिव भक्त बता रहे हो? शिव माने चैन, शांति ,मौन, स्थिरता। स्वयं को शिवभक्त कहने से पहले एक बार रिभु गीता पढ़ लीजिए। हमारा मन हमेशा बेचैन रहता हैं, भागता रहता है, लेकिन जब शिवत्व हृदय में प्रवाहित होगा, तब मन संतुष्ट, तृप्त और शांत हो जाएगा। मन में बेचैनी बनी हुई है और विचार चलते ही रहते हैं तो समझ लेना कि अभी शिव नहीं मिले हैं।


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