गीता का श्लोक है कि श्री कृष्ण कहते हैं, "अर्जुन! जो मरते वक्त मेरा स्मरण करते हैं वह मुझे प्राप्त होते हैं।
लोग सोचते हैं कि जीवन भर मौज करें और मरने लगेंगे तो भगवान को याद कर लेंगे। किंतु ऐसा नहीं है। अगर जीवन भर रावण को भजा है तो मरते वक्त राम कैसे याद आएंगे? मृत्यु का अर्थ होता है मन का मिट जाना। क्योंकि मन का प्रसार ही तो जगत है। यदि मन मिट गया, मन विलय हो गया तो संसार कहां रह गया जाएगा? जब मन सत्य में विलय होकर सत्य ही हो जाए, तो वही योगी है और वही संयासी है।
आत्मा कभी नहीं मरता, और ना ही जन्म लेता है, आत्मा ही सत्य है और आत्मा ही सनातन है। जो इस आत्मा को मरा हुआ जानता है और जो इस आत्मा को मारने वाला जानता है, इन दोनों प्रकार की लोग आत्मा को नहीं जानते। शरीर मरता है, मन मरता है, शरीर विलय होता है, मन विलय होता है।
जिसे आप मृ्त्यु बोलते हैं उसका अर्थ यही होता है कि समय ना बचे, शरीर ना बचे। तो जो आपका सबसे बड़ा दुश्मन हुआ वो जो आपका समय नष्ट कर रहा हो, जो आपका शरीर नष्ट कर रहा हो। यह पता ही है कि मरना तो सभी को है। कोई यहां बचने वाला नहीं।साधु यह मुर्दों का गांव। हम मृत्यु से नहीं डरते हम अपने जीवन बर्बाद हो जाने से डरते हैं। अपनी चेतना का उद्धार करो ,ऊंचाई दो फिर मौत का डर नहीं सताएगा। डर तो अपना दोस्त है। डर हमें बता रहा है, जीवन बर्बाद जा रहा है। हमें डर से डरना नहीं है, हमें डर से सीख लेनी है, हमें डर का सही उपयोग करना है। डर को दबाएँ नहीं, हमें पता है कि हमें शरीर कुछ समय के लिए दिया गया है, परंतु शरीर छीनने से पहले हमें शरीर का सदुपयोग कर लेना है फिर डर नहीं लगेगा। जैसे आप दवाखाना से कोई दवाई लेते हैं जो 5 दिन में खराब हो जानी है। आपको पता है कि 5 दिन में खराब हो जानी है तो आप उसका सही उपयोग कर लेंगे कि 5 दिन से पहले ही उस दवाई का सेवन कर लेंगे। ताकि जो दवाई का लाभ हो वह हमें मिल जाय। तो आप को दवाई के बेकार जाने का भय खत्म हो जाएगा। क्योंकि दवाई का सदुपयोग होगया। मृत्यु का डर इसलिए है क्योंकि जीवन बर्बाद जा रहा है। किसी ऐसे काम में लग जाओ जो तुम्हारी चेतना को ऊंचाई दे, जो तुम्हें सत्य की ओर लेके जाए, जो तुम्हें मुक्ति की ओर लेके जाए, जो तुम्हें परमात्मा की ओर लेकर जाए।