Vedanta, Upnishad And Gita Propagandist. ~ Blissful Folks. Install Now

𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

ॐ का अर्थ और इससे लाभ

अ + उ + म = ओम || ओम जपने से लाभ

अ, उ, म मिलकर ओम बनता है। अ जागृत अवस्था का प्रतीक है, उ स्वप्न अवस्था का प्रतीक है, म सुषुप्ति अवस्था का प्रतीक है। और ओम के बाद जो मौन स्थिति आती है। जिस परमात्मा में सूरत लग चुकी, उस परमात्मा में समत्व प्राप्त हो जाता है। चौथी और अपार स्थिति में उठते ,बैठते ,चलते, फिरते सर्वत्र उसे परमात्मा से अनुभूति होने लगती है। परंतु ये अंतिम स्थिति है कोई छलाँग लगाकर यहाँ तक पहुंच नहीं सकता। उसे क्रमबद्ध आना पड़ेगा। पहली स्थिति 'अ' अर्थात जागृति स्थिति होती है जिसमें जब आप चिंतन अराधना करने बैठे सब इंद्रियां बहिर्मुखी होने के कारण चिंतन आराधना क्रिया में अनवरत नहीं लग पाती। यह अवस्था प्रारंभिक साधकों की होती है। आप भजन में लगना चाहे किंतु काम , क्रोध , राग, द्वेष, मोक्ष, अहंकार, यह सब शत्रु आपको भजन में बैठने नहीं देंगे। आप भजन करने बैठें, और वहां से कोई स्त्री गुजर जाए, तुरंत आपकी इंद्रियां उस स्त्री की ओर देखने लालायित हो जाएंगी। जब आप भजन करने लगें तब आपका मन लगने वाला है कि नहीं? कितनी देर तक भजन में आपका मन लगने वाला है? कब मन भजन को छोड़ कर विषयों में जाने लगी? इस परिस्थिति का अनुभव तभी होगा, जब आपके हृदय में ईश्वर के लिए असीम अनुराग हो। 
जब प्रारंभिक साधक शुरुआत में भजन करने बैठता है, तो उसकी जागृत अवस्था होती है।
दूसरी अवस्था आती है 'उ' अर्थात स्वप्न की अवस्था। भजन का अभ्यास करते करते जब ईश्वर आपके हृदय में अवतरित हो जाते हैं तब स्वप्न भी निर्देश में बदल जाता है, अर्थात योगी सपना नहीं देखता बल्कि स्वप्न की रूप में निर्देश देखता और सुनता है। 
उपरोक्त दोनों अवस्थाएं जागृति और स्वप्न आरंभिक अवस्थाएं हैं। किसी तत्वदर्शी महापुरुष की शरण में जाने और मन में उनके प्रति श्रद्धा रखने और टूटी फूटी सेवा करने से ये दोनों अवस्थाएं जागृत हो जाती है। अर्थात सद्गुरु के सानिध्य में जाकर अनन्य श्रद्धा से उनकी सेवा करने पर 'अ' और 'उ' अर्थात जागृति और स्वप्न अवस्था आ जाती है।


तीसरा अवस्था है 'म' अर्थात सुषुप्ति अवस्था। सुषुप्ति का अर्थ है कि जब परमात्मा चिंतन ऐसी डोर लग जाए कि सुरत अर्थात ध्यान एकदम स्थिर हो जाए, शरीर जागता रहे, शरीर जो कुछ करना चाहता है करे , मन शांत, अचल और स्थिर हो जाय। ऐसी अवस्था सुषुप्ति अवस्था कहलाती है। शरीर को पानी पीना है अथवा खाना खाना है, अथवा सोना है, इससे मन पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। मन एकदम शांत, तृप्त और संतुष्ट हो जाता है, मन का कोई प्रयोजन नहीं बचा। अब मन को कुछ नहीं चाहिए।
पहली और दूसरी अवस्था सद्गुरु की सानिध्य में जाने से साधक की होती है। कोई छलांग लगा कर तीसरी अथवा चौथी स्थिति पर नहीं पहुंच सकता। कर्म से चलना पड़ता है। यही है ओम का वास्तविक अर्थ। बिना अर्थ जाने यदि आप ओम का जप कर रहे हैं, तो उसका कोई लाभ आपको मिलने वाला नहीं है।


ऐसे ही रोचक लेख आपके पास लाता रहूँ, इसलिए आपका सहयोग जरूरी है। हमारे काम को सहयोग देने के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए।👇 https://bit.ly/3wmBcIq

एक टिप्पणी भेजें

This website is made for Holy Purpose to Spread Vedanta , Upnishads And Gita. To Support our work click on advertisement once. Blissful Folks created by Shyam G Advait.