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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

मुक्ति कैसे मिले ?

मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो ?

 मुक्ति के अधिकारी



एक मंदिर में एक महात्मा रहते थे। वे जीवन भर परमात्मा की अराधना करते रहे। आराधना करते करते इनका वृद्धावस्था आ गया। शरीर जर्जर हो गया और शरीर कमजोर होकर काम करना बंद कर दिए थे। उनकी ऐसी अवस्था थी कि जब कोई खाना खिलाता , तो खा लेते और पानी पिलाता तो पी लेते और चुपचाप बैठे रहते थे। ना किसी से ज्यादा बोलते थे ना किसी से ज्यादा कुछ बातें करते थे। वे सदा आत्मानंद में मग्न रहते थे। एक दिन दोपहर को महात्मा जी लेटे हुए थे। तब आस पड़ोस के लड़कों ने सोचा कि महात्मा किसी ने पर चौपट बनाकर खेलें। उसमें से एक लड़के ने दौड़कर अपने घर से चाकू ले आया। और जब चाकू से वक्ष स्थल पर लकीरें खींचने लगा तो महात्मा जी का खून तेजी से बहने लगा। महात्मा जी का खून बहता देखकर लड़के डर गए और वहां से भाग गए। महात्मा जी जैसे के तैसे पड़े रह गए। कुछ ही पल में एक आदमी मंदिर में आया तब उसने देखा की महात्मा जी सीने से खून बह रहा है। खून से सने हुए महात्मा जी के शरीर को देखकर उस आदमी ने आसपास से पूछताछ किया कि ये कैसे हुआ? पूछताछ करने पर उसे पता चल गया कि ये सब लड़कों ने किया है। उसने तुरंत वैद्य को बुलाया और महात्मा जी की उपचार के लिए कहा। वैद्य महात्मा जी के घाव का उपचार करने लगा तो महात्मा ने मना कर दिया।वैद्य वहां से चला गया। कुछ दिनों बाद महात्मा जी के जख्म में कीड़े पड़ गए लेकिन फिर भी महात्मा जी के आनंद में कोई फर्क नजर नहीं आया। महात्मा जी वैसे ही आनंदित रहे, जैसे पहले आत्मानंद में मग्न रहा करते थे। उसी नगर के दूसरे मंदिर में एक दूसरे महात्मा रहते थे। जब उन्होंने उनका हाल सुना तब उन्होंने अपने एक शिष्य से अपना संदेश भेजने को कहा। दूसरे महात्मा ने अपने शिष्य से कहा, "जाओ उस महात्मा से कह देना कि जिस घर में रहते हैं। उसकी साफ-सफाई आवश्यक होती है।
उस महात्मा के उत्तर में घायल महात्मा ने कहा कि जब हम तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं तो रास्ते में हजारों धर्मशाला में रात्रि भर के लिए विश्राम करते हैं। अर्थात धर्मशाला में रात्रि व्यतीत करते हैं। अब रात्रि बीत चुकी है अब कुछ धर्मशालाओं की मरम्मत कौन करे? हमको जीवन रूपी तीर्थ यात्रा में शरीर रुपी धर्मशाला में आयु रुपी रात्रि व्यतीत कर चुके हैं। अब उस शरीर रुपी धर्मशाला मरम्मत कौन करे?
इतना कहकर महात्मा जी चुप हो गए। थोड़ी दिनों में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
ऋषि कहते हैं कि ऐसे ही लोग मुक्ति के अधिकारी होते हैं। इन्हें ही परम कल्याणकारी मोक्ष मिलता है। जो संसार बंधन से मुक्ति दिलाता है।

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