कान फूँक कर अपना पशु बना लेते हैं।
साधु शब्द का इतना गलत अर्थ लिया जाता है कि भगवाधारी भिखमंगे को साधु कह दिया जाता है। किंतु आध्यात्मिक दृष्टि से साधु वही व्यक्ति है जिसने आध्यात्मिक उन्नति करनी है तथा मन और माया के मंडलों को पार कर लिया है। मूढ़ बुद्धि वाले इन भगवाधारी भिखमंगों को साधु मानते हैं। और इन्हीं भगवाधारी ढोंगीयों से कान फुँकवा कर उनके पालतू पशु बन जाते हैं। यदि भीख मांगकर खाना ही वैराग्य होता , तो सभी भिखारी वैराग्यवान कहलाते। किंतु ऐसा नहीं होता। सिद्ध है कि यह वैराग्य नहीं।
ये ढोंगी गुरु हमें बताते हैं कि दान करने से स्वर्ग मिलता है। हम इन्हें दान दे ताकि ये भोग विलास की जिंदगी व्यतीत कर सके। एक कोई गुरु है 27 लाख की मोटरसाइकिल उपयोग करता है और और स्वयं को आध्यात्मिक मानता है। धर्म को इन्होंने व्यापार बना दिया है। ये ढोंगी गुरु हमसे तीरथ में बछिया दान करने को कहते हैं कि मरने के बाद यह बछिया तुम्हें भव सागर से पार लगाएगी। उन ढोंगी बाबा को यह तक पता नहीं होता कि भवसागर कोई नदी अथवा समुद्र नहीं है जिसको तैर कर पार करना है। जन्म मरण से मुक्ति पाना ही भवसागर से मुक्ति पाना है।ये ढोंगी बाबा तुम्हें कभी नहीं कहेंगे कि जाओ अष्टावक्र गीता पढ़ो, भगवत गीता पढ़ो, कठ उपनिषद पढ़ो, निरालंब उपनिषद पढ़ो, आत्मपूजा उपनिषद , इत्यादि पुस्तक पढ़ने को नहीं कहेंगे। क्योंकि यदि आप ने भगवत गीता को समझ लिया , अष्टावक्र गीता पढ़ लिया तो इन ढोंगी गुरु का धंधा बंद हो जाएगा। जो तुम्हें तुमसे परिचित करा दे अर्थात आत्म साक्षात्कार करा दे, तुम्हारी शंकाओं को दूर कर दे, तुम्हें स्वर्ग नर्क में ना उलझा कर सीधे मुक्ति का सोपान बता दे, वहीं ज्ञानी है , वही गुरु है। कान फूकने वाले ढोंगी गुरुओं से जरा सावधान रहिए।
ये ढोंगी गुरु हमें कर्मकांडो में ही उलझा कर रखते हैं जबकि सच्चा गुरु ज्ञानकांड के सहयोग से भवसागर से मुक्ति दिला देता है, अर्थात जन्म मरण से मोक्ष दिला देता है।
जीवन का परम लक्ष्य आत्म साक्षात्कार करके मुक्ति पाना है। जो हमें मुक्ति की ओर लेके जाए वही हमारा सच्चा गुरु, सच्चा मित्र, सच्चा साथी और हितैषी है। जो हमें मुक्ति की ओर ना ले जाकर स्वर्ग और नर्क में ही उलझा कर रखे अर्थात प्रकृति में ही विश्वास दिलाए वही फरेबी है, धोखा है।