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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

कोयलिया को किसने सिखाया?

कोयलिया को किसने सिखाया? कब राम कहना है और कब रहमान कहना है ?

 कोयलिया को किसने सिखाया?






हिंदू कहता है कि मुझे राम प्यारे हैं और मुस्लिम कहता है कि मुझे रहमान प्यारे हैं। इसी बात को लेकर के दोनों आपस में लड़कर मर जाते हैं लेकिन इसका मर्म नहीं जान पाते। ऐसा कबीरदास जी का कहना है। 
हिंदू कहता है कि कोयलिया बोली रे बिना राम रघुनंदन अपनों कोई नहीं है।
और मुस्लिम कहता है कि कोयलिया सुबह-सुबह नवी नवी कहकर पुकार रही है।
मुझे यह बात बड़ी चकित कर रही है कि कोयलिया को किसने सिखाया ? कब रहमान बोलना है? और कब राम बोलना है?
नेताओं ने इसका खूब फायदा उठाया है। नेताओं ने हिंदू मुसलमान कह करके जनता को ही आपस में लड़ा दिया है और स्वयं राजा बनकर बैठ गया है।
हिंदू धर्म में कर्मकांड और पूजा पाठ, दान, इसपे आदि करना हिंदुत्व कहलाता है। जबकि मुसलमानों में तीनो टाइम नमाज पढ़ना और रमजान का उपवास रखना तथा जकात अर्थात आय का कुछ हिस्सा दान में देना ही इस्लाम का पहचान है।
किंतु उपनिषद के ऋषि कहते हैं कि यह दोनों ही अविद्या और भ्रम है।
उपनिषद के ऋषि कहते हैं कि परमात्मा एक है। और उसे प्राप्त करने की निश्चित क्रिया का नाम धर्म है। जब कि हमारे समाज में धर्म के नाम प्रचलित सैकड़ों पूजा पद्धतियाँ इत्यादि है। धर्म का लक्ष्य एक परमात्मा की शोध करना। जब परमात्मा एक है और उसे प्राप्त करने की क्रिया एक है तो अलग अलग पंथ क्यों? इसी के समाधान हेतु महर्षि वेदव्यास ने महाभारत ग्रंथ लिखते हुए भगत गीता में अलग से आध्यात्मिक सूक्तियों को लिख दिया ताकि लोग इस मूल कल्याण के पथ पर भ्रांति का मिश्रण ना कर सके।
केवल एक परमात्मा में श्रद्धा और समर्पण का संदेश देने वाली गीता सबको पवित्र करने का खुला आमंत्रण देती है। सृष्टि में कहीं भी मनुष्य हों , गीता सदैव उसके लिए अमृतवाणी है। विशेषकर गीता पापियों के ही उद्धार का सुगम पथ बताती है, पुन्यात्मा तो भजते ही हैं।
कल्याण स्वरुप वो परमात्मा एक है। जब परमात्मा एक है तू उसे प्राप्त करने की अनेक विधियां क्यों?
तरह-तरह की पूजा पद्धतियाँ, परस्पर विरोधी संगठन धर्म के नाम पर प्रचलित हैं। जबकि धर्म का लक्ष्य है एक परमात्मा की शोध।
किसी के छूने से धर्म नष्ट होता है तो किसी के रोटी पाने से धर्म नष्ट हो जाता है। धर्म तो हमारी रक्षा के लिए है। हम तो तलवार से मरेंगे और यह धर्म है कि छूने से ही नष्ट हो जाएगा। सिद्ध कि यह धर्म नहीं है बल्कि कुरीति है, भ्रांति है। जब धर्म छूने से नष्ट जाता है, तो क्या इसमें छूने वाले का दोष है ?
नहीं। दोष भ्रम दाताओं का है। हम धर्म के नाम पर कुरीति के शिकार हैं। इन्हीं कुरीतियों का समन करके केवल एक परमात्मा में समर्पण का संदेश देने वाली गीता सबको पवित्र करती है।
वास्तव में सभी धर्म ग्रंथ गीता का ही समर्थन करते हैं, किंतु भौतिक दृष्टि के कारण मनुष्य भौतिक शूक्तियों को ही पकड़ पाता है। हिन्दू कहता.है कि कोयलिया राम को पुकार रही है जबकि मुस्लिम कहता है कि कोयलिया नहीं को बुला रही है। 
मै पूछता हूँ कि कोयलिया को ये सब सिखाया किसने?

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