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वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

माता पिता वृद्धाआश्रम में क्यों?

माता पिता वृद्धाआश्रम में क्यों ? स्वार्थ कहां से सीखा ?

 माता पिता वृद्धाआश्रम में क्यों?





प्रश्न ~ माता पिता को बच्चे वृद्धाश्रम क्यों छोड़ आते है?
उत्तर - अधिकांशतः भारत में देखा गया है कि माता पिता के बूढ़े हो जाने पर उनके बच्चे ही उन्हें वृद्धाआश्रम में छोड़ आते हैं। इसका प्रमुख कारण स्वार्थ है। और वे बच्चे स्वार्थ इसी समाज से सीखते हैं। उनको स्वार्थ सिखाने के लिए कोई दूसरे ग्रह से एलियन नहीं आता है और ना ही स्वार्थ सीखने के लिए कोई कोर्स करते हैं। इस समाज में रहने वाले लोग स्वार्थी, कपटी, अज्ञानी व अहंकारी हैं। 
जैसे मनुष्य अन्य जीवों के प्रति स्वार्थ और हिंसा रखता है ठीक उसी प्रकार अपने माता-पिता के बूढ़े हो जाने पर उनके साथ वैसा ही व्यवहार करता है।
जिस प्रकार मनुष्य गायों को स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है अर्थात जब तक गाय दूध देती है तब तक ही उसकी सेवा करेगा अन्यथा कसाई के पास भेज देगा। ठीक उसी प्रकार जब तक माता पिता अपने नित्य कर्म स्वयं कर लेते थे अभी तक उनको अपने घर में रखा। परंतु जैसे ही उनका शरीर जर्जर हुआ वैसे ही उन्हें वृद्धा आश्रम में धकेल आया।
बहुत से लोग होंगे जो वृद्धा आश्रम में डोनेशन देते हैं ताकि उन वृद्ध माता पिताओं की सेवा अच्छे से हो सके। क्योंकि उनको यह पता नहीं है कि वृद्धा आश्रम में डोनेशन देने से बहुत गुना अच्छा है एक अच्छे समाज का निर्माण करना। और वो तो उनसे से होगा नहीं। 
सारे विश्व को आध्यात्म से बदला जा सकता है। लेकिन फिर वही बात कि तुम कहां मानोगे की अष्टावक्र, स्वामी विवेकानंद, रमण महाऋषि कैसे सुधारेंगे देश को?
ना तो तुम्हें आध्यात्म से कोई लेना देना है और ना ही तुम्हें श्रीकृष्ण से, तो फिर कष्टमयी जीवन जियो। 
समाज को बदला नहीं जा सकता केवल प्रकाशित किया जा सकता है। और यह प्रकाश आध्यात्मिक होना चाहिए। आध्यात्मिक से अच्छे समाज का निर्माण किया जा सकता है। 
किंतु फिर वही बात है कि तुम्हें ना तो अध्यात्म से कुछ लेना है और ना ही समाज से क्योंकि तुम स्वार्थी हो। केवल आध्यात्म से ही एक अच्छे समाज का निर्माण होगा , दूसरी कोई विधि काम नहीं करेगी।

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