बदतमीज युवा पीढ़ी
आज का युवा पूरी तरह से वासनाओं का गुलाम बना बैठा है। वास्तव में मनुष्य की तृष्णाएँ और आशाएँ ही उसका बंधन है। जब तक मन में एक भी इच्छा मौजूद है तभी तक मनुष्य बंधन में है। जो पुरुष इच्छारहित और आशारहित है, वही मुक्त है।
सोशल मीडिया युवाओं में निराशा का, उदासी का, खिन्नता का संचार करता है। सोशल मीडिया का युवाओं पर बहुत गहन प्रभाव पड़ता है। और युवा उसी फिल्मी कलाकार की भांति जीवन जीते हैं जैसे एक फिल्मी स्क्रीन पर अभिनेता अभिनय करता है। जैसे कपड़े किसी अभिनेता अथवा अभिनेत्री ने पहन कर रखे होते हैं ठीक वैसे ही कपड़े युवा भी पहनना शुरू कर देता है। जैसा जीवन अभिनेता का होता है, वैसा ही युवाओं का जीवन हो जाता है। मन चंचल है इसलिए मन जीवन में भी चंचलता को लाने का यथासंभव प्रयास करेगा। अच्छे लोग तुम्हें अच्छे नहीं लगेंगे। अच्छे लोग तुम्हें सीधे साधे और उबाऊ लगेंगे। परंतु और कोई तरीका नहीं है अच्छा जीवन जीने का। यदि युवाओं से पूछ लो कि, शंकराचार्य कौन हैं? गुरु नानक कौन हैं? स्वामी विवेकानंद कौन हैं? वीर बहादुर विनय कौन हैं? दिनेश गुप्ता कौन हैं?.कबीर कौन हैं? चंद्रशेखर कौन हैं? आजाद कौन हैं? बाल गंगाधर तिलक कौन हैं? सुभाष चंद्र बोस कौन हैं? भगत सिंह कौन हैं? सरोजिनी नायडू कौन थीं?
तो इनको नहीं पता यह लोग कौन हैं? कहां से आ गए हैं? परंतु हां, यदि कोई इनसे कोई फिल्मी कलाकार के नाम पूछले तो ये उसे भलीभांति जानेंगे। जिनसे प्रेरणा लेनी चाहिए थी, जिनको आदर्श बनाना चाहिए था उनके बारे में कुछ नहीं पता है। और ये घटिया फिल्मी कलाकार तुम्हारे आदर्श बन गए हैं। एक छोटे से बच्चे को भी यह पता होता है कि कौन सा अभिनेता की फिल्म में काम करा है और कितनी बार उस फिल्म में घटिया सीन था। परंतु अफसोस इस बात का है कि इन्हें ना तो राम याद हैं, ना कृष्ण याद हैं, ना स्वामी विवेकानंद याद हैं, ना गुरुनानक याद हैं, ना कबीर याद हैं। उन्हें याद है तो सिर्फ वो घटिया फिल्मी कलाकार।
कबीर दास जी तुम्हें बार-बार याद दिलाते हैं कि तुम किस काम के लिए आए थे और किस काम में अटक गए? दिन को जागकर बिता दिया और रात को सोकर बिता दिया और हीरा जैसे अनमोल जन्म को कौड़ी भाव में बेच दिया।
मन बड़ा खाली सा रहता है। मन अशांत रहता है। मन को कुछ ऊंचा दे दो और फिर देखो कि मन अशांत है क्या? मन अधूरा है क्या?
स्वामी विवेकानंद कहां करते थे कि मुझे युवाओं की तलाश है जो अध्यात्म को साथ लेकर चलें तो फिर मैं इस पूरी दुनिया को ही बदल दूंगा। दुनिया को बदला नहीं जा सकता। दुनिया को केवल प्रकाशित किया जा सकता है और दुनिया प्रकाशित हो गई तो समझो कि दुनिया बदल गई। और दुनिया को कैसे प्रकाशित करेंगे?- युवाओं के माध्यम से।
वास्तव में देश के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी है कि वहां की युवा पीढ़ी जागरुक हो, प्रकाशित हो और विवेकी हो।
किंतु वास्तव में ऐसे युवा हमें तलाशने से नहीं मिलेंगे बल्कि हमें ऐसे युवाओं को तराशने पड़ेंगे।