पार्थिव अथवा परमतत्व
सभी के दिल में राम होते हैं। इस बात को जरा गहराई से समझिएगा। राम का अर्थ है परमात्मा। और परमात्मा ही समस्त सृष्टि के उत्पत्ति का कारण है। इसलिए राम सभी के हदय में हैं। क्योंकि यदि हृदय धड़कना बंद हो जाए तो व्यक्ति का देहावसान हो जाता है। चूँकि परमात्मा समस्त संसार के उद्गम का मूल तत्व हैं। इसलिए परमात्मा अर्थात राम सभी की हृदय में है। यदि ऐसा है तो क्या परमात्मा जैसे अच्छी लोगों के भीतर निहित होते हैं ठीक उसी प्रकार अधर्मी लोगों के हृदय में भी वास करते हैं?
हां, परमात्मा समस्त जीवो के हृदय में वास करते हैं। परंतु ज्ञानी और धर्मात्मा लोग परमात्मा को जानते हैं जबकि अधर्मी और पापी लोग परमात्मा के विषय में भूल जाते हैं कि परमात्मा के हृदय में है। यदि ऐसा हो जाए कि सभी पापी और अधर्मी लोगों को परमात्मा का ज्ञान हो जाए अर्थात उन्हें यह ज्ञात हो जाए कि परमात्मा उनकी भीतर बैठे हैं तो फिर नर्क ले जाने वाले पापपूर्ण और अधर्मपूर्ण कर्म को करेगी ही नहीं। परमात्मा आप के हृदय में वास करता है जोकि सभी के हृदय में वास करता है। किंतु दिमाग में निरंतर भिन्न-भिन्न विचार आते रहते हैं। एक अधर्मी मनुष्य ये भूल जाता है कि उसके भीतर परमात्मा का वास है।
दीपक तो सबके भीतर निरंतर प्रकाशित करती हैकिंतु ज्ञानी लोग इस कथन को भली भांति समझकर कर्म में प्रवृत्त होते हैं। जबकि मूढ़ लोग अपने भीतर प्रकाश को काम, क्रोध ,लोभ, ईर्ष्या, इत्यादि रूपी कंबल से ढक देते हैं।
कबीर जी अपनी दोहों के माध्यम से बताना चाहते हैं कि राम 4 तरह के होते हैं।
एक राम वो हैं जिन्होंने दशरथ के घर जन्म लिया है और वे इन भौतिक आंखों से दिखते हैं। कबीर दास जी यहां पर स्थूल शरीर की बात कर रहे हैं जो बहुत ही तुच्छ है और नाशवान है।
और दूसरे राम वो हैं जो प्रतिपल , प्रत्येक जगह मौजूद है। राम वो हैं जो कण कण में व्याप्त है। कबीर दास जी यहां पर सूक्ष्म शरीर की बात कर रहे हैं। अर्थात मन की बात कर रहे हैं क्योंकि मन प्रतिपल भिन्न भिन्न वस्तु के बारे में सोचता रहता है।
और तीसरे राम वो हैं जिन्हें आप जीवात्मा कहते हैं, जो आपका अहंकार है अर्थात जो आपकी अहंकार वृत्ति है, वह अहम् ही है तीसरा राम। यहां पर कबीरदास जी कारण शरीर की बात कर रहे हैं।
और चौथे व उत्तम राम वो हैं जिन्हें आप परमात्मा कहते हैं, जिन्हें आप ब्रहम कहते हैं। जो निर्गुण, निराकार, अद्वैत, सनातन, परिवर्तनरहित, अचिंत्य, हैं। यहां पर कबीर दास जी परमात्मा की बात कर रहे हैं, जिन्हें आप आत्मा, परमात्मा, परम तत्व ,ब्रम्ह इत्यादि नामों से जानते हैं।