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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

मन को स्थितप्रज्ञ

मन को स्थितप्रज्ञ

मन को स्थितप्रज्ञ



मन को काबू करने का अर्थ हुआ कि मन को माया से परे कर देना। माया का अभिप्राय इस झूठे संसार से है। जहां सब कुछ परिवर्तनशील और नाशवान है। तुम अपने मन को स्थिर नहीं कर सकते अपितु मन को सर्वोत्तम में लगा करके मन को वश में जरुर कर सकते हो। मैं नहीं कहता कि भीड़ से नफरत करो, बल्कि यदि भीड़ में धर्म है तो जरूर करो, किंतु शांति और एकांत से प्रेम रखो।
मन को काबू करने का एक ही उपाय है। मन को परमात्मा में लगा दो - यही एक मात्र उपाय है।
तुम अपने सड़े हुए दफ्तर में बैठे हो,तो स्वभाविक बात है कि मन भागेगा। एक बार मन को वो देकर देखो जो मन को चाहिए। 
फिर देखना मन भागा क्या?
जीवन को इतना वैभव से भर दो कि तुम्हारे पास व्यर्थ चीजों के लिए समय ही ना बचे।
जिनके पास खाली समय होता है उन्हें ही ऐसी उटपटांग बातें करने का मौका मिलता है। जिन्होंने अपने जीवन को और अपने समय को किसी सार्थक काम में लगा दिया है।उसके पास इतना समय ही नहीं बचेगा कि मन की बेचैनी को दूर करे।
यदि मन में वासना हो, इच्छा हो तो फिर मन जैसा कोई शत्रु नहीं। परंतु यदि मन में ईश्वर हो , परमात्मा हो, सत्य हो ,स्पष्टता हो तो फिर मन जैसा कोई मित्र नहीं होता।
मन बड़ा चंचल है। मन पर विजय पाना अत्यंत कठिन कार्य है, किंतु श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन को वश में किया जा सकता है। श्रीकृष्ण के अनुसार मन को वैराग्य और योग से वश में कर सकता है। 
मन को परम में लगा दो। मन तृप्त हो जाएगा। मन पर माहौल का बहुत बड़ा असर पड़ता है इसलिए मन को सही माहोल दो। मन स्वतः ही स्थिर हो जाएगा। जिंदगी में वह काम करिए जो सत्य को लाए। दूसरी कोई विधि काम नहीं करेगी मन को वश में करने में। मन को परम दो फिर देखो मन भागा क्या?

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