क्रोध विसारो
आनंदित लोग - मनुष्य प्रकृति से उत्पन्न गुणों से विवश होकर कर्म करता है। मनुष्य एक पल भी बिना कर्म कीए नहीं रह सकता। जब मनुष्य कुछ पाना चाहता हो और वह वस्तु उसे ना मिले तू मनुष्य को गुस्सा आता है। गुस्सा आने के बहुत सारी कारण हो सकते हैं, जिसमें मुख्य कारण यही है। गुस्सा आना स्वाभाविक है। इसलिए गुस्सा करना कोई बुरी बात अथवा गंदी आदत नहीं है।
परंतु जब गुस्सा आए तो गुस्से के पीछे की वजह सही रखो और गुस्से का कारण समझकर समस्या का समाधान ढूंढों। ऐसा करने से गुस्से पर थोड़ा सा नियंत्रण पाए जा सकता है क्योंकि गुस्से की वजह को जानने के पश्चात गुस्से की समस्या का समाधान मिल जाने पर गुस्सा खत्म हो जाता है। अपनी ऊर्जा का सही इस्तेमाल करो। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना उचित नहीं है। गुस्से की ऊर्जा को सर्जनात्मक दिशा में मोड़ दो। फिर देखो इसका लाभ।
जितनी ऊर्जा आप गुस्सा करने में लगाते हो यदि उतनी ही ऊर्जा किसी सकारात्मक कार्य में लगा दो तो जीवन सफल हो जाए। इसलिए गुस्से की ऊर्जा को वश मत जाने दो क्योंकि यह जो हमारा जन्म है यह बार-बार नहीं मिलता। यह जीवन हीरे की तरह अनमोल है, गुस्सा करके इस जीवन को कौड़ी में ना गँवावो।
यदि दुख आए तो रोना मत, क्योंकि दुख भी एक प्रकार की ऊर्जा है। अपने दुख का ही इस्तेमाल कर दो अपनी दुख की मूल वजह को मिटाने के लिए। जैसे सांप के जहर का इस्तेमाल होता है सांप के जहर को उतारने के लिए। अपनी कमजोरी को ही अपना ताकत बनाओ। दुख आये तो रोना मत क्योंकि रोने से तो सिर्फ गाल गीले होते हैं और तुम्हें आग चाहिए जो तुम्हारे दुख को मिटा सके।
जो लोग बार-बार विफल होने पर अपना लक्ष्य ही छोड़ देते हैं, उनसे अधिक किसी का नुकसान नहीं होता क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता है कि वह सफलता के बहुत नजदीक पहुंच गए थे। इस दीजिए कर्म मत छोड़ो, यदि छोड़ना है तो परिणाम की चाह छोड़ दो, कर्म से मुक्त हो जाओगे।