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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

शरीर निर्वाह में पैसे जरूरी क्यों?

शरीर निर्वाह में पैसे जरूरी क्यों ?

 शरीर निर्वाह में पैसे जरूरी क्यों?





जनसामान्य की दृष्टि से आज के युग में पैसा ही सब कुछ माना जाता है। पैसा है तो इज्जत है, इसलिए अधिकांशतः लोग पैसा कमाने में ही अपना समय व्यतीत देते हैं। जबकि जीवन का उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहीं होना चाहिए। हम पैसा अधिकांशतः अपनी जरुरतों की पूर्ति के लिए कमाते हैं। इसलिए हमें आवश्यकता है कि हम पैसा उतना ही खर्च करें जितना कि अतिआवश्यक है। माने जो शरीर को सख्त जरुरत है। क्योंकि मन का कोई अंत नहीं है अर्थात मन कभी भरता नहीं है। इसलिए जरूरी है कि हमें मन की तृप्ति नहीं बल्कि शरीर की तृप्ति करनी है। शरीर को क्या चाहिए? शरीर को भोजन, आराम और प्रजनन चाहिए। इसके अतिरिक्त शरीर कुछ नहीं मांगती लेकिन मन हमेशा खाली और बेचेन रहता है क्योंकि वह कभी भी तृप्त नहीं होता। शरीर के खर्चे की एक सीमा हो सकती है किंतु मन की कोई सीमा नहीं। लोग मरते वक्त भी वासनाओं में लिप्त रहते हैं। और आज का युवा पूरी तरह वासनाओं का गुलाम बन चुका है। जीवन से ये तीन खर्चे निकाल देंगे तो जीवन में पैसे की तंगी कभी नहीं होगी। वो तीन खर्चें हैं- बड़ा आलीशान घर, बच्चों को ऊंची और महंगी शिक्षा, और बुढ़ापे के लिए आर्थिक सहयोग। यदि जीवन से यह तीन खर्चे निकाल दिया जाय, जीवन अत्यंत सुखमय और सुगम हो जाएगा।
पैसे उतने ही कमाओ जितनी पैसों से शरीर का निर्वाह सुगम हो जाए। लेकिन एक प्रश्न उठता है कि हम क्या केवल शरीर है? ऐसा नहीं है। हम साक्षी शुद्ध चेतन है। चेतन माने जो सब कुछ जानता हो।
अभी तक तो हमने विभिन्न शरीरों को निर्वाह ही तो किया है। किंतु अब हमें आराम की जरूरत है। शरीर निर्वाह का अंत तभी होगा जब दूसरा जन्म न लेना पड़े अर्थात दूसरा कोई शरीर प्राप्त ना हो। मानव देह ही एक ऐसा योनि है केवल जिसमें ही इस शरीर निर्वाह की अंतिम लक्ष्य को अर्थात मुक्ति को प्राप्त किया जा सकता है, जिससे दुबारा जन्म ना लेना पड़े। 
तो पैसा उतना ही कमाना है जो शरीर की निर्वाह को सरल बना दे, क्योंकि मन की कभी तृप्ति नहीं होती, मन सदैव खाली सा रहता है। 
प्रश्न यह है कि जब हम शरीर नहीं है बल्कि शुद्ध चेतन हैं, तो हम शरीर निर्वाह के लिए धन क्यों कमाए? इसका उत्तर बहुत सरल है। हम धन शरीर निर्वाह के लिए इसलिए कमाना है क्योंकि शरीर ही एकमात्र माध्यम है जिसके स्वस्थ होने पर हम इस शरीर के द्वारा ही अपने अंतिम लक्ष्य मुक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। मुक्ति माने दूसरा कोई जन्म व शरीर ना लेना पड़े।

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