कबीर और अष्टावक्र कैसे सुधारेंगे?
औरतें शादी व अन्य शुभ कार्यक्रमों में गीत गाती हैं कि राजा इंद्र ने बाल्टी मंगाई, सोने के थाली में जेवना परोसा और ना जाने क्या-क्या? उनसे पूछ लो कि तुन्हें मीरा के भजन, सूरदास के भजन ,दादूसाहेब के भजन याद हैं?, तो बोलेंगी नहीं। ना तुलसी की बात और ना ही कबीर के साथ, उन्हें केवल इतना हीं पता है कि राजा इंद्र ने बाल्टी मंगाई। मीरा के भजन पूछ लो तो नहीं पता। दादूसाहेब के भजन पूछो तो नहीं पता। अश्लील गाने की तर्ज पर संगीत बजाए जा रहें हैं और उनको भजन संगीत कहा जाता है और जगरातों में बाजाया जाता है। ये सब नशे के गाने भजन बन गए हैं। समझ में आ रहा है हमने हमारी संस्कृति के साथ क्या करा है? संगीत मन को शांति देता है उत्तेजना नहीं। और जो संगीत तुमको उत्तेजित करते हैं तो फिर वह संगीत संगीत नहीं रह जाता बल्कि नशे का गाना हो जाता है। आजकल जो संगीत बनाई जाती है। विशेषकर स्त्रियों के आवाज वाली संगीत केवल गाई नहीं जाती बल्कि स्त्रियां सज़ धज कर गाती है। इतना ही नहीं बल्कि नाच नाच कर गाती है ताकि तुम पर कामवासना का पूरा नशा चढ़ जाए।
एक बात तो तय है कि जब भी आप पर कामवासना हावी होता है तो आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। और इसका प्रमाण भी इतिहास में मौजूद है। महाभारत में दुर्योधन को कामवासना जागी इसलिए उसका विनाश हुआ और रामायण में रावण की कामवासना जागी और उसका विनाश हुआ।
कामवासना सबसे तीव्र है इसलिए इसे त्याग पाना भी अत्यंत दुर्लभ है। एक माताजी किसी लड़के को रैप संगीत सुनते हुए देखा और उसे उस संगीत को सुनने से मना किया और चाटा मारा। और बाद में माताजी अंदर गई और उसी संगीत के धुन पर भजन चल रहा है और माता जी बड़ी आनंदित हो रही हैं। नशे के गाने ही भजन बन गए। जिन महापुरुषों की बातों को सुनना चाहिए वह तुम्हें बड़े उबाऊ लगेंगे। और यह नशे के गाने जो तुम्हें कामुत्तेजित कर देते है, तुम्हें बड़े पसंद आते हैं। और तुम इसी नशे के गाने के धुन पर भजन भी बना देते हो और ऐसे नशे वाले भजन खूब जोरों पर है।