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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

तुम सही दुख चुनो

तुम सही दुख चुनो

तुम सही दुख चुनो


जीवन है, तो चुनौतियां हैं। चुनौतियों को स्वीकार करना ही जीवन है। समझो, जो डर गया उसी ने आत्महत्या कर ली है। जिंदगी कमीनी है वह किसी को नहीं छोड़ती इसलिए मुस्कुराओ, संसार दुखों का घर है या सबके जीवन में दुख ही दुख है कोई पैसे के लिए दुखी है तो कोई स्त्री के लिए, कोई स्त्री की वजह से दुखी है, सारी दुनिया बहुत दुखयारी है। जीवन है तो दुख मिलेगा ही लेकिन तुम उच्चतम दुख का चयन करो। परमात्मा ही एकमात्र सुखों का स्रोत है क्योंकि वह कभी बदलता नहीं है, जबकि यह संसार और संसार की सारी वस्तुएं निरंतर बदलती रहती है और दुख से परिपूर्ण होती है। मौत तो एक दिन अवश्य आएगी , किंतु जो कायर होते हैं वह मौत के डर से बार-बार मर जाते हैं।
मौत सब को निगलेगी, ना किसी को छोड़ा है ,ना जी को छोड़ेगी, इसलिए मुस्कुराओ। दुख भी एक प्रकार की ऊर्जा है, दुख आए तो रोना मत। अपने दुख का ही इस्तमाल करदो अपने दुख के ही मूल को काटने के लिए, जैसे सांप के जहर का इस्तमाल होता है सांप के जहर को ही उतारने के लिए।
अपनी कमजोरी को ही अपना ताकत बनाओ। दुख आए तो रोना मत, क्योंकि रोने से तो सिर्फ गाल गीले होते हैं, और तुम्हें आग चाहिए जो तुम्हारे बंधनों के मूल का, दुखों के मूल का नाश कर सके। 
तुम स्वयं को भौतिक शरीर मानना बंद करो, यह तुम्हारी भौतिकता ही तुम्हारे दुखों का मूल कारण है। जो स्वयं को कर्ता और भोक्ता मानता है वह बहुत दुखी होता है। तुम स्वयं को निमित्त मात्र (उपकरण) मानो, और परमानंद को प्राप्त करो। 
ये सारा संसार दुखी है, कोई शादी न होने की वजह से दुखी है, तो कोई शादी होने की वजह से दुखी है, कोई पैसे ना होने की वजह से दुखी है तो कोई पैसे अधिक होने की वजह से दुखी है, कोई पुत्र प्राप्ति के लिए दुखी है, तो कोई पुत्र से दुखी है।
और इस दुख से मुक्ति के लिए बाजार में तमाम प्रकार की दुकानें सजी हैं, जो दुखों का नाश करने की दवा बेचतें हैं। जबकि दुखों की अंत का एक ही मार्ग है - स्वयं को आत्मभाव में स्थित करना। दुख और सुख मन के धर्म है। मनुष्य पंचतत्व से बना हुआ शरीर नहीं है बल्कि उसका मालिक है जो उसमें कुछ समय के लिए रहने आया है। सेम को भौतिक शरीर मानना बंद करो। न केवल समस्त दुखों से बल्कि जीवन से मुक्त हो जाओगे।

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