इश्क़ का सानिध्य
प्रेम का अर्थ ही है कि प्रेमी की भलाई चाहना अर्थात अपने प्रेमी को उच्चतम स्तर तक ले जाना। लेकिन आजकल प्रेम के नाम पर न जाने क्या-क्या कांड होता है। कोई मोह को प्रेम कह देता, कोई आकर्षण को प्रेम कह देता, कोई ममता को प्रेम के कह देता है, तो कोई स्त्री सुख को प्रेम कह देता है। जबकि वास्तव में प्रेम से इन सब का कोई संबंध नहीं। दूसरी बात यह है कि हमें किसी और से प्रेम होने से पहले हमें स्वयं से प्रेम होता है। बिना हमें स्वयं से प्रेम हुए किसी अन्य से प्रेम हो ही नहीं सकता। जब हमें स्वयं से प्रेम होगा तभी तो दूसरों से भी प्रेम होगा, जब हमें स्वयं से ही प्रेम नहीं होगा तो फिर दूसरों से भी कोई प्रेम नहीं होगा। स्वयं से प्रेम का अर्थ है - "स्वयं को उच्चतम स्तर व उच्चतम बिंदु देना" और इस संसार में आध्यात्म की अपेक्षा दूसरा कोई उच्चतम लक्ष्य नहीं है।
अक्सर लोग कहते हैं कि सच्चा प्यार नहीं मिलता है, किंतु सच्चाई तो यह है कि सच्चा प्यार कोई झेल ही नहीं पाएगा। प्यार का अर्थ किसी को पाना अथवा किसी को खोना नहीं होता। प्यार का अर्थ होता है - किसी के हित में सोचना व करना। जो मां अपने बेटे से करती है वो प्रेम नहीं बल्कि ममता है। जो हम अपने परिवार से करते हैं वह प्रेम नहीं बल्कि मोह है। जो हम लड़कियों से प्रेम करते हैं वो प्रेम नहीं बल्कि आकर्षण और वासना है। प्यार का अर्थ किसी के साथ चिपकना नहीं बल्कि किसी की भलाई चाहना है। प्रेम में बड़ा आनंद है किंतु आम आदमी इसको बर्दाश्त नहीं कर सकता। प्रेम बड़ा ही पवित्र है। किंतु इंसान ने प्रेम की परिभाषा ही बदल डाली है। प्रेम स्वयं को भी आजादी देता है और दूसरों को भी। मनुष्य को अपनी वासनाएँ पूरी करनी है और मनुष्य अपनी वासना को पूरी करने की प्रक्रिया को प्रेम कह देता है। जबकि उनका प्यार से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है। वे प्रेम का नाम बदनाम करने में पूरी तरह से तत्पर हैं। नाम प्रेम का लेकर के काम शैतानों का कर रहे हैं।