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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

इश्क का परम अर्थ

इश्क का परम अर्थ

इश्क का परम अर्थ


प्रेम का वास्तविक अर्थ है," जिससे आप प्रेम करते हैं, स्वयं के अस्तित्व को मिटाकर अपने प्रेमी के हित में कार्य करना। स्वयं को पीछे रखकर केवल अपने प्रेमी के हित में कार्य करना ही प्रेम कहलाता है। जिसे प्रेम है उसे सम्मान की आवश्यकता नहीं।
प्रेम का अर्थ ही है- स्वयं के अस्तित्व को छोड़कर प्रेमी के हित में कार्य करना। उदाहरण से समझते हैं- यदि तुम किसी गुलाब के पुष्प से प्रेम करोगे तो तुम उसको तोड़ने की बजाय गुलाब के पौधे को पानी दोगे और उसकी देखभाल करोगे।
लेकिन आजकल प्रेम का कुछ अलग ही अर्थ निकाल दिया गया है। कोई मोह को प्रेम कहता है, तो कोई आकर्षण को प्रेम कहता है। किंतु वास्तव में प्रेम में आजादी है, आजादी में आनंद है। 
क्या प्रेम अंधा होता है?
नहीं, प्रेम किसी के अच्छे आचरण की वजह से आता है। प्रेम कोई व्यक्ति नहीं है, जो अंधा होगा।
पहले जिसे हम पसंद करते हैं और बाद में जिस के हित में कार्य करते हैं, उसी से आता है प्रेम। हमें किसी और वस्तु से प्रेम होने से पहले हमें स्वयं से प्रेम होता है। मान लो कि तुम किसी बरगद के पौधे से प्रेम करते हो। और तुमने उस बरगद के पेड़ को काटकरके छोटा करके गमले में अपने पास रख लिया है। तो ये प्रेम नहीं है, बल्कि मोह (लगाव या आकर्षण) है। यदि तुम उस बरगद के पौधे से वास्तव में प्रेम करोगे तो उसको वहां आजाद छोड़ दोगे जहां उसकी यथार्थता है, जहां उसकी यथासंभव वृद्धि हो सके। क्योंकि प्रेम का अर्थ ही यही होता है कि स्वयं भी स्वतंत्र रहना और दूसरों को भी स्वतंत्र रखना। जिसके पास प्रेम है, वो सम्मान लेकर क्या करेगा?
प्रेम को मोह मत बनाओ। प्रेम प्रेम है, मोह मोह है। प्रेम और मोह में बहुत अंतर है। प्रेम में स्वतंत्रता है और मोह में बंधन है। प्रेम में निर्भयता है और मोह में डर है। 
हमारे भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को भी अपने जीवन से प्रेम था। यदि हमारे भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को अपने जीवन से मोह होता तो हमारा भारत देश अभी तक आजाद नहीं होता, क्योंकि यदि उनको जीवन से मोह होता तो अपने जीवन को सुरक्षित करने में लगाते ना कि जान की परवाह किए बिना स्वतंत्रता के लिए लड़ते। परंतु भारत के स्वतंत्रता सेनानियों को स्वयं से प्रेम था और देश से प्रेम था इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता का रास्ता चुना।
स्वतंत्रता सेनानियों को स्वयं से प्रेम था इसलिए वह अपने जीवन को उच्चतम बिंदु तक ले जाना चाहते थे, और वे सफल भी हुए। आज भी भारत के स्वतंत्रता सेनानी पूज्यनीय हैं और सदैव सम्मानित कीए जाते हैं। और इससे अच्छा और क्या हो सकता था उनके जीवन का उच्चतम बिंदु? 
वो वीरगति प्राप्त करने के बाद भी आज लोगों के दिलों में अमर हैं।
यदि स्वयं से प्रेम है तो अपने जीवन को उच्चतम बिंदु दो, उच्चतम लक्ष्य दो, ऊंचा जीवन जियो।
लेकिन आज के कलयुग में वास्तविक प्रेम का एक बूंद भी नहीं है। कहने को तो सब कहते हैं कि मैं बहुत प्रेम करता हूं। किंतु वास्तव में तो कोई प्रेम है ही नहीं। बल्कि मोह है, आकर्षण है। चूँकि इस कलयुग में मोह और आकर्षण को ही प्रेम कह दिया गया है, अतः यदि कोई तुमसे कहे कि मैं तुमसे नफरत करता हूं तो तुम उसको बर्दाश्त कर लेना। लेकिन अगर कोई तुमसे कह दे कि मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूं तो वहां से तुरंत भाग जाओ, उधर से जान बचा के निकलो, क्योंकि वहाँ प्रेम की नहीं बल्कि मोह और आकर्षण की बात हो रही है।
प्रेम में स्वतंत्रता है और स्वतंत्रता में आनंद है।

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