श्रीकृष्ण का दिगदर्शन
अर्जुन की पात्रता ही श्रीकृष्ण का साथ है। जो अर्जुन की तरह नहीं है, वह श्रीकृष्ण के पास होते हुए भी श्रीकृष्ण को नहीं पहचानता। जिसमें अर्जुन की खूबियां हैं वही कृष्ण के समीप है। अर्जुन वो हैं जिसके भीतर श्रीकृष्ण आकर बैठ गए हैं। बाहर बाहर से अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं, किंतु गीता ज्ञान रुपी अमृत का पान करने के लिए अर्जुन ने श्रीकृष्ण से स्वयं को अशांत व निर्बल बताया। वास्तव में श्रीकृष्ण और अर्जुन एक ही हैं। जहां जहां अर्जुन होंगे, वहां वहां कृष्ण को होना ही पड़ेगा। अर्जुन श्रीकृष्ण के बिना हो ही नहीं सकता।
अर्जुन वो हैं, जिसके हृदय में श्रीकृष्ण आकर बैठ गए हैं और जो बाहर से श्रीकृष्ण के दर्शन का जिज्ञासु है, वही अर्जुन है और जहां अर्जुन हैं वहीं कृष्ण हैं। श्री कृष्ण तुम्हारे साथ होंगे यदि तुम अर्जुन के पात्र होगे। अर्थात तुम्हें श्रीकृष्ण को तलाशने की जरूरत ही नहीं है बल्कि तुम्हें स्वयं में अर्जुन जैसा व्यक्तित्व बनाने की आवश्यकता है। यदि श्रीकृष्ण को पाना है, तो दूसरी कोई विधि काम नहीं करेगी शिवाय इसके कि तुम स्वयं को अर्जुन का व्यक्तित्व दे दो। श्रीकृष्ण तो अर्जुन के साथ हैं ही।
श्रीकृष्ण ही वह लक्ष्य (परमात्मा) है, जहां तक हमें पहुंचना है और वही पथप्रदर्शक (गुरु) भी है, जो हमें स्वयं तक पहुंचने का मार्ग भी बतलाते हैं। और आज के युग में श्रीकृष्ण को पाने का एकमात्र ही रास्ता है- "गीता का पालन।" चूँकि श्रीमद् भगवत गीता परमात्मा श्री कृष्ण की वाणीं है इसलिए श्री कृष्ण को पानी का एकमात्र ही उपाय यही है कि गीता का पालन करना। गीता के शिवाय अन्य कोई विधि काम नहीं आएगी श्री कृष्ण को पाने में। और जो इस दुनिया में कई सारे ढोंगी बाबा मौजूद हैं जो तुम्हें बिना श्रीमद्भगवदगीता के तुम्हें श्री कृष्ण तक पहुंचने का मार्ग बताते हैं, वह सबसे बड़े पाखंडी और अज्ञानी होते हैं। और जो गीता का पाठ करके गीता को जीवन में उतारता है वही सच्चा सनातनी है। सनातनी का अर्थ जो सदा एक समान रहे, वही है सनातनी। तुम स्वयं को हिंदू तब कहना जब श्रीमद् भगवत गीता स्वयं के जीवन में अवतरित हो जाए तब समझ लेना कि तुम सच्चे सनातनी कहलाने योग्य हो गए हैं।श्री कृष्ण को पानी का एकमात्र ही उपाय है। वो है गीता का पालन।
