Vedanta, Upnishad And Gita Propagandist. ~ Blissful Folks. Install Now

𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

देश प्रेम के नाम पर अनर्थ

देश प्रेम के नाम पर अनर्थ

देश प्रेम के नाम पर अनर्थ





अध्यात्म की दृष्टि को छोड़कर देखा जाए तो आजकल लोग कहते हैं कि मैं देसी हूँ। मुझे मेरे देश से बहुत प्रेम है। और न जाने क्या-क्या कहते हैं? उन्होंने ना तो देश की संस्कृति को अपनाया, ना उसकी सभ्यता को अपनाया, ना उसकी भाषा को अपनाया, उसकी वेशभूषा को अपनाया, और स्वयं को देसी छोरा कहते हैं। भारत के लोगों ने जो कपड़े पहनकर रखें हैं, लगभग वह सभी विदेशी कपड़े हैं, भारत के लोग जिस भाषा (अंग्रेजी) का इस्तेमाल करते हैं वो भाषा भी विदेशी है, वेशभूषा भी विदेशी है। और स्वयं को देसी बंदा कहते हैं।
छोटे छोटे बच्चों को सिखाया जाता है कि अंग्रेजी बोलो। मुझे अंग्रेजी से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन हिंदी का अपमान गलत है। और यह दुर्व्यवहार अंग्रेजों ने नहीं करा है बल्कि हम भारतियों ने स्वयं अंग्रेजी को सर चढ़ा लिया है। शिक्षा व्यवस्था को पूर्णतया व्यापार बना दिया गया है। पहले भी लोग शिक्षा ग्रहण करते थे। ऐसा तो था नहीं कि पहले की लोग शिक्षित नहीं होते थे, परंतु पहले शिक्षा शिक्षा थी लेकिन आजकल की शिक्षा व्यापार बन गया है। अंग्रेजी एक विकल्प होना चाहिए ना कि एकमात्र रास्ता?
आध्यात्म की दृष्टि को छोड़कर देखा जाए तो यदि आप भारत में रहते हो तो आप सरदार पटेल जी को जानते होंगे। जिन्होंने कहा था कि भारत में विदेशी भाषा का प्रयोग नहीं होगा, भारत में आम नागरिक को न्याय पाना अत्यंत आसान होगा, कोई व्यक्ति भूखा नहीं मरेगा, सरकारी मजदूरों की अपेक्षा सरकारी अधिकारियों की वेतन ज्यादा अधिक नहीं होगी, इत्यादि। लेकिन आज उनके कहे हुए एक भी वचन का पालन नहीं होता है। अर्थात एक भी वचन सत्य नहीं है बल्कि हम उल्टा हो रहा है। उपरोक्त सरदार पटेल के विचारों में से नहीं सब्द लिया जाय, तो वही है आज का वर्तमान भारत। यह बहुत गौरव की बात थी कि भौतिक सोना भी था और आध्यात्मिक सोना भी था, किंतु आज ना तो भौतिक सोना है ना ही आध्यात्मिक सोना है। यहां सोना का अर्थ केवल सोना धातु से नहीं है बल्कि सोना का अर्थ ज्ञान से भी है। जितने भी आध्यात्मिक ऋषि, मुनि और महान व्यक्ति हुए मोसम भारत में हुए थे लेकिन अब भारत ने अपना भौतिक सोना और आध्यात्मिक सोना दोनों खो दिया है। भारतीय संस्कृति में औरतों को बहुत सम्मानीय और पवित्र माना जाता था, लेकिन आज के युग में नारी को उनकी वास्तविक स्थान नहीं मिल रहा है और साथ ही वह स्वयं अपने वास्तविक स्थान को खोने में जिम्मेदार हैं। पहले भारत की स्त्रियां पूर्ण वस्त्र धारण करती थी और आज के युग में उसका उल्टा होता है अर्थात प्रसिद्धि पाने के लिए छोटे-छोटे वस्त्र पहनकर टिकटॉक व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कमर मटका रहीं हैं। 
तो इस प्रकार प्राचीनता आधुनिकता से अधिक बेहतर था।

एक टिप्पणी भेजें

This website is made for Holy Purpose to Spread Vedanta , Upnishads And Gita. To Support our work click on advertisement once. Blissful Folks created by Shyam G Advait.