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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

ईश्वर का दिगदर्शन

ईश्वर का दिगदर्शन

 ईश्वर का दिगदर्शन


ईश्वर ना कोई व्यक्ति है और ना ही कोई वस्तु है जिसे तुम प्राप्त करना चाहते हो। ईश्वर तुम्हारे अंदर की वह ताकत है जो तुम्हें सत् प्रेरणा देती है। ईश्वर मंजिल भी हैं और मार्गदर्शक भी ईश्वर हैं। मान लो कि कहीं दूर प्रकाश है और तुम्हारे जीवन में अंधेरा है, तुम्हें प्रकाश तक पहुंचना है लेकिन तुम्हारे जीवन में अंधेरा है, लेकिन उस प्रकाश की ही सहायता से तुम्हें उस प्रकाश तक पहुंचने का मार्ग दिख रहा है कि कहां से मुड़ना है और किधर को जाना है। वास्तव में वह प्रकाश ही ईश्वर है, जो तुम्हारा लक्ष्य भी है और तुम्हारा पथप्रदर्शक भी है।

ईश्वर तुम्हें पहले से ही प्राप्त है। ईश्वर को तुम ही प्राप्त नहीं करना है क्योंकि ईश्वर ना तो कोई व्यक्ति है और ना ही कोई वस्तु। केवल तुम ईश्वर को भूल गए हो। जरूरत है तो तुम्हें ज्ञान के द्वारा ईश्वर को पुनः स्मरण करने की। ईश्वर कोई दूसरा नहीं जो बाहर कहीं सातवें आसमान पर बैठा हो। ईश्वर तुम्हारे अंदर है जो तुम्हें सत् प्रेरणा दे रहा है।

ईश्वर कण-कण में है, ईश्वर जन जन में है, तुंहें दिखाई नहीं देता ,तो ये तुम्हारी अज्ञानता है।

गीता में भी श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं सभी लोगों के ह्रदय में वास करता हूं। मैं सभी कालों (समय) में हूं। मैं सर्वव्यापी हूं। मान लो कि तुमने कोई अपराध कर दिया और तुम्हें जेल हो गई, यह बात तुम्हारे पिता तक पहुंची तो तुम्हारे पिता ने तुम्हें छुड़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किया और सभी यत्न अपनाएँ, भले ही वह तुमसे भीतर भीतर से घृणा ही क्यों ना करते हो। जरा विचार करो कि मोह के कारण जब सांसारिक पिता तुम्हें बचाने के लिए यथासंभव प्रयास कर सकता है, तो जो परमपिता परमात्मा है, जो समस्त सृष्टि का पालन करता है ,वह तुम्हें बचाने के लिए क्या यत्न नहीं करेगा? 

वह हमें बचाने के लिए बार बार अवतार लेता है, आत्मज्ञान की शिक्षा देता है। निर्भर तो हम पर कर्ता है कि हम अवतारों के आत्मज्ञान को जीवन में उतारते हैं या नहीं? कृष्ण अवतार में श्रीमद् भगवत गीता। राम अवतार में श्रीराम गीता।

हमें केवल यह भ्रम है कि ईश्वर मंदिर में है ,ईश्वर सातवें आसमान में है, ईश्वर तीर्थ स्थानों में हैं और न जाने क्या-क्या?

ईश्वर की ही कृपा होती है, तो हमें ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताने वाले पूर्ण गुरु की प्राप्ति होती है जो हमें स्वयं से परिचित कराते हैं। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ना तो संयासी बनने की आवश्यकता है और ना ही वन में जाकर घोर तपस्या करने की आवश्यकता है। प्रभु का दर्शन हमें अपने शरीर के अंदर ही करना है। ईश्वर का दर्शन अपने हृदय में दर्शन करना है। ईश्वर हम सबके हृदय में हैं। जब हमें ईश्वर पहले से ही प्राप्त हैं अर्थात ईश्वर हमारे हृदय में वास करते हैं तो फिर ईश्वर प्राप्ति का झूठा यत्न व्यर्थ ही है। लेकिन फिर भी बाजार में ढेरों दुकानें खुली है जहां ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बेचा जाता है। ईसर को लेकर कई अफवाहें प्रचलित हैं।  कोई कहता ईश्वर के सामने अर्थात मंदिर में स्नान आदि करके जाना चाहिए, तो कोई कहता है ईश्वर को अगरबत्ती इस प्रकार लगाना चाहिए ,भोग इस प्रकार लगाना चाहिए ,आरती इस प्रकार करनी चाहिए और ना जाने क्या क्या? ईश्वर एक हैं और वह सर्वव्यापी , अनंत और अविनाशी है। और रही बात की ईश्वर से मिलने की, तो वह भी बचकानी बात ही है क्योंकि ईश्वर कोई वस्तु या व्यक्ति तो है नहीं। 

यह जो देवी देवता है, पीर पैगंबर है, यह सब प्रकृति की तल पर हैं, और जो प्रकृति पर है, वो नाशवान है। बह्म प्रकृति से परे है और अविनाशी है। आत्मा ही परमात्मा है और आत्मा ही बह्म है। ईश्वर हमारे हृदय में हैं, इस ज्ञान की प्राप्ति ही ईश्वर प्राप्ति है। ईश्वर प्राप्ति होती है और बह्म प्राप्ति नहीं बल्कि बह्मलीन।

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