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𝗟𝗮𝗻𝗴𝘂𝗮𝗴𝗲

वेदांत , उपनिषद और गीता प्रचारक

स्वर्ग या परमतत्व ?

स्वर्ग या परमतत्व

स्वर्ग या परमतत्व


कुछ लोगों को लगता है कि इस संसार में स्वर्ग ही सबसे बड़ा है। किंतु वास्तव में सबसे बड़ा और उत्तम निर्गुण ,निराकार परमात्मा ही है। स्वर्ग बहुत तुच्छ है परमात्मा की आगे। कुछ मूढ़ बुद्धि वाले लोग स्वर्ग पाने के लिए अनेकों कर्मकांड करते हैं। तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिए? स्वर्ग चाहिए या राम चाहिए? राम जी के आगे स्वर्ग बहुत तुच्छ है। अब निर्णय तुम्हारा है कि तुम्हें राम चाहिए या स्वर्ग चाहिए। स्वर्ग चाहिए तो कर्मकांड करो, पूजा करो ,दान करो ,जप करो, तप करो, और ना जाने क्या-क्या कर्मकांड और शुभ कर्म करो। इससे तुम्हें स्वर्ग मिलेगा किंतु राम नहीं मिलेंगे। जीवन में राम के लिए काम करते हो ,ज्ञान के लिए कर्म करते हो ,मुक्ति के लिए कर्म करते हो, प्रेम के लिए कर्म करते हो, यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन अगर जीवन में स्वार्थ के लिए, मोह के लिए , ईर्ष्या लिए द्वेष के लिए काम करते हो, तो धिक्कार है तुम्हारे जीवन पर। ऐसे काम करो कि राम पास आँए और राम से जुड़ी चीजें पास आँए।
कर्म जब तक स्वर्ग की लालसा को लेकर करोगे तब तक राम नहीं हैं। एक बार राम के लिए कर्म करके देखो तो। लोग स्वर्ग और नरक में ही अटके पड़े हैं। अच्छे लोगों की संगति ही स्वर्ग है, बूरे और भटके हुए लोगों की संगति ही नर्क है। स्वर्ग एक बहुत ही छोटी बात है, बह्म (परमात्मा) ही एकमात्र बड़ी बात है। अब तुम ही बताओ तुम्हें क्या चाहिए? 
न तो देवता बचेंगे, न स्वर्ग बचेगा, ना पीर बचेंगे, ना पैगंबर बचेगा, तो फिर तुम नाशवान स्वर्ग के लिए इतने लालायित क्यों हो? कुछ नहीं बचेगा केवल एक बह्म ही अविनाशी है। 
जिस व्यंजन भोग के लिए हम सदैव लालायित रहते हैं ,वास्तव में वही हमारे रोग और शोक का कारण होता है। क्योंकि भोग से रोग बढ़े और रोग से शोक बढ़े। यह जन्म अनमोल है इसको व्यर्थ नाशवान चीजों के लिए मत लगाओ इसको मुक्ति के लिए लगाओ ,बह्म में लगाओ।

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